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रविवार, 28 फ़रवरी 2016

Dr. Anil Sirvaiyya: दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल ...

Dr. Anil Sirvaiyya: दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल ...: कछुए की बाटागुर प्रजाति को संरक्षण की कवायद कई देशों में विलुप्त हुए इस प्रजाति के कछुए डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल 9424455625 sirva...

Dr. Anil Sirvaiyya: ‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड

Dr. Anil Sirvaiyya: ‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड: - सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराने की कवायद - नाटक का मंचन कर जुटाए पैसे - सरकारी स्कूलों, छात्रावासों लगाई वेंडिग मशीनें डॉ. अनिल सिरवैय...

Dr. Anil Sirvaiyya: खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का व...

Dr. Anil Sirvaiyya: खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का व...: विलुप्त हो रही राज्य मछली पर वन विभाग ने किया सर्वे जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर संरक्षण की कवायद  डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल 942445...

खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का वजूद


  • विलुप्त हो रही राज्य मछली पर वन विभाग ने किया सर्वे
  • जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर संरक्षण की कवायद 

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key word : Mahasheer, Biodiversity, Nimar, Badwah, Narmada River, Tiger of River, Madhya pradesh Biodiversity Board    

मध्यप्रदेश की राज्य मछली ‘महाशीर’ की विलुप्त हो रही प्रजाति को बचाने की कवायदों के बीच प्राकृतिक रूप से इसकी मौजूदगी के संकेत मिले हैं। वन विभाग के खंडवा वनवृत्त द्वारा किए गए क्षेत्रीय सर्वेक्षणों, स्थानीय वन समितियों, वन कर्मचारियों तथा मछुआरों आदि से चर्चा करने पर सामने आया है कि ओंकारेश्वर बांध से खलघाट के बीच पड़ने वाले नर्मदा के खंड में कई ऐसे स्थान हैं, जहां प्रवाहित जल धाराओं के कारण महाशीर मछली अभी भी मिला करती है। इसके यहां प्राकृतिक प्रजनन स्थल हैं। 

इन सर्वेक्षणों के बाद नर्मदा नदी के इस हिस्से में वन विभाग के साथ मिलकर मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड ने इसके संरक्षण का काम प्रारंभ किया है। इस सर्वेक्षण में सामने आया है कि बड़वाह वनमंडल के क्षेत्र में महाशीर मछली प्राकृतिक रूप से मिल रही है लेकिन संकेत यह भी मिले हैं कि इस मछली के बच्चे और अण्डे अब बहुत कम देखने में आते हैं जिससे इनकी संख्या में इस खंड में भी लगातार गिरावट आ रही है। वन विभाग और जैव विविधता बोर्ड के अनुसार वन क्षेत्रों में जहां बारहमासी प्रवाहित जल धाराएं अभी भी मौजूद है, वहां इस मछली के जीवित भंडारण एवं प्रजनन के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए यहां जैव विविधता बोर्ड एक विशेष प्रोजेक्ट क्रियान्वित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में महाशीर मछली के आवासीय सुधार के लिए प्राकृतिक एवं कृत्रिम जल स्त्रोतों का विकास कर संरक्षण किया जा रहा है।

2011 में घोषित हुई राज्य मछली

महाशीर मछली मुख्यत: नर्मदा पाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे बाड़स कहते हैं। नर्मदा की कुल लंबाई 1312 किलोमीटर ह। नर्मदा नदी मप्र में 1077 किलोमीटर में फैली हुई है। चूंकि महाशीर नर्मदा की प्रमुख मछली है और नर्मदा नदी की इतनी बड़ी सीमा मप्र में है, इसी आधार पर राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में इसे स्टेट फिश घोषित किया था। केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यिकीय अनुसंधान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार नर्मदा नदी में वर्ष 1958 से 1966 के मध्य मत्स्याखेट में महाशीर प्रजाति 28 प्रतिशत थी। जब इसे स्टेट फिश घोषित किया गया, तब नर्मदा नदी में होशंगाबाद के पास महाशीर का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत ही रह गया था। ये मछली नवंबर, दिसंबर में प्रजनन करती है। इसकी लंबाई ढाई फीट, चौड़ाई 6 इंच, वजन करीब 2 किलो होता है। टाइगर आॅफ फ्रेश वॉटर के नाम से जाने जानी वाली महाशीर मछली मुख्यत: बहते पानी की मछली है। महाशीर बहते पानी और उसमें डूबे पत्थर की तलहटी में निवास करती है। 

जैव विविधता के लिए जरूरी

प्रदेश में जैव विविधता संरक्षण एवं पारिस्थिकीय संतुलन के लिए महाीशर मछली का संरक्षण करना जरूरी है। महाशीर एक प्रमुख र्स्पोट फिश है। यह नदियों की बायोडायवसिर्टी को बचाती है। 



इसलिए विलुप्त हो रही महाशीर

  • नर्मदा बेसिन में बांधों का निर्माण होने से महाशीर के प्रजनन स्थल डूब क्षेत्र में आ गए
  • माइग्रेशन रुक जाने से प्राकृतिक प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा
  • नदी से कृषि के लिए अत्याधिक जल की निकासी के कारण
  • नर्मदा नदी में प्रदूषण बढ़ने और अवैध उत्खनन होने के कारण
  • मत्स्याखेट में अत्याधिक दोहन के कारण
  • मछुआरों में प्राकृतिक मत्स्य संरक्षण भावना का अभाव
  • ग्रासपिंग   प्रवृत्ति के कारण वंशी डोरी से पकड़े जाने के कारण। 

प्रदेश में मछलियां और उनकी स्थिति

  • जूलजीकल सर्वे आॅफ इंडिया के अनुसार प्रदेश में मछली की 215 प्रजातियां हैं। 
  • इनमें से 39 प्रजातियां आर्थिक रूप से उपयोगी हैं।
  • नेशनल ब्यूरो आॅफ फिशरीज जेनेटिक रिर्सोसेस के अनुसार 17 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। 
  • राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ के निदेशक की सलाह पर महाशीर को स्टेट फिश घोषित किया गया था। 
  • इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर ने भी महाशीर के विलुप्त होने पर चिंता जताई थी। 

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खंडवा वन वृत्त में स्थानीय वन अधिकारियों के सहयोग से महाशीर राज्य मछली का संरक्षण प्रारंभ किया गया है। आने वाले समय में वृहद स्तर पर इसके सरंक्षण के प्रयास किए जाएंगे। 
डॉ. एसपी रयाल, सदस्य सचिव, मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड


  • - सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराने की कवायद
  • - नाटक का मंचन कर जुटाए पैसे
  • - सरकारी स्कूलों, छात्रावासों लगाई वेंडिग मशीनें

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
 Key Word : Menstruation, Udita madhya pradesh, Udita Project, ficci women's organisation, ICDS, Women and Chile Department, Anupam Khai, Neena Gupta, "mera vo matlab nahi tha"

किशोरी बालिकाओं में मासिक धर्म और इससे संबंधी व्यवहारों के दौरान स्वास्थ्य, स्वच्छता और रोगों से मुक्ति के लिए सेनेटरी नेपकिन के इस्तेमाल की जागरूकता को लेकर राज्य सरकार द्वारा चलाए जा प्रोजेक्ट ‘उदिता’ की मदद के लिए बॉलीवुड भी आगे आया है। हाल ही में वेलेंटाइन डे पर इंदौर में फिल्म अभिनेता अनुपम खेर और अभिनेत्री नीना गुप्ता ने सेनेटरी नेपकिन की सहज उपलब्धता के उद्देश्य से ‘मेरा वो मतलब नहीं था’ नाटक का मंचन किया। इस नाटक के मंचन से प्राप्त हुई राशि से सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता के लिए वेंडिंग मशीनें स्कूल, कॉलेज आदि स्थलों पर लगार्इं जाएंगी। 

वैसे तो प्रोजेक्ट उदिता राज्य सरकार ने शुरू किया है लेकिन इसमें बड़ी संख्या में समुदाय की भागीदारी भी हो रही है। इंदौर में इस नाटक मंचन फिक्की लेडीज आॅर्गेनाइजेशन (फ्लो) द्वारा आयोजित कराया गया। इस नाटक के आयोजन के जरिए सेनेटरी नेपकिन और वेंडिंग मशीन के लिए स्पांसरशिप और चैरिटी द्वारा राशि एकत्रित की गई। सेनेटरी नेपकिन के प्रयोग और विशेषकर ग्रामीणों अंचलों में इसकी उपलब्धता के लिए प्रदेश में प्रयास किए जा रहे हैं। गर्ल्स स्कूल, हॉस्टल, आंगनबाड़ियों आदि स्थानों पर वेंडिंग मशीनें लगाई जा रही हैं।

समूह की महिलाएं भी सक्रिय

ग्रामीण आजीविका समूह   से जुड़े स्व-सहायता समूहों की महिलाएं भी ग्रामीण अंचलों में सेनेटरी नेपकिन बनाकर इसकी जागरूकता के लिए काम कर रही हैं। इससे एक तरफ जहां ग्रामीण अंचलों में कम कीमत पर सेनेटरी नेपकिन मिल रही हैं, वहीं इससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है। छतरपुर, रायसेन, मंडला, डिंडोरी, धार, बड़वानी आदि जिलों में मिशन की महिलाएं यह काम कर रही हैं।

यह है स्थिति

कुछ शोध बताते हैं कि आज भी 88 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़ा, राख, मिट्टी, सूखे पत्ते आदि का उपयोग करती हैं। केवल 12 प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटेरी नेपकिन का उपयोग करती हैं। 42 प्रतिशत महिलाएं एक ही कपड़े को बार-बार उपयोग करती हैं। कम से कम 29 प्रतिशत महिलाएं गंदे कपड़ों का उपयोग करती हैं। महिलाएं जो माहवारी के दौरोने सेनेटरी नेपकिन का उपयोग नहीं करती हैं, उन्हें प्रजनन मार्ग के संक्रमणों के जोखिम की संभावना 70 प्रतिशत अधिक रहती है। (स्रोत- जनभागीदारी फाउंडेशन)

13 हजार से ज्यादा उदिता कार्नर

महिला एवं बाल विकास सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता के लिए प्रदेश उदिता कार्नर स्थापित कर रहा है। प्रदेश में अब तक 13 हजार 315 से अधिक उदिता कार्नर स्थापित हो चुके हैं।

कहां कितने उदिता कार्नर

संभाग उदिता कार्नर
भोपाल         1681
इंदौर          2750
जबलपुर          2335
ग्वालियर          480
नर्मदापुरम 632
शहडोल         1826
उज्जैन        796
रीवा       1605
चंबल           41
सागर 1169
कुल 13315
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स्कूल, हॉस्टल आदि स्थानों पर नेपकिन डिस्पेंसर मशीन लगाने के लिए राशि जुटाने अभिनेता अनुपम खेर और अभिनेत्री नीना गुप्ता के मंचन का मंचन नीफिक्की लेडीज आर्गेनाईजेशन द्वारा कराया था। इसमें एकत्रित हुई राशि का उपयोग मशीनें और सेनेटरी नेपकिन खरीदने में किया जाएगा। 
आरती सांघी, फाउंडर चेयरमेन, फिक्की लेडीज आॅर्गेनाइजेशन

दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल की शान


  • कछुए की बाटागुर प्रजाति को संरक्षण की कवायद
  • कई देशों में विलुप्त हुए इस प्रजाति के कछुए

