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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

न बच्चे प्रश्न पूछ पाते, न शिक्षक गौर करते

  • 30 प्रतिशत से कम रिजल्ट वाले स्कूलों के बुरे हैं हालात
  • लगातार मॉनीटरिंग और सख्ती से बेहतर नतीजों की उम्मीद


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

भोपाल, 15 फरवरी, 2016

एक और दो मार्च से शुरू हो रही बोर्ड परीक्षाओं से पहले राज्य सरकार ने प्रदेश के उन स्कूलों की चिंता सता रही है, जिनका रिकार्ड रिजल्ट के मामले में जिनका बेहद खराब हैं। पिछली बोर्ड परीक्षाओं में इन स्कूलों का रिजल्ट 30 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहा। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जहां के दो-चार प्रतिशत बच्चे भी परीक्षा में पास नहीं हो पाए। राज्य सरकार ने ऐसे स्कूलों को 0-30 प्रतिशत रिजल्ट वाले स्कूलों के रूप में चिन्हित किया है। दरअसल समय-समय पर हुई जांच और निरीक्षण में इन स्कूलों में अनेक तरह की कमियां सामने आर्इं हैं, जो पिछले कई सालों से यथावत हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षक से प्रश्न नहीं पूछ पाते और इन्हें पढ़ाने की भाषा भी एक समस्या है। इन बच्चों के होमवर्क और क्लासवर्क की जांच और मॉनीटरिंग न घर में होती है न स्कूल में। इसी तरह के अनेक कमियां इन स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों में हैं। लिहाजा इन स्कूलों से हर साल न्यूनतम 30 प्रतिशत बच्चे भी पास नहीं हो पाते। यह स्थिति स्कूल अनुसूचित जनजाति कल्याण और स्कूल शिक्षा, दोनों के स्कूलों की है। दोनों विभाग इन स्कूलों के रिजल्ट को सुधारने के कई प्रयास कर रहे हैं। जनजाति कल्याण विभाग ने सीधे कलेक्टर को रिजल्ट सुधार की गतिविधियों से जोड़ा है। 

क्यों पास नहीं होते विद्यार्थी


  • प्रश्न करने की कला और शिक्षण की भाषा में उपयुक्तता की कमी।
  • गृह कार्य, कक्षा कार्य, त्रुटि सुधार के पर्यवेक्षण की कमी।
  • विज्ञान मेला, विज्ञान प्रतिभा खोज आदि प्रतियोगिताओं में सहभागिता की कमी। 
  • शैक्षिक कार्य, पाठ् सहगामी क्रियाकलापों में शिक्षकों की अरुचि।
  • छात्रों के मूल्यांकन एवं इसके बाद अनुवर्ती प्रयासों की कमी। 
  • सांस्कृतिक, साहित्यिक, शारीरिक गतिविधियों में सहभागिता की कमी। 
  • नियमित एवं विशेष कक्षाओं की समयसारिणी का पालन नहीं होता। 
  • कमजोर प्रदर्शन करने वाले छात्रों की कमजोरी दूर करने के प्रयास नहीं होते। 
  • उत्कृष्ट छात्रों के प्रोत्साहन नहीं मिलता। 
  • रेमिडियल कक्षाओं की निरंतरता में कमी। 
  • शैक्षिक केलेण्डर का पालन नहीं होता। 
  • समस्या समाधान विधि, खोज विधि, अन्य विधियों के उपयोग की कमी। 
18-जुलाई-2014 को श्योपुर कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटील द्वारा स्कूल चलो अभियान के अंतर्गत जिले के आदिवासी विकास खण्ड कराहल के ग्राम बावडीचापा के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल का निरीक्षण किया। इस निरीक्षण के दौरान मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, गणवेश राशि वितरण और छात्र छात्राओ को दी जाने वाली पाठय पुस्तक के वितरण की भी जानकारी छात्र छात्राओ से चर्चा कर प्राप्त की। निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने छात्र छात्राओं से किताब पढवाकर देखी। साथ ही छात्र छात्राओ से पहाडे भी सुने। इस दौरान छात्र छात्राओ से मध्यान्ह भोजन के संबध में चर्चा की। जिसमें छात्र छात्राओ ने बताया कि एमडीएम में दो ही रोटी दी जाती है और मीनू के अनुसार भोजन स्व सहायता समूह द्वारा नही दिया जाता। कक्षा 5 वी के छात्र विष्णु ने 2 से 7 तक पहाढे सुनाऐ। 6 के छात्र दुपट्टा आदिवासी ने बिना रूके हिन्दी की किताब पढकर सुनाई। 

सरकार की कवायद

स्कूल शिक्षा विभाग और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग इन स्कूलों के रिजल्ट को सुधारने के लिए कई तरह से सक्रिय है। स्कूल शिक्षा विभाग ने ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कराकर प्राचार्यों को कमियां बता दीं हैं। इन्हें दूर करने की हिदायत दी गई है। जनजाति कल्याण विभाग ने मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे दो-दो जिलों की जिम्मेदारी सौंपी है, जिनमें 30 प्रतिशत से कम रिजल्ट वाले स्कूल आते हैं। इन्हें राज्य स्तर से शिक्षा गुणवत्ता के प्रयासों का प्रभारी अधिकारी बनाया गया है। ये अधिकारी स्कूलों से संपर्क कर रोजाना की अपडेट ले रहे हैं। 

20 जिलों के 14 स्कूलों में जीरो रिजल्ट

जनजाति बाहुल्य 20 जिलों के 14 स्कूल ