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सोमवार, 26 सितंबर 2016

मप्र में डिक्की की दस्तक, दलित उद्यमियों को मिलेगा मंच

- दलितों को उद्यमी बनाने के प्रयास तेज
- नवंबर से शुरू होगा डिक्की का मध्यप्रदेष चैप्टर
- प्री-लांच मीटिंग में दलित उद्यमियों ने दिखाया उत्साह


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

देश के उद्योग जगत और भारत की अर्थव्यवस्था में विशेष भूमिका निभाने वाले दलित उद्यमियों के संगठन डिक्की यानी दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज का मध्यप्रदेश चैप्टर जल्द ही शुरू होने जा रहा है। उद्योग-व्यवसाय कर रहे दलित समाज के उद्यमियों को सशक्त करने, उन्हें मार्गदर्शन देने के साथ ही दलितों की नई पीढ़ी को नए उद्योग-धंधों से जोड़कर उन्हें उद्यमी बनाने के लिए डिक्की के बैनरतले पिछले दस वर्षों से काम चल रहा है। 

देष के 21 राज्यों में डिक्की के चैप्टर हैं, जहां लाखों दलित उद्यमी इस संस्था से जुड़े हुए हैं। 22वें चैप्टर की शुरूआत मध्यप्रदेश में होने जा रही है। इस संबंध में हाल ही में भोपाल में हुई मध्यप्रदेश चैप्टर की प्री-लांच मीटिंग में मध्यप्रदेश चैप्टर के औपचारिक शुभारंभ पर चर्चा हुई। मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग के लिए डिक्की के वेस्टर्न इंडिया कॉ-आर्डीनेटर और विदर्भ चैप्टर के प्रसीडेंट श्री निश्चय शेल्के, कोर ग्रुप मेंबर श्री मनोज दिवे, श्री विजय सोमकुंवर, श्री प्रकाश पपाचन नागपुर से भोपाल आए। प्री-लांचिंग मीटिंग में प्रदेश के करीब 50 दलित कारोबारियों, व्यवसाईयों और उद्यमियों ने भाग लिया। डिक्की के मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग के समन्वय का काम डॉ. मनोज आर्य देख रहे हैं।
श्री शेल्के ने यहां उपस्थित दलित कारोबारियों को डिक्की की रीति-नीतियों के बारे में बताते हुए कहा कि भारत सरकार के साथ ही अनेक राज्य सरकार की नीतियों के निर्माण में डिक्की की प्रभावी भूमिका है। दलित समुदाय के युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए भारत सरकार ने डिक्की के सुझाव पर अनेक निर्णय लिए हैं। इसी तरह यूपीए सरकार द्वारा दलित उद्यमियों के लिए स्थापित 200 करोड़ का वेंचर केपीटल फंड भी डिक्की के प्रयासों का परिणाम था। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सहित अनेक राज्य सरकारों ने डिक्की के सुझाव पर दलित उद्यमियों के लिए विषेष प्रावधान किए हैं। उन्होंने स्टार्ट अप और स्टैंडअप इंडिया कार्यक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि यह एक बेहतर अवसर है। भारत सरकार ने बैंकों की जिम्मेदारी तय कर दी है कि वे दलित उद्यमियों को न केवल वित्तीय सहायता देंगी बल्कि उनका कारोबार स्थापित करने के लिए बाजार उपलब्ध कराने जैसी सहायता भी उपलब्ध कराएंगी। देश में विभिन्न बैंकों की एक एक लाख 25 हजार शाखाएं हैं, इन सभी शाखाओं पर एक दलित को कारोबार स्थापित कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। श्री शेल्के ने उद्योग-धंधा स्थापित करने के लिए सरकार की अनेक सुविधाओं की विस्तार से जानकारी दी। 
डिक्की की कार्यशैली के बारे में बताते हुए श्री शेल्के ने कहा कि -‘‘डिक्की का भरोसा धरना-प्रदर्शन, आंदोलन में नहीं है, हम आंकड़े लेकर सरकार के साथ बैठते हैं, बात करते हैं और निर्णय कराते हैं। उन्होंने कहा कि अब सरकारी नौकरियां लगातार कम हो रही हैं, इसलिए दलित के समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगा बिजनेस करें, यह जरूरी है। अभी हमारी पीढ़ी बिजनेस के क्षेत्र में आई है इसलिए कुछ परेशानियां हो सकती हैं, लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक मजबूत आधार होगा। 

समस्याएं सुनीं, समाधान बताएं

श्री शेल्के के नेतृत्व में डिक्की की टीम ने इस प्री लांच मीटिंग में मौजूद मध्यप्रदेश के दलित उद्यमियों से परिचय प्राप्त किया और उनसे उनके बिजनेस को लेकर चर्चा की। इस चर्चा में मध्यप्रदेश के उद्यमियों ने अपनी समस्याएं बताईं और खासकर बैंकों के स्तर पर होने वाली कठिनाईयों को सामने रखा। शेल्के ने कहा कि बहुत सारी समस्याएं सिर्फ इसलिए हैं, हमारे समुदाय को जानकारी नहीं है, कि उनके लिए कौन-कौन सी सुविधाएं हैं, जिनका लाभ लेकर वे अपना कारोबार स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने डिक्की का मध्यप्रदेश चैप्टर शुरू होने के बाद इन्हीं कठिनाईयों पर फोकस किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में ज्यादा से ज्यादा दलित कारोबारी और युवा उद्यमी डिक्की से जुड़ें, सदस्यता लें। 

नवंबर में होगी शुरूआत

प्री-लांच मीटिंग में व्यापक विचार-विमर्ष के बाद तय हुआ कि आगामी नवंबर माह में डिक्की का मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग की जाएगी। लांचिंग कार्यक्रम भोपाल में होगा जिसमें उद्योग जगत के साथ ही राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र की अनेक हस्तियां मौजूद रहेंगी। 

डिक्की के बारे में

डिक्की भारत के शीर्षस्थ औद्योगिक संगठनों में से एक है। डिक्की की स्थापना श्री मिलिंद काम्बले ने वर्ष 2005 में की थी। देष के 21 राज्यों में डिक्की के चैप्टर हैं। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात में भी दलित उद्यमियों ने अपने उद्यम स्थापित किए हैं। इसलिए इन देशों में भी डिक्की की शाखाएं हैं। पिछले साल 29 दिसंबर को डिक्की ने डॉ. आंबेडकर के 125वीं जयंती के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में एससी-एसटी अंत्रप्योनरषिप पर नेशनल कांफ्रेंस आयोजित की थी। इसमें देष भर के दलित बिजनेसमेन, कारोबारी और युवा उद्यमियों ने भाग लिया था। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद्र गहलोत, सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद, भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते, तत्कालीन कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार, रेल मंत्री सुरेष प्रभु सहित अनेक मंत्री और भारत सरकार के आला अधिकारी शामिल हुए थे।



''लोगों ने दलितों की एक छवि गढ़ रखी है, जिसकी चमड़ी काले रंग की हो, शरीर पर कपड़े ना हो, जबकि अंबेडकर का दलित मर्सेडीज़ में चलता है और सूट पहनता है।''

मिलिंद कांबले, अध्यक्ष, दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI)


शनिवार, 24 सितंबर 2016

दलित की शवयात्रा को नहीं मिला रास्ता, लुप्त हो रहीं जनजातियों से सरकार ने मुंह फेरा, 14 साल के अभियान के बाद भी 17 हजार पद खाली

- मध्यप्रदेश में वंचित वर्गों से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाएं एवं खबरें
- समुदाय और सरकार, दोनों के उत्पीड़न को झेल रहा वंचित वर्ग

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

मध्यप्रदेष के अलग-अलग हिस्सों में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से जुड़े अनेक समाचार भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्रों में प्रमुखता से आज प्रकाशित हुए हैं। यह समाचार इन दोनों समुदायों की मौजूदा स्थिति को तो बयां करते हैं, साथ ही यह भी बता रहे हैं कि आज भी भारत में कितनी असमानता, शोषण और अत्याचार है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों और सुविधाओं के बावजूद यह स्थिति बताती है कि इन दोनों समुदाय का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न ही बहुसख्ंयक समाज की मानसिकता में कोई बदलाव आया है। इस स्थिति के बावजूद अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण सहित विभिन्न सुविधाओं के गैर-जरूरी, गैर-कानूनी और गैर संवैधानिक पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है। 

अखबारों में प्रकाशित खबरें

नव दुनिया, भोपाल 24 सितंबर

 समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर खंडवा जिले के डोंगरगांव की एक घटना ‘‘नहीं दिया रास्ता तो पुलिस के साए में दलित की शवयात्रा’’ शीर्षक से प्रकाषित की गई है। इसमें बताया गया है कि खंडवा से करीब 30 किलोमीटर दूर डांगरगांव में दलित महिला की शवयात्रा खेत में से निकालने की बात पर दो घंटे विवाद हुआ। खेत मालिक द्वारा रास्ता देने से इंकार करने पर पुलिस मौके पर पहुंची और समझाइश देकर शवयात्रा निकलवाई। 

इसी समाचार पत्र में ने इसी पृष्ठ पर ‘‘प्रदेष के 193 गांवों में पीने योग्य पानी नहीं’’ शीर्षक से एक ओर खबर प्रकाशित की है। केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित इस खबर में कहा गया है कि इन गांवों से पेयजल के जो सैंपल लिए गए, उनमें फ्लोराइड, आयरन, नाईट्रेट, सहित करीब एक दर्जन खतरनाक रासायनिक तत्व मिले हैं।
रिपोर्ट के अनुसार ऐसे राज्यों में मध्यप्रदेष 17वें नंबर पर हैं जहां बसाहटों में पेयजल स्वच्छ नहीं है। नरसिंहपुर ऐसा जिला है, जहां सबसे ज्यादा गंदा पानी लोग पी रहे हैं।  स्वभाविक रूप से ये वे गांव हैं जहां, अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी अपेक्षाकृत अधिक निवास करती है। इन समुदायों की आबादी को पीने का स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं हो रहा।

दैनिक भास्कर, भोपाल 24 सितंबर 

समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर एक महत्वपूर्ण खबर अनुसूचित जनजातियों को लेकर प्रकाशित हुई है। इस खबर में खुलासा किया गया है कि राज्य सरकार ने पिछले दस साल से जनजातियों से जुड़ी जानकारी भारत के राष्ट्रपति को भेजी ही नहीं। खबर के मुताबिक लुप्त हो रही जनजातियों की जानकारी हर साल राष्ट्रपति सचिवालय को भेजी जाना जरूरी है। ऐसी जनजातियां, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं, उनकी मॉनीटरिंग राष्ट्रपति सचिवालय करता है ताकि इनके कल्याण के लिए आवष्यक कदम उठाए जाएं। खबर में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि आदिवासी मत्रणा परिषद की बैठक भी मध्यप्रदेश में लंबे समय से नहीं बुलाई गई है। 



पीपुल्स समाचार, भोपाल 24 सितंबर 2016

पीपुल्स समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक 16 पर प्रकाशित एक महत्वपूर्ण समाचार में बताया गया है कि मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के आरक्षित पदों पर भर्ती के लिए पिछले 14 साल से विशेष अभियान चलाया जा रहा है लेकिन पिछले साल तक केवल 5 हजार पद ही भरे गए जबकि 17 हजार से अधिक पद रिक्त हैं। खबर में बताया गया है कि मप्र हाईकोर्ट द्वारा पदोन्नति में आरक्षण खत्म किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की अपील के बाद इस मामले पर निर्णय के लिए बनी कैबिनेट सब कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ है। खबर में बताया गया कि सरकार कि किस विभाग में आरक्षित श्रेणी के कितने पद रिक्त हैं। 

रविवार, 18 सितंबर 2016

दलित-आदिवासी युवाओं ने थामी समाज के उत्थान की कमान

चित्रों में देखिए, इनका जोश, जुनून, जागरूकता, शासन करने की क्षमता और योग्यता

अधिकारों को लेकर जागृत हो रहा वंचित वर्ग

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

 भोपाल। आरक्षण के कारण अक्सर सामान्य वर्ग के निशाने पर रहने वाली अनुसूचित जाति-जनजाति समाज की युवा पीढ़ी ने सामाजिक उत्थान की मशाल अपने हाथों में ले ली है। इस पीढ़ी पर ‘‘अयोग्यता’’ का ठप्पा लगाकर इन्हें हतोत्साहित करने वालों का अभियान अब विफल होता दिखाई दे रहा है। संवैधानिक आरक्षण को बैसाखी कहकर इनकी योग्यता पर सवाल खड़े करने वालों के हरेक तंज, हरेक सवाल और हरेक आलोचना का पूरे साहस के साथ जवाब दिया। 


18 सितंबर को राजधानी में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने आए करीब 50 हजार से ज्यादा दलित-आदिवासी छात्रों के एकाएक इकट्ठे होने से स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के होश से उड़ गए।



  यादगारे शाहजहांनी पार्क में हुई सभा में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के विभिन्न युवा संगठनों के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों ने अपनी ओजस्वी भाषण कला, तर्कों एवं तथ्यों के साथ अपनी बात रखने के अंदाज ने उपस्थित हजारो युवाओं में जोश भर दिया।


 इस मैदान में चारों तरफ जय बड़ादेव और जय आंबेडकर के नारे गूंंज रहे थे। संविधान की समीक्षा, आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण, बैकलॉग पदों की पूर्ति, दलित आदिवासी समाज का विकास, इन समुदायों पर अत्याचार, अपराध, भेदभाव सहित सभी ज्वलंत मुद्दों पर यहां चर्चा हुई। 




चित्रों में देखिए, इनका जोश, जुनून, जागरूकता, शासन करने की क्षमता और योग्यता








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

गुजरात में दलितों की वर्णमालाः ए से अंबेडकर, अ से अत्याचार

Dalit alphabet: 'A' for Ambedkar

Dr. Anil Sirvaiya
9424455625 

sirvaiyya@gmail.com

'बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकरबालपोथी


गुजरात के दलित बाहुल्य इलाकों में इन दिनों 'बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर- बालपोथी' नाम की पाठ्यपुस्तक की जबरदस्त मांग है। इस किताब को स्कूल तो नहीं खरीद रहे हैं लेकिन जहां-जहां दलितों की आबादी ज्यादा है, वहां इसे लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस खास प्राथमिक पाठ्यपुस्तक में हिंदू संकेतों के बजाय बौद्ध और अंबेडकर की जीवन से संबंधित शब्द लिए गए हैं। इस किताब के अंग्रेजी संस्करण को राजस्थान की हिंदी अध्यापक कुसुम मेघवाल ने लिखा है जिसमें A से अंबेडकर और B से बुद्ध पढ़ाया जाता है। 
ठीक इसी तरह हिंदी और गुजराती संस्करण में क्रमशः   से अत्याचार और से कमल नहीं बल्कि कलम पढ़ाया जाता है। इस किताब के हिंदी और गुजराती संस्करण के लेखक धीरज प्रियदर्शी हैं, जो एक टेलर हैं।  धीरज ने मुख्यधारा की वर्णमाला से हटकर इस नई किताब में ऐसे शब्द चुने हैं जो दलित बच्चों के लिए फिट हैं। अंबेडकरवादी साहित्य के लाइब्रेरी चलाने वाले प्रियदर्शी का कहना है, 'हमारे बच्चों के लिए अच्छा है कि वे से कलम पढ़ें, कि से कमल, जोकि बीजेपी का चुनाव निशान है।'

BHOPA/AHMEDABAD: It's not bought by schools, but the alphabet book for children, 'Babasaheb Dr Ambedkar - Balpothi' is witnessing great demand in areas with high population of dalits. The author of the Hindi and Gujarati version of the book, Dhiraj Priyadarshi, a tailor from Vadaj, has carefully deconstructed mainstream study books and has substituted established symbols in alphabet books with those he feels suitable for dalit children. 
The elementary textbook moves away from Hindu symbols introduced through primary education and substitute them with Buddhist symbols and anecdotes from the life of Babasaheb Ambedkar. In the English version of the book, written by a Rajasthan-based Hindi teacher Kusum Meghwal, 'A' is for Ambedkar and 'B' is for Buddha. Similarly, in Priyadarshi's Hindi and Gujarati versions of the book, 'Aa' is for 'Atyachar' (atrocity) and 'Ka' is for Kalam (pen), and not 'Kamal'. "It is good that our children would learn 'Ka' for 'Kalam' rather than 'Ka' for 'Kamal'- BJP's election symbol," said Priyadarshi, who also owns a library on Ambedkarite literature. He had published the book about four months ago to enlighten kids about the life of Babasaheb and other great personalities, he said. He said that sale of the books increased after Gujarat started witnessing dalit agitation after the Una flogging incident.The book counts Jesus Christ, Karl Marx and Prophet Muhammad along with Ambedkar among five greatest personalities in the history of humanity. 
"Parents belonging to dalit and other downtrodden communities buy the 60-page book to inform their children about the life of Babasaheb," said Priyadarshi, adding, "The book in demand in city areas with high population of dalits like Vadaj, Vejalpur, Amraiwadi, Majurgam, and Behrampura." 
In Gujarati and Hindi alphabets, the book teaches 'Kha' is for 'Khet' (farm), 'Ga' for 'Gareebi' (poverty), 'Chha' for 'Chhatrapati Shahuji', 'Ja' for Janmbhoomi Mhow' (Ambedkar's birthplace), 'Ba' for 'Bandhuta' (fraternity), 'Da' for 'Dikshabhoomi' (where Ambedkar embraced Buddhism in Nagpur), 'Dhha' for 'Dharmantaran' (conversion) and 'Va' for 'Varna Vyavastha' (caste system). 
The book also carries the 22 pledges Ambedkar made at the time of renouncing Hinduism and embracing Buddhism. It also has images of principal events of his life including handing over the Indian Constitution to then President Rajendra Prasad in presence of the first Prime Minister Jawaharlal Nehru, the first deputy Prime Minister Vallabhbhai Patel and the last governor general of India, C Rajagopalachari. 
Two other important events of Ambedkar's life, including Mahad Satyagrah of 1927 where he led dalits to drink water from a main water tank in Mahad of Raigad district in Maharashtra, and the Satyagraha at Kalaram Mandir of Nashik where Ambedkar marched along with dalits to demand their entry to precincts banned for 'untouchables' have also been covered in the book.