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Work : Batagur turtle, Madhya Pradesh Biodiversity Board, Dr, S.P. Rayal, Chambal, River, Turtle survival Alliance   

पूरी दुनिया में तेजी से विलुप्त हो रही कछुए की बाटागुर प्रजाति को बचाने के लिए चंबल में किए जा रहे प्रयास अब रंग लाने लगे हैं। कछुए की यह बेहद दुर्लभ प्रजाति विलुप्त होने की कगार है। इसे बचाने के प्रयास प्रदेश से होकर बहने वाली चंबल नदी में विभिन्न स्थानों पर किया जा रहा है।

मप्र राज्य बायो डायवर्सिटी बोर्ड, वन विभाग और टरटल सर्वाइवल एलायंस नामक संस्था मिलकर कछुए की इस प्रजाति को संरक्षित करने का काम राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य में चंबल नदी के किनारों पर कर रहे हैं। फिलहाल चंबल नदी में बाटागुर प्रजाति के 400 कछुए होने का अनुमान है। इसे शुभ संकते मानते बाटागुर कुछए की प्रजाति को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नेपाल, बांग्लादेश और वर्मा जैसे देशों में इस प्रजाति के कछुए पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इस प्रजाति की यही स्थिति है। टरटल सर्वाइवल एलायंस इस प्रजाति को संरक्षित करने का काम काफी पहले से कर रही है लेकिन पिछले साल उसने यह काम मध्यप्रदेश बायो-डार्यवर्सिटी बोर्ड के साथ मिलकर शुरू किया है। इस काम में कुछ सफलता मिली है।

कैसे हो रहा है संरक्षण

बाटागुर कछुए की प्रजाति को संरक्षित करने के लिए मादा कछुए के अंंडों को सुरक्षित किया जाता है। इन अंडों को खोजकर हेचरी में संरक्षित करते हैं और जब इनमें से बच्चे बाहर आ जाते हैं, तब इन्हें सुरक्षित तरीके से चंबल नदी में छोड़ा जाता है। दरअसल इस प्रजाति के विलुप्त होने की एक बड़ी वजह इनके अंडों का नष्ट हो जाना भी है। अभ्यारण्य के दूसरे जानवरों द्वारा अंडों को नष्ट किए जाने के कारण इनकी संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही थी।

मैदानी अमले को प्रशिक्षण

बाटागुर कछुए को बचाने के लिए वन विभाग और इससे जुड़े हुए लोगों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बाटागुर कछुए के घोंसलों और अंडों के पहचान की बारीक से बारीक बातें इन्हें सिखाई गर्इं हैं। नेस्टिंग और हैचिंग प्रक्रिया में कौन-कौन सी सावधानियां रखनी है, प्रशिक्षण के दौरान यह भी सिखाया गया है।

ये है बाटागुर कछुआ 

बाटागुर कछुआ देखने में सामान्य प्रजाति के कछुओं की तरह ही है। लेकिन इसका आकार बड़ा होता है। जलीय जीव विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रजाति के कछुओं का वजन 30 से 35 किलो तक होता है। जबकि सामान्य कछुओं में वजन डेढ़ किलो तक पाया जाता है।

तीन जगह हो रहा संरक्षण 

चंबल अभ्यारण्य में बाटागुर कछुआ के लिए तीन जगह हेचिंग एरिया निर्धारित किए गए हैं। जिनमें सबलगढ़, अंबाह व भिंड शामिल है। इन तीनों जगह पर उक्त प्रजाति के कछुए के सैकडों अंडे हेचिंग के लिए रखे गए हैं।

चंबल में कछुओं की 9 प्रजातियां

उत्तर भारत में कछुओं की 12 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले चंबल नदी में कछुओं की नौ प्रजातियां हैं। जिनमें बाटागुर कछुआ, बटांगुर डोंगोका, कछुआ टेंटोरिया, हारडेला, थुरगी, चित्रा इंडिका, निलसोनिया, निलसोनिया 'ूरम, लेसिमस पटाटा, लेसिमस ऐंडरसनी हैं। इनमें से बाटागुर कछुआ, चित्रा इंडिका, डोंगोका, लेसिमस पोटाटा दुर्लभ प्रजातियां हैं।
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बाटागुर कछुए की विलुप्त होती जा रही प्रजाति के संरक्षण के लिए मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड और टरटल सर्वाइवल एलायंस मिलकर काम कर रहे हैं। नेस्टिंग और हैचिंग के जरिए के माध्यम से इन कछुओं के अंडों को संरक्षित किया जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि चंबल नदी में इन कछुओं की संख्या में अधिकाधिक वृद्धि की जाए। 

डॉ. एसपी रयाल, सदस्य सचिव, मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

मुस्लिम महिला ने उठाई कुपोषित आरती की परवरिश की जिम्मेदारी


  • जज्बा ही देखना है तो पुटपुरा की नूरेशा को देखें
  • धर्म और समाज से ऊपर उठकर मानवता की मिसाल


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Word : Sneh Sarokar, Madhya Pradesh, Umriya, Muslim Women, Baiga Tribal, JNU, Malnutrition, Nures Begam, Maya Singh

नूरेशा बेगम आरती और अपने दोनों बेटों के साथ। 

देशभक्ति और सांप्रदायिकता को लेकर देश में इन दिनों चल रही बहस का निष्कर्ष जो भी हो, लेकिन मध्यप्रदेश के एक आदिवासी जिले उमरिया के एक छोटे से गांव पुटपुरा में ममता, मानवता, सद्भाव और सहयोग से मिलकर देशभक्ति और राष्ट्रवाद की एक अनोखी मिसाल देखने को मिली है। एक बैगा आदिवासी परिवार की दो साल की अतिकुपोषित बालिका, एक मुस्लिम परिवार की कोशिशों से कुपोषण से बाहर आ रही है। इस गांव की मुस्लिम महिला नुरेशा बेगम ने आरती नाम की बालिका को कुपोषण से बाहर लाने की जिम्मेदारी उठाई और इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। 

दरअसल राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे स्नेह सरोकार कार्यक्रम के तहत ऐसे कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों को स्वस्थ बनाने की जिम्मेदारी समुदाय को सौंपी जा रही है। नुरेशा ने इससे प्रेरित होकर अपने ही गांव की अति कुपोषित आरती की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया। नुरेशा एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है। उनके अपने भी दो बच्चे हैं और पति मजदूरी करते हैं। बावजूद इसके उन्होंने जीवटता दिखाते हुए अन्य परिवार की बालिका की जिम्मेदारी उठा रही हैं। 

ऐसी थी आरती की हालत

आरती बैगा का जन्म 12 अक्टूबर 2013 को हुआ था। जन्म के समय उसका वजन 3 किलोग्राम था। लगभग 9 महीने की होने पर आती का वजन और स्वास्थ्य धीर-धीरे गिरने लगा, जिसके कारण वह कुपोषण की श्रेणी में आ गई थी। पिछले साल 9 जून का नुरेशा ने आरती की देखभाल की जिम्मेदारी ली। उस समय आरती का 5.100 किलोग्राम था। वह अति गंभीर कुपोषित हो गई थी। 

नुरेशा ने क्या किया

नूरेशा बेगम रोजाना आरती को खुद आंगनबाड़ी केंद्र पर लाती है तथा अपने सामने नाश्ता, भोजन और थर्ड मील खिलाती है। आंगनबाड़ी के बाद वह आरती को अपने घर ले जाकर अपने बच्चों के साथ उसकी देखभाल करती है। यदि आरती बीमार पड़ती है तो उसे अस्पताल भी खुद ही ले जाती है। वह आरती के माता पिता को समझाईश भी देती है। नूरेशा की इन कोशिशों से आरती का वजन अब 7 किलो 200 ग्राम तक आ गया है। 

क्या करती है नूरेशा

नूरेशा अपने पति शफी मोहम्मद के साथ अपने घर पर ही सिलाई का काम करती है। मौसम के अनुसार खेतीबाड़ी, मजदूरी आदि काम करके दोनों अपना परिवार चलाते हैं। 9 साल का गौशुल रजा और 6 साल का हामिद रजा, नूरेशा के दो बेटे हैं। गोद ली गई आरती का वह इन दोनों के जैसा ही ध्यान रखती है। नूरेशा और उसके परिवार के सदस्य आरती को प्यार से ‘गौशिया’ कहकर पुकारते हैं। तीज-त्यौहार में अपने बच्चों के साथ-साथ वह आरती के लिए भी खिलौने और कपड़े लाती है। वह अपने बच्चों के लिए जो पकाती है, आरती को भी बड़े प्यार से खिलाती है। 

विरोध भी झेला

बैगा आदिवासी परिवार की बच्ची को गोद और देखभाल की जिम्मेदारी लेने पर नूरेशा को मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को विरोध भी झेलना पड़ा। नूरेशा को उसके परिवार और माता-पिता  का साथ मिला और वह विरोध की परवाह किए बगैर अपनी इस जिम्मेदारी को निभाती है। आरती को लेक
र नूरेशा की इस ममता को देखकर जिले में सच्ची स्नेह सरोकार मित्र कहा जाता है।


प्रदेश का हर बच्चा स्वस्थ हो, इसके लिए समुदाय का सहयोग जरूरी है। स्नेह सरोकार में जरूरतमंदों बच्चों की जिम्मेदारी लेने बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं। उमरिया जिले में नूरेशा का प्रयास सराहनीय और प्रेरक है, इससे निश्चित तौर पर दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। 


माया सिंह, मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग 

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

87 हजार अतिकुपोषित बने ‘जिगर के टुकड़े’


  • रंग लाया स्नेह सरोकार
  • समुदाय की भागीदारी से मिली बच्चों को नई जिंदगी


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keyword : Madhya pradesh, Sneh Sarokar, Malnutrition, Community Partnership, MPWCD, ICDS, Maya Singh,

आमतौर पर लोग अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं और मरते हैं। उनके खाने-पीने से लेकर उनकी शिक्षा-दीक्षा तक को लेकर सतर्क रहते हैं लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों के साथ ही दूसरों के बच्चों को भी अपने जिगर का टुकड़ा बना लिया है। वे इन बच्चों के खान-पान से लेकर दवा और कपड़ों का इंतजाम करते हैं। कुपोषण के लिए बदनाम हो चुके मध्यप्रदेश में 87 हजार अतिकुपोषित बच्चों का कुपोषण मिटाने के लिए समुदाय से लोग बढ़-चढ़कर आगे आए हैं। राज्य सरकार के स्नेह सरोकार कार्यक्रम में शामिल होकर इन लोगों ने बच्चों की मदद के लिए अपने क्षमता के अनुरूप मदद का हाथ आगे बढ़ाया है। कोई इन बच्चों को पोष्टिक भोजन मुहैया करा रहा है तो कोई दवा, फल, ड्रायफूड्स, कपड़े, जूते-चप्पलों तक की व्यवस्था कर रहे हैं। कई तो ऐसे भी हैं जो इन बच्चों को बेहतर वातावरण में शिक्षा दिलाने के लिए अपनी जेब से राशि खर्च की है। 

राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग के अनुसार प्रदेश में अति कुपोषित बच्चों की संख्या करीब एक लाख 27 हजार है। ये वे बच्चे हैं जो सामान्य बच्चों की तरह नहीं है और दुर्बल शारीरिक क्षमताओं के कारण स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए विभाग के कार्यक्रम एवं योजनाएं हैं और आंगनबाड़ियों में ऐसे बच्चों की विशेष देखभाल की जा रही है। पिछले साल महिला एवं बाल विकास विभाग ने कुपोषण से निपटने में समुदाय की भागीदारी का आह्वान करते हुए ‘स्नेह सरोकार’ कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें समुदाय से अपील की गई कि वह कुपोषित बच्चों की मदद के लिए आगे आए। इस संवेदनशील मुद्दे पर प्रदेशभर में लोगों ने दिलचस्पी दिखाई और देखते ही देखते 87 हजार से अधिक लोग इस कार्यक्रम से अब तक जुड़ चुके हैं। बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने वाले लोग केवल आर्थिक सहायता या सामग्री देकर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं होते, बल्कि वे बच्चों की सेहत में सुधार का लगातार फॉलोअप भी लेते हैं।

न्यौछावर करना है तो सही जगह करो

विभाग ने लोगों को इस दिशा में जागरूक करने के लिए कई तरह के तर्क दिए। अलग-अलग आदतों के लोगों उनकी आदतों के हिसाब से समझाया। आप सिगरेट फूंकते हैं, शादी-ब्याह में न्यौछावर करते हैं, होटलों में टिप देते हैं, यदि यही राशि इन अति कुपोषित बच्चों के पालन के लिए दें दे तो उनकी सेहत सुधरेगी और आपको 
 हमने लोगों को समझाया कि आप सिगरेट फूंकते हैं, न्यौछावर करते हैं, टिप देते हैं 

10 बच्चों से हुई थी शुरूआत

इस कार्यक्रम की शुरूआत पिछले दतिया जिले से हुई थी। यहां 10 अतिकुपोषित बच्चों के भरण-पोषण और कुपोषण से मुक्ति की जिम्मेदारी कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों ने ली थी। इसके बाद प्रदेश भर में अधिकारियों, राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों, व्यापारियों, सामाजिक संगठनों तथा समाज के अन्य लोगों ने इन कुपोषित बच्चों की जिंदगी संवारने का बीड़ा उठाया। 

ऐसे लोग भी हैं...

इन 87 हजार अतिकुपोषित बच्चों की मदद करने वाले लोगों में अधिकांश ऐसे भी हैं जो बिना किसी प्रचार के इस काम को करते हैं। वे अपना नाम उजागर नहीं करते, लेकिन बच्चों की चिंता उन्हें जरूर रहती है। वे समय-समय पर आंगनबाड़ियों में पहुंचकर इन बच्चों के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हैं। 

शहडोल संभाग सबसे अव्वल

इस काम में शहडोल संभाग के लोगों ने सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है। पूरे प्रदेश में इस संभाग के तीनों जिलों में सबसे अधिक अतिकुपोषित बच्चों की जिम्मेदारी लोगों ने ली। यहां अच्छी बात यह भी है कि केवल अतिकुपोषित ही नहीं बल्कि कुपोषित और सामान्य से थोडे कम वजन वाले बच्चों की जिम्मेदारी भी कई लोगों ने उठाई है। वे उनके खाने-पीने और उन्हें अच्छी जिंदगी देने के लिए लगातार सक्रिय हैं। 

ऐसी होती है मदद

  • पोष्टिक भोजन 
  • फल एवं अन्य पोष्टिक आहार 
  • कपड़े, जूते-चप्पल आदि 
  • कापी-किताबें
  • आंगनबाड़ी भवन की व्यवस्थाओं के लिए सामग्री
  • गुप्त दान


मप्र पर हमेशा कुपोषण को लेकर उंगली उठती रहती है, इसलिए हम सुपोषण अभियान भी चला रहे हैं। इसमें हम कमजोर मां और बच्चे की 12 दिन देखभाल करते हैं, टेकहोम राशन देते हैं लेकिन इतना काफी नहीं है। इसलिए हमने दतिया से स्नेह सरोकार अभियान की शुरूआत की। हम दिल से चाहते हैं कि प्रदेश का हर बच्चा स्वस्थ हो, इसके लिए समुदाय का सहयोग जरूरी है। अब बढ़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं। यह अभियान लगातार चलेगा। मप्र के हरेक बच्चे को सुपोषित बनाना है। 

माया सिंह, मंत्री, महिला एवं बाल विकास, मध्यप्रदेश

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

न बच्चे प्रश्न पूछ पाते, न शिक्षक गौर करते

  • 30 प्रतिशत से कम रिजल्ट वाले स्कूलों के बुरे हैं हालात
  • लगातार मॉनीटरिंग और सख्ती से बेहतर नतीजों की उम्मीद


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

भोपाल, 15 फरवरी, 2016

एक और दो मार्च से शुरू हो रही बोर्ड परीक्षाओं से पहले राज्य सरकार ने प्रदेश के उन स्कूलों की चिंता सता रही है, जिनका रिकार्ड रिजल्ट के मामले में जिनका बेहद खराब हैं। पिछली बोर्ड परीक्षाओं में इन स्कूलों का रिजल्ट 30 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहा। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जहां के दो-चार प्रतिशत बच्चे भी परीक्षा में पास नहीं हो पाए। राज्य सरकार ने ऐसे स्कूलों को 0-30 प्रतिशत रिजल्ट वाले स्कूलों के रूप में चिन्हित किया है। दरअसल समय-समय पर हुई जांच और निरीक्षण में इन स्कूलों में अनेक तरह की कमियां सामने आर्इं हैं, जो पिछले कई सालों से यथावत हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षक से प्रश्न नहीं पूछ पाते और इन्हें पढ़ाने की भाषा भी एक समस्या है। इन बच्चों के होमवर्क और क्लासवर्क की जांच और मॉनीटरिंग न घर में होती है न स्कूल में। इसी तरह के अनेक कमियां इन स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों में हैं। लिहाजा इन स्कूलों से हर साल न्यूनतम 30 प्रतिशत बच्चे भी पास नहीं हो पाते। यह स्थिति स्कूल अनुसूचित जनजाति कल्याण और स्कूल शिक्षा, दोनों के स्कूलों की है। दोनों विभाग इन स्कूलों के रिजल्ट को सुधारने के कई प्रयास कर रहे हैं। जनजाति कल्याण विभाग ने सीधे कलेक्टर को रिजल्ट सुधार की गतिविधियों से जोड़ा है। 

क्यों पास नहीं होते विद्यार्थी


  • प्रश्न करने की कला और शिक्षण की भाषा में उपयुक्तता की कमी।
  • गृह कार्य, कक्षा कार्य, त्रुटि सुधार के पर्यवेक्षण की कमी।
  • विज्ञान मेला, विज्ञान प्रतिभा खोज आदि प्रतियोगिताओं में सहभागिता की कमी। 
  • शैक्षिक कार्य, पाठ् सहगामी क्रियाकलापों में शिक्षकों की अरुचि।
  • छात्रों के मूल्यांकन एवं इसके बाद अनुवर्ती प्रयासों की कमी। 
  • सांस्कृतिक, साहित्यिक, शारीरिक गतिविधियों में सहभागिता की कमी। 
  • नियमित एवं विशेष कक्षाओं की समयसारिणी का पालन नहीं होता। 
  • कमजोर प्रदर्शन करने वाले छात्रों की कमजोरी दूर करने के प्रयास नहीं होते। 
  • उत्कृष्ट छात्रों के प्रोत्साहन नहीं मिलता। 
  • रेमिडियल कक्षाओं की निरंतरता में कमी। 
  • शैक्षिक केलेण्डर का पालन नहीं होता। 
  • समस्या समाधान विधि, खोज विधि, अन्य विधियों के उपयोग की कमी। 
18-जुलाई-2014 को श्योपुर कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटील द्वारा स्कूल चलो अभियान के अंतर्गत जिले के आदिवासी विकास खण्ड कराहल के ग्राम बावडीचापा के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल का निरीक्षण किया। इस निरीक्षण के दौरान मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, गणवेश राशि वितरण और छात्र छात्राओ को दी जाने वाली पाठय पुस्तक के वितरण की भी जानकारी छात्र छात्राओ से चर्चा कर प्राप्त की। निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने छात्र छात्राओं से किताब पढवाकर देखी। साथ ही छात्र छात्राओ से पहाडे भी सुने। इस दौरान छात्र छात्राओ से मध्यान्ह भोजन के संबध में चर्चा की। जिसमें छात्र छात्राओ ने बताया कि एमडीएम में दो ही रोटी दी जाती है और मीनू के अनुसार भोजन स्व सहायता समूह द्वारा नही दिया जाता। कक्षा 5 वी के छात्र विष्णु ने 2 से 7 तक पहाढे सुनाऐ। 6 के छात्र दुपट्टा आदिवासी ने बिना रूके हिन्दी की किताब पढकर सुनाई। 

सरकार की कवायद

स्कूल शिक्षा विभाग और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग इन स्कूलों के रिजल्ट को सुधारने के लिए कई तरह से सक्रिय है। स्कूल शिक्षा विभाग ने ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कराकर प्राचार्यों को कमियां बता दीं हैं। इन्हें दूर करने की हिदायत दी गई है। जनजाति कल्याण विभाग ने मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे दो-दो जिलों की जिम्मेदारी सौंपी है, जिनमें 30 प्रतिशत से कम रिजल्ट वाले स्कूल आते हैं। इन्हें राज्य स्तर से शिक्षा गुणवत्ता के प्रयासों का प्रभारी अधिकारी बनाया गया है। ये अधिकारी स्कूलों से संपर्क कर रोजाना की अपडेट ले रहे हैं। 

20 जिलों के 14 स्कूलों में जीरो रिजल्ट

जनजाति बाहुल्य 20 जिलों के 14 स्कूल ऐसे हैं, जहां पिछले वर्ष हुई हाईस्कूल परीक्षा में एक भी विद्यार्थी पास नहीं हुआ। इन 20 जिलों में 549 स्कूल ऐसे हैं जिनका हाईस्कूल रिजल्ट 30 प्रतिशत से कम रहा।

कलेक्टरों को जिम्मेदारी

इधर आयुक्त आदिवासी विकास शोभित जैन ने कलेक्टरों को पत्र जारी कर कहा है कि ऐसे प्रयास किए जाएं कि जिले में एक भी संस्था जीरो रिजल्ट की सूची में शामिल हो।

सीएम ने कहा, जवाबदारी तय हो

हाल ही में विभागीय समीक्षा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिक्षा की गुणवत्ता के संबंध में गंभीरता से समीक्षा के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने कहा था कि शून्य प्रतिशत रिजल्ट वाली संस्थाओं के शिक्षकों की जवाबदारी तय की जाए।

30 प्रतिशत से कम परीक्षा परिणाम वाले स्कूलों में टीम जाती है। जांच और निरीक्षण के बाद टीम बताती है कि क्या-क्या कमियां है। प्राचार्यों को इन्हेंं दूर करने के निर्देश के साथ ही बेहतर परीक्षा परिणाम के लिए लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। उम्मीद है कि इस वर्ष ऐसी संस्थाओं के भी परीक्षा परिणाम बेहतर आएंगे।

धीरेन्द्र चतुर्वेदी, संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

परीक्षाओं का दवाब कम करने सेकेंडरी लेबल पर सेमेस्टर सिस्टम की सिफारिश

- प्रस्तावित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए मध्यप्रदेश ने तैयार किए सुझाव
- शीघ्र भारत सरकार को भेजी जाएंगी सिफारिशें
- विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए विविध पहलुओं पर किया विचार

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keywords : RKS Madhya Pradesh, New Education Policy India, Semester System, Bhopal, Peoples Samachar

देश की नई शिक्षा नीति के लिए मध्यप्रदेश ने दर्जनों सुझाव तैयार किए हैं। विभिन्न स्तरों पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार इन सुझावों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा को प्रभावी और विद्यार्थियों के समग्र विकास के महत्वपूर्ण बिंदु सुझाए गए हैं। शीघ्र ही यह सुझाव भारत सरकार को भेजे जाएंगे, जिन पर निर्णय केंद्रीय स्तर पर लिया जाएगा। प्रमुख सिफारिशों में सेकेंडरी लेबल पर सेमेस्टर सिस्टम लागू करने की वकालत की गई है। इस स्तर पर पढ़ाई और परीक्षाओं के दवाब से विद्यार्थियों को मुक्त की मंशा है। इसी तरह देशभर में परीक्षाएं आयोजित करने के लिए संयुक्त परीक्षा बोर्ड, स्थानीय भाषा को प्राथमिकता, कक्षा 9 से व्यवसायिक शिक्षा, शिक्षकों की भर्ती एवं चयन के लिए राष्ट्रीय आयोग, पहले से सेवारत शिक्षकों को पेशेवर बनाने के लिए रिफ्रेशर कोर्स तथा सामाजिक विज्ञान विषय को ओर अधिक व्यवहारिक तथा रोजगारमूलक बनाने की सिफारिशें प्रमुख हैं। 

स्कूल शिक्षा विभाग ने इन सिफारिशों को तैयार किया है। इसके लिए अनेक स्तर पर शिक्षा जगत से जुडेÞ लोगों, अधिकारियों, संस्थाओं और शिक्षकों से विचार-विमर्श किया गया था। फिलहाल राज्य शिक्षा केंद्र ने इन अनुंशसाओं को शिक्षा से जुड़े दूसरे राज्य सरकार के विभागों को परामर्श के लिए भेजा है। ये सिफारिशें केवल स्कूल शिक्षा से जुड़ी हैं। उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग की सिफारिशों-सुझावों को इसमें समाहित कर भारत सरकार को भेजा जाएगा।
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प्रारंभिक शिक्षा 

- स्कूल शिक्षा चार वर्ष की आयु से प्रारंभ की जाए। इसमें एक वर्ष की प्री-प्रायमरी शिक्षा भी शामिल हो।
- 5वीं एवं 8वीं की परीक्षाओं को फिर से बोर्ड के माध्यम से कराना।
- मिड-डे मील का मीनू को लोकल ट्रेडीशन और वस्तुओं की उपलब्धता के आधार पर तय किया जाए।
- प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय भाषा-बोली में दी जाए।
- आंगनबाड़ियों में प्रशिक्षित शिक्षक भर्ती किए जाएं।
- आंगनबाड़ी और स्कूलों के बीच लिंक स्थापित किया जाए।

सेकेण्डर और सीनियर सेकेंडरी

- सेकेण्डरी और सीनियर सेकेंडरी शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
- कक्षा 9 से व्यवसायिक शिक्षा को शिक्षा से जोड़ा जाए।
- शहरी स्कूलों जैसी सुविधाएं ग्रामीण अंचलों के स्कूलों में दी जाएं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय खोले जाएं।
- पाठ्यक्रम की एकरूपता होनी चाहिए।
- एक कॉमन बोर्ड हो, सभी बोर्ड्स के बीच समन्वय का काम करे।
- सेकेण्डरी स्तर पर पढ़ाई के दवाब को कम करने के लिए सेमेस्टर सिस्टम जरूरी।
- सामाजिक विज्ञान विषय को ओर अधिक व्यवहारिक और रोजगारमूलक बनाया जाए।

व्यवसायिक शिक्षा

- व्यवसायिक शिक्षा मिडिल स्कूल से प्रारंभ की जानी चाहिए।
- व्यवसायिक शिक्षा वैश्विक स्तर के साथ-साथ स्थानीय जरूरतों के मुताबिक होनी चाहिए।
- सभी पंचायत स्तर के स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षा शुरू की जानी चाहिए।
- स्कूल, आईटीआई और पॉलिटेक्निक के बीच बेहतर समन्वय हो।

परीक्षा व्यवस्था में सुधार

- सभी शिक्षकों को मूल्यांकन के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- शिक्षकों की प्री-सर्विस और इन-सर्विस ट्रेनिंग में सीसीई संबंधी घटकों को शामिल किया जाए।
- सभी परीक्षाएं एक संयुक्त बोर्ड द्वारा ली जाएं।
- कुछ विषयों के लिए ओपन बुक एक्जामिनेशन की व्यवस्था की जाए।

क्वालिटी टीचर्स

- शिक्षकों के चयन एवं शैक्षिक प्रशासकों के चयन के लिए राष्ट्रीय आयोग होना चाहिए।
- उत्कृष्ठ शिक्षकों को प्रोत्साहन (इंसेनटिव) दिया जाए।
- आवासीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं।
- सेवारत शिक्षकों के पेशेवर विकास के लिए प्रत्येक पांच साल में दो महीने के रिप्रेशर कोर्स अनिवार्य किया जाए।

विज्ञान, सामाजिक, गणित और तकनीक की शिक्षा

- विद्यार्थियों को कक्षा में 9 में ही विषय चुनने का अवसर दिया जाए। वर्तमान में 11 वीं में विषय का चयन होता है।
- कक्षा 5 अथवा 6वीं स्तर से ही विज्ञान और गणित के लेबोरेटरी काम जोड़े जाएं
- प्राथमिक स्तर से ही इंफोरमेशन, कम्युनिकेशन-टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए।
- समुदाय की सहभागिता से देशज ज्ञान आधारित सीखने-पढ़ने-पढ़ाने की विधियों का उपयोग किया जाए।
- मूल्यांकन में 50 प्रतिशत थ्योरी  और 50 प्रतिशत प्रेक्टिल को महत्व दिया जाए।
- स्कूलों में स्थानीय लोक कला को महत्व दिया जाए।

भाषा

- थ्री लेंग्वैज फार्मूला को महत्व दिया जाए।
- अलग-अलग भाषाई शिक्षकों की भर्ती की जाए।
- मातृभाषा में किताबों की उपलब्धता हो।
- किताब में स्थानीय संदर्भ शामिल किए जाएं।
- प्रत्येक स्कूल में भाषा की प्रयोगशाला (लेंग्वैज लेब)हो।

DEEPTI GAUR MUKERJEE 
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव तैयार किए हैं। अभी इनमें उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग के सुझावों को भी समाहित किया जाएगा। इसके बाद इन्हें भारत सरकार को भेजा जाएगा। 
दीप्ति गौड़ मुकर्जी, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र, मध्यप्रदेश

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

नापी जाएगी लोकल रैसिपी की न्यूट्रीशन वेल्यू

 - प्रत्येक जिले की सर्वश्रेष्ठ रैसिपी को मिलेगा पुरस्कार
-  मप्र में पोषण की नई कवायद
- आंगनबाड़ियों में पौष्टिक आहार देने का नया फार्मूला


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key word : Madhya pradesh recipe, WCD, ICDS, Aanganbadi, Bhopal, Child Development, Malnutrition, Nutrition

खान-पान के मामले में विविधताओं से भरे मध्यप्रदेश में पहली बार स्थानीय व्यंजनों (लोकल रैसिपी) की न्यूट्रीशन वैल्यू नापी जाने की कवायद शुरू हो रही है। प्रत्येक जिले के एक सर्वश्रेष्ठ व्यंजन को अवार्ड देकर इसकी प्रसिद्धि का विस्तार किया जाएगा। अवार्ड के लिए व्यंजनों का चयन पोषण गुणवत्ता और उपयोग आदि के आधार पर किया जाएगा। प्रत्येक जिले के चयनित व्यंजनों की एक पुस्तक तैयार की जाएगी। 


यह कवायद राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग ने शुरू की है। व्यंजनों के साथ-साथ विभाग प्रदेशभर से स्थानीय भोजन, आदतें और खान-पान से जुड़े व्यवहार की जानकारी भी एकत्रित कर रहा है। यह कवायद एकीकृत बाल विकास सेवा के तहत आंगनबाड़ियों में बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य सामग्रियों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने और बेहतर पोषण आहार उपलब्ध को लेकर भी है। एकीकृत बाल विकास सेवा की आयुक्त पुष्पलता सिंह ने हाल ही में सभी जिलों के अधिकारियों से स्थानीय व्यंजनों एवं व्यवहारों से जुड़ी जानकारी मांगी है। प्रदेश की सभी परियोजनाओं से इस तरह की जानकारी एकत्रित की जा रही है। 
शासन की मंशा
मध्यप्रदेश खान-पान एवं संबंधी व्यवहारों में विविधता वाला राज्य है। यहां उगने वाले अनाज, फल, सब्जियों में भी विविधता पाई जाती है। प्राय: हर परिवार में खाने-पीने संबंधी अलग-अलग व्यवहार, आदतें एवं रैसिपी भी होती हैं। यदि इनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन किया जाए तो भोजन को पोषक एवं स्वास्थ्य वर्धक बनाया जा सकता है। इससे बेहतर पोषण के लिए विभिन्न खाद्य समूहों का नियमित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। 
ये होगा
- सभी परियोजनाओं से 25 फरवरी तक यह जानकारी मांगी गई है।
- रैसिपी का राज्य स्तर पर परीक्षण कर इनकी न्यूट्रीशन वैल्यू को मापा जाएगा।
- प्रत्येक जिले की सर्वश्रेष्ठ एक रेसिपी को एक हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
- चयनित रेसिपी से एक पुस्तिका का प्रकाशन किया जाएगा।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

दूषित पानी से बीमारियों की चपेट में सैकड़ों परिवार

बड़े और हाईप्रोफाइल नेताओं के क्षेत्र में भी नहीं पीने का साफ पानी

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

प्रदेश के 18 जिलों के लोग दूषित पानी पी रहे हैं। भू-जलस्रोतों के माध्यम से इन जिलों के अधिकांश लोगों के पास प्रदूषित पानी पहुंच रहा है। इनमें से अधिकांश लोगों के जनप्रतिनिधि प्रदेश के बड़े और हाईप्रोफाइल नेता हैं। इनके जिलों में विकास की अनेक परियोजनाएं क्रियान्वित हो रही हैं लेकिन पीने का पानी साफ नहीं हैं। कहीं पानी के साथ लोगों के शरीर में फ्लोराइड पहुंच रहा है तो कहीं नाइट्रेट से दूषित पानी पहुंच रहा है। कुछ जिले में लोग खारा पानी पी रहे हैं। 

इन जिलों के पानी के नमूनों की जांच में मुख्यत: फ्लोराइड, नाइट्रेट और सोडियम होना पाया गया है। यह तीनों पदार्थ अलग-अलग तरह की बीमारियों का कारण होते हैं। राज्य के जल संसाधन विभाग की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। प्रभावित क्षेत्रों में अधिकांश ग्रामीण इलाका है। इन जिलों में प्रदूषित पानी से लोगों को बचाने के लिए फिलहाल सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है। हालांकि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग फ्लोराइड युक्त पानी वाले भू-जलस्रोतों पर चेतावनी लिखता है। स्वास्थ्य विभाग के पास भी ऐसे क्षेत्रों के लिए कुछ अतिरिक्त कार्यक्रम है लेकिन यह सब नाकाफी है। 

किन-किन बीमारियों की आशंका

फ्लोराइड
- प्रभावित बस्तियों में लाइलाज फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। इसके कारण अनेक शारीरिक विकृतियां जैसे हड्डी रोग जनित समस्याएं दिखाई दे रही हैं। 
- फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के शरीर, रीढ़, गर्दन, पैर या हाथ की हड्डियां टेढ़Þी-मेढ़ी या अधिक कमजोर हो जाती है। दांत में धब्बे दिखाई देते हैं। 
नाइट्रेट
- नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक उपयोग से कृषि जमीन की उत्पादक क्षमता घटती है। नाइट्रेट युक्त पानी पीने से किसानों के परिवार बीमार हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इससे दुधमुंहे और छोटे बच्चों के शरीर में नीलापन (ब्लू बेबी सिंड्रोम) की बीमारी होती है। आंतों के कैंसर का खतरा होता है। 
- पानी में नाइट्रेट की अधिकता के कारण में अवांछित शैवाल की वृद्धि से मछली उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

यहां फ्लोराइड का खतरा
झाबुआ - मेघनगर ब्लाक
अलीराजपुर - जोबट
शिवपुरी - नरवर और करेरा ब्लाक
छिंदवाड़ा - छिंदवाड़ा ब्लाक
सिवनी - घनसौर, बरघाट, सिवनी ब्लाक
मंडला - मंडला ब्लाक
जबलपुर - गुप्तेश्वर वार्ड, मदनमहल वार्ड, रानी दुर्गावती वार्ड, त्रिपुरी वार्ड
यहां नाइट्रेट से पीड़ित
खंडवा - छैगांव, खलवा, पुनासा, हरसूद, पंधाना, खंडवा, बाल्डी ब्लाक
बुरहानपुर - खाकनेर, बुरहानपुर ब्लाक
खरगोन - कसरावद, खरगोन, महेश्वर, सेगांव, झिरनिया, गोगावा, बरवाहा, भीकनगांव, भगवानपुरा ब्लाक
बड़वानी - राजपुर, ठिकरी, पानसेमल, सेडवा, बड़वानी, निवाली, पाठी ब्लाक
धार - धार, तिरला, नालछा, कुक्षी, धरमपुरी, निसारपुर, बाग, सरदारपुर, बदनावर, उमरबन मनावर, ढही, गंधवानी ब्लाक
बैतूल - घोड़ाडोंगरी, चिचोली, भीमपुर, बैतूल, शाहपुर, आठनेर, भैंसदेही, आमला, मुलताई, प्रभातपट्टन ब्लाक
झाबुआ - मेघनगर, झाबुआ, रानापारा ब्लाक
अलीराजपुर - उदयगढ़ जोबट ब्लाक
सीहोर - सीहोर, इछावर, नसरूल्लागंज, बुदनी, आष्टा ब्लाक
विदिशा - सिरोंज, नटेरन, कुरवाई, बासोदा, विदिशा ब्लाक
रायसेन - गैरतगंज ब्लाक
नाइट्रेट : इन गांवों में सबसे ज्यादा खतरा
- खंडवा जिले के ग्राम बड़वानी में 788 मि.ग्राम/लीटर
- खरगोन  जिले के ग्राम शाहपुर में 744 मि.ग्राम/लीटर
- अलीराजपुर जिले के ग्राम अलीराजपुर में 722 मि.ग्राम/लीटर
- धार जिले के ग्राम लुमेराखुर्द में 774 मि.ग्राम/लीटर
- सीहोर जिले के ग्राम बैरागढ़खुमानी में 593 मि.ग्राम/लीटर
- भोपाल जिले के ग्राम हिनोती में 577 मि.ग्राम/लीटर
- विदिशा जिले के ग्राम जाटपुरा में 519 मि.ग्राम/लीटर
- रायसेन जिले के ग्राम बारखेड़ा में 438 मि.ग्राम/लीटर
- बैतूल जिले के ग्राम दुनावा में 255 मि.ग्राम/लीटर
यहां खारा पानी
- भिण्ड जिले का अटेर और मेहगांव ब्लाक
- धार जिले का तिरला, नालछा, धमरपुरी, बदनावर, डही और गंधवानी ब्लाक 
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यह स्थिति निश्चित तौर चिंताजनक है। अब तक भू-जल स्रोतों से प्राप्त पानी में फ्लोराइड होने के मामले ही सामने आते थे लेकिन अब नाइट्रेट और सोडियम की मात्रा बढ़ना, अनेक बीमारियों का कारण बनेगा। कृषि में नाइट्रोजन के बढ़ते उपयोग के कारण यह स्थितियां बनी हैं। ऐसा ही पंजाब ने किया था और आज वह कैंसर स्टेट के रूप में जाना जाता है। सरकार को चाहिए कि पानी के प्रबंधन और संरक्षण पर ज्यादा फोकस करे। प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुरक्षा के गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है। 
सचिन जैन, कार्यकर्ता, विकास संवाद

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

ज्यादा फसल के लालच में जहरीला कर दिया ग्राउंड वाटर

- कई इलाकों में काफी गहराई पर भी साफ नहीं बचा पानी
- भू-जल स्रोतों में नाइट्रेट एवं फ्लोराइड का प्रदूषण
- चार साल की मॉनीटरिंग के आए नतीजे, प्रदेश में बिगड़ी पानी सेहत

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keyword : Madhya Pradesh, Ground Water, Flo-ride, fluoride, Nitrate, MPWRD, MPHED

प्रदेश में नदियों-तालाबों के प्रदूषित होने के बाद अब भू-जल यानी ग्राउंड वाटर भी स्थिति भी ठीक नहीं है। मप्र में जमीन के नीचे का पानी भी तेजी से प्रदूषित हो रहा है। प्रदेश के कई हिस्सों में स्थिति इतनी चिंताजनक है कि जमीन में काफी गहराई पर भी प्रदूषित जल मिलना शुरू हो चुका है। 


प्रदेश में भू-जल को लेकर पिछले चार सालों में मॉनीटर किए कूपों एवं बोरवेल के भू-जल स्रोतों की गुणवत्ता अध्ययन रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। यह अध्ययन मप्र राज्य भू-जल सर्वेक्षण संगठन, जल संसाधन विभाग द्वारा किया गया है। यह अध्ययन रिपोर्ट विभाग ने एक फरवरी को जारी की है। भू-जल फ्लोराइड, नाइट्रेट, लौह तत्व तथा खारेपान के कारण प्रदूषित हुआ है। प्रदेश के 9 जिलों में नाइटेÑट के कारण भू-जल प्रदूषित हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जिलों में पैदा वाली मुख्य फसलें कपास, गन्ना, सोयाबीन, गेहूं और ज्वार हैं। इन फसलों के अधिक उत्पादन के लिए उपयोग में आने वाली नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिकता भू-जल में नाइट्रेट के रिसाब का मुख्य कारण हो सकता है। 
सिंचाई के योग्य भी नहीं बचा पानी
रिपोर्ट के अनुसार मुख्य रूप से 18 जिले बैतूल, खरगोन, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, भोपाल, रायसेन, सीहोर, विदिशा, भिंड, मंडला, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और जबलपुर के 93 विकासखंडों की 1300 से ज्यादा बसाहटों में भू-जल स्रोत में एक या एक से अधिक घुलनशील घातक तत्व जैसे फ्लोराइड, नाइटेÑट, लौहतत्व, और खारेपन की मात्रा मानक स्तर से अधिक पाए जाने के कारण पानी पीने या सिंचाई योग्य नहीं पाया गया। इन 93 विकासखंडों में से पेयजल के लिए 17 ब्लाक सुरक्षित, 23 ब्लाक सेमी क्रिटिकल तथा 51 ब्लाक क्रिटिकल श्रेणी में रखे गए हैं। इसके अलावा कृषि के लिए जल में खारेपन की मात्रा के अनुसार 79 ब्लाक सुरक्षित, 10 सेमीक्रिटिकल और 4 ब्लाक को क्रिटिकल श्रेणी में रखा गया है। 
यहां फ्लोराइड मानक से ज्यादा
9 जिलों मंडला, डिंडोरी, झाबुआ, अलीराजपुर, शिवपुरी, सिवनी, धार छिंदवाड़ा और जबलपुर के 29 ब्लाक की 170 बस्तियों में फ्लोराइड की मात्रा मानक स्तर 1.5 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है। कई बस्तियों में फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। सिवनी के बरघाट ब्लाक के धाना गांव में फ्लोराइड की सबसे अधिक मात्रा 14.2 मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई है। 
यहां नाइट्रेट मानक से ज्यादा
10 जिलों खरगोन, खंडवा, बड़वानी, झाबुआ, बैतूल, धार, भोपाल, रायसेन, सीहोर और विदिशा के 81 ब्लाक में मानीटर किए गए 1227 बसाहटों के कूपों एवं बोरवेल में से 831 (68 प्रतिशत) में नाइट्रेट मानक स्तर 45 मिली ग्राम प्रति लीटर से काफी ज्यादा पाया गया। बड़वानी ब्लाक के बड़वानी गांव में नाइट्रेट सबसे अधिक 788 मिली ग्राम प्रति लीटर है। 
यहां लौह तत्व मानक से ज्यादा
घुलनशील लौह तत्व की उपस्थित प्रमुख रूप से बैतूल जिले के 7 ब्लाक की 23 बसाहटों में एवं रायसेन जिले की तीन बसाहटों में अपने मानक स्तर 1.0 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है। साथ ही भिंड, धार, झाबुआ, सीहोर, भोपाल, रायसेन, विदिशा, खरगोन, बैतूल और खंडवा जिलों की 324 बसाहटों के भूमिगत जल में खारापन पाया गया। इन जल स्रोतों में विद्युत संचालकता की मात्रा अपने मानक स्तर 1500 माइक्रोमोस/सेंमी से अधिक पाई गई है। भिंड जिले के अटेर एवं मेहगांव ब्लाक को क्रिटिकल श्रेणी (अत्यधिक लवणयुक्त जल) में रखा गया है। भिंड जिले के ही ग्राम केसवी में सबसे अधिक खारापन 3410 माइक्रोमोस/सेंमी पाया गया है। यह मिट्टी की उर्वरकता एवं पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालता है। 
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नुकसान
फ्लोराइड
- प्रभावित बस्तियों में लाइलाज फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। इसके कारण अनेक शारीरिक विकृतियां जैसे हड्डी रोग जनित समस्याएं दिखाई दे रही हैं। 
- फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के शरीर, रीढ़, गर्दन, पैर या हाथ की हड्डियां टेढ़Þी-मेढ़ी या अधिक कमजोर हो जाती है। दांत में धब्बे दिखाई देते हैं। 
नाइट्रेट
- नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक उपयोग से कृषि जमीन की उत्पादक क्षमता घटती है। नाइट्रेट युक्त पानी पीने से किसानों के परिवार बीमार हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इससे दुधमुंहे और छोटे बच्चों के शरीर में नीलापन (ब्लू बेबी सिंड्रोम) की बीमारी होती है। आंतों के कैंसर का खतरा होता है। 
- पानी में नाइट्रेट की अधिकता के कारण में अवांछित शैवाल की वृद्धि से मछली उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
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बचाव के लिए दिए ये सुझाव
  • जहां भू-जल में घातक तत्व पाए गए हैं, वहां सुनिश्चित किया जाए कि पीने के पानी का उपयोग सिर्फ पीने के लिए हो। 
  • फ्लोराइड एवं लौहतत्व वाले इलाकों में भू-जल स्रोत बंद कर वैकल्पिक प्रबंध किए जाएं। 
  • जिन खाद्य पदार्थों में फ्लोराइड अधिक होता है, उनका उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में नहीं किया जाए। 
  • जैविक उर्वरक एवं प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं परलोकेशन टैंक के जरिए भू-जल स्तर बढ़ाकर भू-जल स्रोतों हानिकारक तत्वों की मात्रा कम की जा सकती है। 

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प्रदेश में भू-जल का उपयोग मुख्यत: कृषि एवं पेयजल के लिए किया जाता है। इसलिए भूजल में उपस्थित हानिकारक तत्वों की मात्रा का आकलन आवश्यक हो गया है। सामान्यत: माना जाता है कि जमीन के भीतर गहराई पर पाया गया पानी अधिक साफ और कम रासायनिक प्रदूषित होता है, पर प्रदेश के कई इलाकों में काफी गहराई पर जा चुके भू-जल स्रोतों में भी नाइट्रेट एवं फ्लोराइड से प्रदूषित जल मिलना शुरू हो चुका है, जो चिंता का विषय है। यह प्रकाशन जन सामान्य में जागरूकता एवं समाधान के साथ ही भूजल संबंधी कार्यों में लगे शोद्यार्थियों, शासकीय अमले के लिए उपयोगी होगा। 
एमजी, चौबे, ईएनसी, जल संसाधन विभाग मप्र 

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

दो युवाओं के स्टार्टअप ने बदली किसानों की जिंदगी

- मप्र और अन्य राज्यों के एक हजार से ज्यादा किसान जुड़े
- जड़ी बूटियों की जैविक खेती, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन
- नीमच से शुरू कर आठ देशों में पहुंचाया कारोबार

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Word: Start up India, Startup Madhya Pradesh, Organic Farming, Youth Initiative, Farmers

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टार्टअप इंडिया अभियान से पहले मप्र के दो युवाओं ने ऐसा कुछ कर दिखाया है जो बड़े-बड़े बिजनेस हाउस, उद्योगपतियों और पंूजीपतियों के लिए तो सबक है, साथ ही इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से दुनिया को अपने में समेटने का उदाहरण भी है। मध्यप्रदेश के नीमच जिले के दो युवाओं, शैलेंद्र धाकड़ और राजेश सागीतला ने जैविक खेती के माध्यम से किसानों के साथ मिलकर अपनी अब तक सात करोड़ का सलाना टर्न ओवर करने वाली कंपनी बना डाली है। इसमें यह खुद केवल मुनाफा नहीं कमाते हैं, बल्कि किसानों को भी संपन्न बना दिया।

शैलेन्द्र और राजेश ने वर्ष 2012 में जैविक और नेचुरल हर्बल इंडस्ट्रीज के क्षेत्र में काम को शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने कॉर्मल आॅर्गेनिक नाम से एक कंपनी बनाई। इन दोनों दोस्तों ने सबसे पहले नीमच और आसपास के किसानों को जोड़ा और इनके समूह बनाए। इन्हें स्मार्ट खेती के लिए प्रेरित किया। इन दोनों अपने अपनी आईडिया और स्टडी के आधार पर इन किसानों को जैविक तरीके से औषधीय पौधों की खेती के लिए तैयार किया। इसके लिए उच्च गुणवत्ता के बीज तैयार किए गए है, पौधरोपण के तरीके सिखाए और इनके रखरखाव में किसानों के साथ खुद भी मेहनत की। इसका नतीजा यह हुआ कि अनेक तुलसी, हल्दी, साइप्रस, हरड़, मुलैठी, अश्वगंधा, गुलमर, लैमनग्रास, सनाय और नीम जैसे अनेक औषधीय फसलें तैयार कीं। इसके लिए पहले उन्होंने नीमच जिले के किसानों को साथ लिया, फिर मप्र के कुछ दूसरे जिलों में उन्हें किसानों को जोड़ने में सफलता मिली। इस सफलता के बाद उन्होंने दूसरे राज्यों के किसानों के बीच भी यही प्रयोग किए। इससे किसानों की आय में काफी इजाफा हुआ और उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी। खास बात यह है कि इस काम की शुरूआत में उन्होंने किसी तरह की सरकार मदद ली। 
ऐसे चला बिजनेस
इन औषधीय पौधों की खेती भर करना इनका मकसद नहीं था। इन दोनों ने नीमच में ही इनकी प्रोसेसिंग का काम शुरू किया और फिर इसकी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए जुट गए। आज स्थिति यह है कि इन दोनों अनेक उत्पाद तैयार कर लिए हैं जो ब्रांड के रूप में स्थापित हो चुके हैं। 
आठ देशों में सप्लाई
कार्मल आॅर्गेनिक के उत्पाद आज भारत के साथ-साथ आठ देशों में सप्लाई हो रहे हैं। जैविक और हर्बल नेचुरोपैथी के यह उत्पाद ज्यादा फार्मा कंपनियां इस्तेमाल कर रही हैं। 
छह करोड़ का सलाना टर्न ओवर
इन दोनों युवाओं की इस कंपनी में इस वक्त 20 लोगों की टीम काम कर रही है। एक हजार से ज्यादा किसान इनसे जुड़े हैं और कंपनी का सलाना टर्न ओवर छह से अधिक का है। 

‘कान्हा’ बनेगा कैदियों की पहचान

 - बड़े ब्रांड को टक्कर देने की तैयारी में मध्य प्रदेश की जेलों में बंद कैदी
- हॉर्टीकल्चर, फ्लोरीकल्चर और डेयरी उत्पाद भी होंगे जेलों में तैयार

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key word : Prison, Madhya Pradesh Jail Department, Prison break producer, Kanha 

भोपाल। प्रदेश की जेलों में बनने वाली सामग्रियां अब केवल जेलों में ही इस्तेमाल नहीं होंगी। अब इन्हें बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है। कैदियों द्वारा निर्मित यह सामग्री बाजार में ‘कान्हा’ के ब्रांड नेम से बिकेगी। जेलों में अब तक परंपरागत रूप से जो सामान बनता है, अब इससे आगे जाकर कई नए-नए उत्पाद भी अब कैदी तैयार करेंगे। 

प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों के स्किल डवपलमेंट और जेल में बनने वाली सामग्रियों के वृहद रूप में विक्रय के लिए जेल विभाग ने कवायद पूरी कर ली है। जेल विभाग की योजना को राज्य योजना आयोग ने भी मंजूरी देते हुए बजट राशि में इजाफा किया है। जेलों में नई मशीनरी लगाने की योजना है। फिलहाल जेलों में 10 से 15 प्रतिशत ही उत्पादन होता है। नई प्लान के मुताबिक एक साल में इसे बढ़ाकर 60 प्रतिशत ले जाया जाएगा। जेल में बनने वाले यह उत्पाद न केवल खुले बाजार में बेचने की योजना है बल्कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों भी इन उत्पादों को खरीद सकेंगे। 
विभाग बिना टेंडर कर सकेंगे खरीदी
लघु उद्योग निगम और सहकारी संघ जैसी सरकारी उपक्रमों के साथ ही अब सरकारी विभाग जेलों से भी सामग्री खरीद सकेंगे। यानी अब जेल विभाग भी प्रदेश में परचेसिंग एजेंसी होगा। इसके लिए राज्य सरकार ने भण्डार क्रय नियमों में संशोधन किए हैं। खासबात यह है कि जेलों में कैदियों द्वारा बनाई जाने वाली सामग्री जेल विभाग द्वारा निर्धारित दरों पर खरीदी जा सकेगी। सरकारी विभागों को इसके लिए टेंडर बुलाने की जरूरत नहीं होगी। 
क्वालिटी और ब्रांड वेल्यू
जेल विभाग के अधिकारियों ने कहना है कि कान्हा ब्रांड के लिए पांच साल की कार्ययोजना तैयार की गई है। इन पांच सालों में कान्हा ब्रांड को स्थापित करने और क्वालिटी पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। फिलहाल मप्र में ही कान्हा ब्रांड की वस्तुओं को योजना है लेकिन इसे प्रदेश के बाहर भी ले जाया जाएगा। 
जेलों में अभी यह काम होते हैं...
कंबल, दरी, चादर, बंदी वस्त्र, कारपेट, फर्नीचर, हस्तकला वस्तुएं, जैविक खाद, स्लीपर, फिनायल, साबुन, वाशिंग पावडर अगरबत्ती। इसके अलावा कई जेलों में आफसेट प्रिंटिंग और पेटिंग्स के काम भी किए जाते हैं। 
यह सामान भी बनाएंगे कैदी...
कृषि क्षेत्र से संबंधित वस्तुओं के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही फ्लोचीकल्चर और हॉर्टीकल्चर से संबंधित उत्पादन भी तैयार किए जाएंगे। जेल विभाग के पास 10 गौशालाएं हैं लिहाजा डेयरी प्रोडक्ट के क्षेत्र में भी कैदियों को उतारा जाएगा। 
लेबर भी उपलब्ध कराएगा 
प्रदेश की जेलों में बड़ी संख्या में बंद कैदियों के स्किल डवलपमेंट के लिए जेल विभाग श्रम आधारित सेवाएं भी शुरू करना चाहता है। यरवदा जेल में हुए प्रयोग के बाद प्रदेश की जेलों में इस प्रयोग को करने की कवायद है। इसमें जेल विभाग लेबर उपलब्ध कराएगा। यदि कोई कंपनी या संस्था कैदियों से कोई काम कराना चाहती है तो उन्हें वह काम सिखाकर तथा निर्धारित मजदूरी का भुगतान करने, पर उसे यह सेवा उपलब्ध कराई जाएगी। 
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हमारा फोकस बंदियों के स्किल डवपलमेंट है ताकि जब वे जेल से छूटे तो उनके हाथ में कोई न कोई हुनर हो। लेबर इंटेनसिव काम पर भी हमारा ध्यान है। जेलों में निर्मित उत्पादों को ‘कान्हा ’ ब्रांड नेम दिया गया है। अभी जो उत्पादन तैयार हो रहे हैं, उनके अलावा कई नाम उत्पाद तैयार करने की योजना है।
सुशोभन बनर्जी, एडीजी, जेल

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

गरीब महिलाओं के हाथों में आई ‘पंचायत सत्ता’ की कमान

गणतंत्र की ताकत : पंच-सरपंच, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य चुनीं गर्इं साढ़े पांच हजार महिलाएं

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

Key words : Madhya Pradesh, Women Empowerment, Rural Women, Panchayati Raj 

विविधताओं से भरे भारत देश की एकता और अखंडता इसकी पहचान रही है। देश में अनेक रूपों में दिखाई देने वाली इस अखंडता, एकता और समूह शक्ति ने लोकतंत्र के विकास को नए आयाम दिए हैं। मप्र के छोटे-छोटे गांवों, कस्बों, इलाकों और अंचलों में इस समूह शक्ति के दम पर आधी आबादी यानी महिलाओं ने ‘पंचायतों की सत्ता’ अपने हाथ में ले ली है। इन गरीब और इनमें कुछ अति गरीब महिलाओं ने इस मिथक को भी तोड़ दिया है कि धनबल और बाहुबल के आधार पर ही चुनाव जीते जाते हैं। इन महिलाओं ने गणतंत्र और समूह शक्ति को चरितार्थ करते हुए एक दो नहीं पंचायतों के 5 हजार 412 पदों पर कब्जा किया। 

मप्र में पिछले साल हुए पंचायतों के चुनाव में जिला पंचायत सदस्य, जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य तथा पंच-सरपंच के साढ़े पांच हजार पदों पर राज्य आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूहों की महिलाएं चुनीं गर्इं हैं। इनके चुने जाने की मुख्य वजह यह रही है कि समूहों की सदस्यों ने प्रत्याशी चुनें, प्रचार किया और पूरे-जोर शोर से अपने समूह की महिला उम्मीदवार को जिताने में जुट गए। नतीजा यह हुआ कि राजनीति करने वाले अनेक धुरंधर इनके आगे नतमस्तक हो गए। इन महिलाओं ने समूह से जुड़कर पहले अपनी आजीविका के साधन तैयार किए। जब परिवार का भरण-पोषण करने की स्थिति में आ गर्इं तो फिर ग्रामीण विकास के लिए पहला कदम अपने गांव और अपनी पंचायत से ही उठाया। यह सभी गरीब महिलाएं पंचायत के विभिन्न पदों पर चुनकर बेहतर प्रशासन चला रही हैं। 
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पंचायतों की सत्ता में समूह से जुड़ीं गरीब महिलाएं

निर्वाचित पद का नाम संख्या
जिला पंचायत सदस्य 8
जनपद पंचायत अध्यक्ष 4
जनपद पंचायत उपाध्यक्ष         2
जनपद पंचायत सदस्य 136
ग्राम पंचायत सरपंच         667
ग्राम पंचायत उप सरपंच 40
ग्राम पंचायत पंच        4555
कुल                 5412

यह हमारे लिए गौरव की बात है कि मिशन से जुड़ीं महिलाएं न केवल अपने आर्थिक विकास के लिए परिश्रम कर रही हैं बल्कि उनमें इतनी जागरूकता आई है कि वे अब अपने गांव और प्रदेश के विकास के लिए भी सोचने लगी हैं। इतनी बड़ी संख्या में इन गरीब महिलाओं को चुना जाना, निश्चित तौर पर लोकतंत्र को मजबूती देता है।
- एलएम बेलबाल, सीईओ, एमपीएसआरएलएम

राष्ट्रीय बालिका दिवस : इन बच्चियों के हौंसले को सलाम...

- बाल विवाह के विरूद्ध बुलंद की आवाज 

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

प्रदेश में बाल विवाह की कुरीति के खिलाफ अब खुद लड़कियां आगे आ रही हैं। प्रदेश में एक दर्जन से ज्यादा ऐसी जांबाज लड़कियां हैं जिन्होंने उम्मीद मिसाल कायम की है। बाल विवाह की शिकार इन लड़कियों ने अपने परिवार के फैसलों के विपरीत जाते हुए न केवल ससुराल जाने से मना किया बल्कि विवाह को ही शून्य कराया। यानी बचपन में हुइ शादी को अमान्य कर दिया। इन बच्चियों से कई लड़कियां अभी पढ़ाई-लिखाई कर रही हैं तो कुछ प्रशिक्षण लेकर अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयास में जुटी हैं। प्रदेश में महिला खासकर लड़कियों के विकास लिए चल रहीं अनेक योजनाओं ने इस जागरूकता में अहम भूमिका निभाई है। बाल विवाह की कुरीति के खिलाफ आई जागरूकता का श्रेय प्रदेश के लाडो अभियान को दिया जाता है। योजनाबद्ध रूप से बालिकाओं की जारूकता के लिए चलाए गए इस अभियान में बड़ी संख्या में समुदाय की भागीदारी भी हो रही है। 

इन्होंने दिखाई हिम्मत

ससुराल जाने से ना किया तो घर से निकाला 
मंदसौर जनकूपुरा निवासी किशोरी का विवाह परिजन ने 4 साल पहले निंबाहेड़ा (राज.) के महेंद्र बंजारा से कराया था। कुछ दिन पहले माता-पिता व भाई ससुराल जाने का दबाव बनाने लगे। विरोध किया तो उसे घर से ही निकाल दिया। फिलहाल किशोरी आश्रयगृह में रह कर 11वीं की पढ़ाई कर रही है। उसका आवेदन महिला सशक्तिकरण कार्यालय के पास पहुंचा है।
16 वर्ष की उम्र है और दो बार हो चुका विवाह 
टाकेड़ा की 16 वर्षीय किशोरी का विवाह एक साल पहले जोटावद महिदपुर रोड निवासी जीतू पिता शांतिलाल से हुआ था। आठवीं में पढ़ने वाली किशोरी के पिता ट्रक ड्राइवर हैं। पता चला किशोरी का दो बार विवाह हो चुका है।
माता पिता को समझा कर विवाह शून्य कराने पहुंची 
मंदसौर के ही गलियाखेड़ी की 17 वर्षीय एक लड़की का विवाह दो वर्ष पहले झावल निवासी महेश बैरागी से करा दिया था। यह किशोरी फिलहाल पढ़ रही है।
मां-मामा ने की शादी, ‘लाडो’ से मिली प्रेरणा 
निंबोद की 11वीं की छात्रा का विवाह मां व मामा ने दो वर्ष पहले मिरावता तहसील अरनौद के प्रेम मीणा से कर दिया। मार्कशीट के अनुसार वतर्मान में छात्रा की उम्र 16 साल है। स्कूल में लाडो अभियान से प्रेरित हो विभाग के कार्यालय पहुंचकर विवाह शून्य घोषित कराने का आवेदन दिया।
श्यामू को सलाम
कु. श्यामू बाई बैस आज बी.ए. फाइनल की छात्रा है। वह अगर साहस नहीं दिखाती तो बाल-विवाह की बुराई से अभिशप्त होकर अपना जीवन बर्बाद कर लेती। उसने वर्ष 2005 में हुए अपने बाल-विवाह का विरोध किया और ससुराल जाने से इंकार कर दिया। उसकी इस हिम्मत के सामने मां-बाप भी नतमस्तक हुए। श्यामूबाई ने सिर्फ ससुराल जाने से ही इंकार नहीं किया बल्कि अपने विवाह को न्यायालय के जरिए शून्य भी घोषित कराया। उसके इस कार्य में शौर्या दल ने सहायता की। श्यामूबाई को सामाजिक कुरूतियों के विरूद्ध लड़ी गई लड़ाई के लिए रानी अवंती बाई वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इन्होंने सूचना देकर रुकवाया अपना विवाह
इंदौर कु. दिव्या राठौर और कु. मुस्कान भार्गव ने स्वयं आवेदन देकर अपना बाल विवाह रूकवाया। इसी तरह का साहस मंदसौर की भुवनेश्वरी रेकवार, सीहोर जिले की कु. मंजु वंशकार, अनूपपुर की पिंकी शुक्ला, काजल, मांगी पाटीदार, ज्योति, अनीता, ममता, रानू भावसार अहिरवार और देवास की आरती जाट ने दिखाया और अपना बाल विवाह रूकवाने के साथ ही शून्य घोषित करवाया। मंदसौर की ज्योति और देवास जिले के सिंगवादा की भारती जाट का विवाह तो 50 वर्ष की आयु के व्यक्ति से करवाया जा रहा था। इन दोनों ने भी महिला एवं बाल विकास को सूचना देकर अपना विवाह रुकवाया।
लाड़ो अभियान ने रोके कई बाल-विवाह
प्रदेश में सरकार ने लाड़ो अभियान के जरिये बाल-विवाह पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिये सभी जिले के लिये कार्य-योजना बनाकर कार्य किया। सभी ग्राम में कोर-ग्रुप का गठन कर उन्हें बाल-विवाह रोकने की जवाबदारी दी गयी। बाल विवाह को रोकने में शिक्षण संस्था, धार्मिक, ग्राम-पंचायत के सरपंच, वार्ड पार्षद और गाँव की नाईन को भी सदस्य बनाया गया है। पूरे प्रदेश में 4 लाख 7 हजार लोग कोर-ग्रुप के सदस्य हैं। अभियान में अभी तक 22 हजार 288 जागरूकता कार्यक्रम किये जा चुके हैं। इससे 51 हजार 835 बाल-विवाह पर रोक लगी। कई बालिकाओं के विवाह शून्य घोषित किये गये। अभियान के जरिये एक लाख 11 हजार 430 बच्चों को स्कूल में दाखिला भी दिलवाया गया।

जेंडर बजट : महिलाओं के नाम पर नहीं चलेगी खाना पूर्ति

- विभागों को वार्षिक प्रतिवेदन में देनी होगी विस्तृत और स्पष्ट जानकारी

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

मप्र में महिलाओं के सशक्तिकरण और कल्याण के लिए जेंडर बजट की व्यवस्था लागू होने के बाद अब इसे मजबूत किया जा रहा है। जेंडर बजट के नाम पर विभाग हर साल क्या करते हैं, अपने वार्षिक प्रतिवेदन में इसकी जानकारी देने नाम पर अब तक खानापूर्ति होती रही है। यही वजह है कि इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सभी विभागों के स्तर पर कोई बड़ी पहल या कार्यवाही नहीं हुई, जिससे यह व्यवस्था सार्थक हो पाती है। 

इस स्थिति के राज्य सरकार ने जेंडर बजट व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हाल ही में कुछ कदम उठाए हैं। अब सभी विभागों को इस व्यवस्था के तहत किए गए कार्यों की विस्तृत और स्पष्ट जानकारी हर साल विधानसभा को देनी होगी। विधानसभा के बजट सत्र में विभागों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अपने वार्षिक प्रतिवेदनों में जेंडर बजट का अलग से विस्तृत चैप्टर होगा। इस चैप्टर में क्या-क्या जानकारियां देनी हैं, इसकी जानकारी सभी विभागों को भेज दी गई है। उन बिंदुओं और जानकारियों को अलग-अलग वर्गीकृत किया गया है, जिनकी जानकारी देना अनिवार्य होगी। 

ऐसा होगा जेंडर चैप्टर
- खंड एक : जेंडर मुद्दे, जेंडर गेप, प्रमुख मानकों की स्थिति
इस खंड में विभागीय योजनाओं और विभागों से संबंधित जेंडर मुद्दे होंगे। कम से कम तीन जेंडर मुद्दों पर जानकारी देनी होगी। खासकर वे जिन पर तत्काल काम करने की जरूरत है। 
उदाहरण : स्कूल शिक्षा विभाग इस खंड में जानकारी
देगा कि बालक-बालिकाओं की शैक्षणिक स्थिति, नामांकन, समय पूर्व शाला छोड़ने की स्थिति, साक्षरता दर एवं इसी प्रकार की अन्य जानकारी। इसके अलावा कृषि, नगरीय विकास, आधारभूत संरचना आदि क्षेत्र जहां स्त्री और पुरूषों के अलग-अलग आंकड़े जाना कठिन होता है, वहां प्रमुख मानकों के संदर्भ में जेंडर गेप्स पर टिप्पणी देनी होगी।
- खंड दो : जेंडर मुद्दों पर विभाग की पहल
यह खंड विभागों की उन नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों पर केंद्रित होगा जो जेंडर मुद्दों आर जेंडर गेप्स की पूर्ति के लिए हैं। 
उदाहरण : केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जेंडर मुद्दों को राष्ट्रीय कृषि नीति 2000 में प्रमुख देने की पहल की है। किसानों पर राष्ट्रीय नीति 2007 में मानवीय और जेंडर पक्ष को सभी कृषि नीतियों और कार्यक्रमों में एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य के रूप में शामिल किया गया है। 
खंड तीन : प्रमुख उपलब्धियां और चुनौतियां
इस खंड में योजनाओं और नीतियों, उनकी उपलब्धियों और चुनौतियों पर विभाग की जानकारी होगी। 
- खंड चार : केस स्टडी और गुड प्रेक्टिस
इस खंड में उन उदाहरणों को शामिल किया जाएगा जो विभाग के जेंडर विषयक लक्ष्यों की पूर्ति में मार्गदर्शक हों। 
- खंड पांच : आगामी रणनीति
इस खंड में विभाग द्वारा जेंडर मुद्दों को प्रमुखता से विभागीय नीतियों, कार्यक्रमों और योजनओं में शामिल करने के लिए भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों तथा पहलुओं का उल्लेख होगा। 
उदाहरण : राष्ट्रीय कृषि नीति में जेंडर सरोकारों को कृषि तथा उससे जुड़े अन्य मुद्दों में महिलाओं की क्षमता व विकास, उत्पादन संसाधनों तक उनकी पहुंच, नियंत्रण तथा स्वामित्व के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। 
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प्रत्येक विभाग द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किए जाने वाले अपने वार्षिक प्रतिवेदन में जेंडर बजट से संबंधित मुद्दों के लिए एक चैप्टर शामिल करने के लिए कहा गया है। इसके लिए कुछ मार्गदर्शक बिंदू विभागों को सुझाए गए हैं। 
डॉ. अमिताभ अवस्थी, उप सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग, मप्र शासन

मप्र में ‘देवदासी’ को लेकर गंभीर नहीं सरकार

- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कुप्रथा पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए- विदिशा, रायसेन और राजगढ़ जिलों में जारी है यह प्रथा

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

मप्र के कुछ जिलों में ‘देवदासी’ प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी यानी महिलाओं से वैश्यावृत्ति कराने की परंपरा। मप्र के रायसेन, विदिशा और राजगढ़ जिलों के कुछ गांवों में यह कुप्रथा सर्वाधिक है जबकि कुछ अन्य जिलों में भी कहीं-कहीं यह जारी है। मुख्यत: नट और बेड़िया समाज की इस कुप्रथा पर समय-समय पर मीडिया रिपोर्ट आने के बाद भारत सरकार ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में मप्र सरकार से कहा है कि इस कुप्रथा पर तत्काल रोक लगाने, पुनर्वास करने और महिलाओं की गरिमा से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने को कहा है।

हाल ही में गृह मंत्रालय का यह पत्र राज्य के मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव गृह का मिला है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि देवदासी प्रथा का किसी भी रूप में बने रहना पूरी तरह से आईपीसी की धारा 370 व 370-ए का उल्लंघन है। इस पत्र में कहा गया है कि देवदासी प्रथा अमानवीय है और महिलाओं के स्तर को गिराने वाले सबसे जघन्य अपराधों में से यह एक है। पत्र में कहा गया है कि विभिन्न पीआईएल और मीडिया में आई खबरों से पता चलता है कि विभिन्न क्षेत्रों में कुछ समुदायों, खासतौर पर बेड़िया और नट समुदायों में धार्मिक रीति रिवाज के नाम पर देवदासी प्रथा अभी भी चल रही है।
मप्र में ऐसी है स्थिति
विदिशा, राजगढ़ और रायसेन जिलों के साथ ही मध्यप्रदेश के पचासों गांवों में यह गंदा काम हो रहा है। देह बेचकर घर-बार चलाना उनकी मजबूरी है, जो परंपरा बनकर वर्षों से चली आ रही है। कई गांवों में सिर्फ बेटियों से ही देह व्यापार कराया जाता है, बहूओं को इससे दूर रखते हैं। बेड़िया जाति का परंपरागत नृत्य राई भी इसी कारण से बदनाम हुआ है। इसकी आड़ में देह व्यापार किया जाता है। यहां खुलेआम देह-मंडी सजती है। यहां रहने वालीं नट, बेड़िया के अलावा बछड़ा, कंजर और सांसी जातियों की में भी यह कुप्रथा होने की बात समय-समय पर सामने आई है। 
सरकार के प्रयास विफल
मप्र में ऐसी जातियों को अनुसूचित जाति, जनजाति एवं घुमक्कड़ एवं अर्धघुमक्कड़ जातियों के रूप में चिन्हित किया गया है। पूर्व में सरकार ने इन कुप्रथा को खत्म करने के लिए इन समुदायों के लोगों को एक योजना के तहत जमीनें उपलब्ध करार्इं थीं लेकिन बंजर होने के कारण जमीनें इनके रोजगार का साधन नहीं बन पार्इं। वर्ष 2013 में मुख्यमंत्री निवास में विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्ध घुमक्कड़ जातियों की पंचायत बुलाई गई थी, जहां इन जातियों के विकास के लिए घोषणाएं हुर्इं थीं। 
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मप्र में विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्धघुमक्कड़ जातियों के विकास, कल्याण, शैक्षिक-आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए मप्र सरकार लगातार काम कर रही है। इन समुदायों के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए नए छात्रावास तैयार किए गए हैं। रोजगार के साधन उपलब्ध कराएं जा रहे हैं। इन समुदायों की ऐसी परंपराओं के प्रति जागरूक किया जा रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने जो निर्देश दिए हैं, उनका सख्ती से पाल भारत सरकार के निर्देशों का पालन सख्ती से कराया जाएगा। 
ज्ञान सिंह, मंत्री विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्धघुमक्कड़ विभाग, मप्र 

सरकार फेल, किसान जीते

- सरकार नहीं बना पाई कृषि को लाभ का धंधा, छोटे किसानों ने बनाया
- 90 डिसमिल जमीन से ही निकाली तरक्की की राह
डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
पिछले 10-12 सालों से प्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने की कोशिशों में जुटी मप्र सरकार भले ही अब तक इस काम को नहीं कर पाई है लेकिन प्रदेश में ऐसे सैकड़ों किसान हैं जिन्होंने अपने बल-बूते इस काम को कर लिया है। इनमें से अधिकांश ऐसे किसान हैं जो बहुत छोटे-छोटे रकबे में खेती कर रहे हैं। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए सरकार के दावों और भाषणबाजी से दूर यह किसान अपने खेतों में छोटे-छोटे नवाचार करते हैं, नई-नई फसलें लेते हैं और खेत के हरेक हिस्से का पूरा उपयोग करते हैं। इसी का नतीजा है कि जहां प्राकृतिक आपदा के बाद भी कुदरत इन पर मेहरबान है। यह न तो सरकार के किसी एक्शन प्लान का हिस्सा हैं और न ही इन तक कोई बड़ी सरकारी मदद पहुंचती है। इसके बावजूद इन्होंने खेती को लाभ का धंधा बना लिया है। इन किसानों की सफलता के पीछे इनकी नवाचारी सोच तो है ही, इन्होंने अपने खेतों में खुद मजदूरी भी की। 

90 डिसमिल में कुंवर के कमाल
हरदा जिले के गांव छिदगांव तमोली के छोटे किसान कुंवर सिंह राजपूत की समृद्धि छोटी जोत के किसानों के लिए बड़ा उदाहरण है। केवल 90 डिसमिल जमीन में कुंवर ने विविध प्रकार की बागवानी फसलें लगाकर न केवल मुनाफा कमाया बल्कि खेती को एक नया आयाम भी दिया है। कुंवर ने अपने इस छोटे से खेत में तीन प्रकार की सबिज्यां लगार्इं। इसमें से तीन सब्जियां लौकी, कद्दू और गिलकी सिर्फ खेत की बागुड़ पर लगाई। इस बार उन्होंने बागुड़ पर लौकी से ही पांच हजार कमाएं हैं। उनके खेत में 10 किलो तक की लौकी आ चुकी है।  इस छोटे से खेत में प्याज की पौध, मक्का और चना लगाकर वे खुशहाली की तरफ बढ़े। 
उमा की मेहनत का रंग
इसी गांव की निवासी उमादेवी अपने छोटे से खेत में अपनी पति की मदद करती है। छोटे से खेत से निकलने वाली पत्तियों और सब्जियों से वे गाय और भैंस पाल रही हैं। यह उनके परिवार की आमदनी का अतिरिक्त स्रोत बन गया। 
और ये किसान भी हैं मिसाल
भजन सिंह सिंधा - भिंडी, ज्याज लहसुन की खेती। 
ह्रदयराम राजपूत - सब्जियां लगार्इं। बेचने तक का काम खुद ही।
अमरदास ढोके - हल्दी लगाई, मुनाफा कमाया
सुंदरलाल सैनी - सौताड़ा गांव में सैनी और उसका परिवार शकरकंद, रतालू और सब्जियों की खेती से मालामाल है। 
हर जिले में ऐसे किसान
प्रदेश के लगभग हर जिले में ऐसे किसान हैं, जो छोटे-छोटे नवाचारों से खेती को अपने लिए लाभ का धंधा बना चुके हैं। चूंकि यह छोटे बहुत किसान हैं, इसलिए सरकार तक इनकी पहुंच नहीं है और न ही यह चर्चा में आ पाते। हरदा, होशंगाबाद, मंडला, डिंडोरी, शहडोल, श्योपुर, अलीराजपुर, धार, बड़वानी में ऐसे किसानों की संख्या अधिक है।
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मजदूरी ने भी बढ़ाई कृषि लागत
जिन लोगों ने खेती को लाभ का धंधा बनाया है, उनके अनुभव बताते हैं कि महंगी मजदूरी के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई है। कृषि कार्य के लिए गांवों में मजदूर नहीं मिल रहे हैं। जिसके कारण मजदूरी कई गुना अधिक हो गई है। जो किसान खेती से लाभ प्राप्त कर रहे हैं, वह मजदूरों पर निर्भर नहीं है। अपने खेत के अधिकांश काम वे खुद ही करते हैं। 
मनरेगा पर सवाल
इधर गांवों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार (मनरेगा) योजना है। इसमें सरकार ग्रामीणों को न्यूनतम 100 दिवस का रोजगार उपलब्ध कराती है और प्रति कार्यदिवस 160 रुपए मजदूरी देती है। किसानों और कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं का सुझाव है कि राज्य सरकार मनेरगा को कृषि कार्यों से भी जोड़ दे। यदि किसी किसान को मजदूर की जरूरत है तो उसे ग्राम पंचायत के माध्यम से मनरेगा मजदूर उपलब्ध कराए जाएं। मजदूरों को 200 प्रति कार्य दिवस मजदूरी दी जाए जिसमें से राज्य सरकार और संबंधित किसान 50-50 प्रतिशत की भागीदारी करे। इससे मजदूर को मजदूरी भी ज्यादा मिलेगी और किसानों को भी 100 रुपए में मजदूर मिल जाएंगे। इससे मनरेगा योजना की उपयोगिता बढ़ेगी। 
कृषि मजदूरी बराबर मनरेगा मेहनताना
इधर दो दिन पहले भारत सरकार ने मनरेगा में मजदूरी की दर कृषि मजदूरी के समान करने का मन बन लिया है। गुरुवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौ. बीरेन्द्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से गठित समिति की सिफारिश पर इसकी सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। 
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मनरेगा में मजदूरी को लेकर दिशा-निर्देशा भारत सरकार द्वारा तय किए गए हैं। राज्य सरकार केवल योजना का क्रियान्वयन करती है। मनेरगा में मजदूरी के संबंध में हाल ही भारत सरकार ने कुछ निर्णय लेने जा रही है। 
- अरूणा शर्मा, अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विका

हमने कम रकबे के किसानों को नवाचारी खेती के लिए प्रोत्साहित किया। अब किसान ऐसा कर रहे और लाभकारी खेती करने लगे हैं। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए लागत मूल्य कम करना बेहद जरूरी है। लगातार महंगी होती मजदूरी बड़ा मुद्दा है, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। 
- अशोक गुर्जर, अध्यक्ष ग्रामीण विकास सहकारी सोसायटी, छिदगांव तमोली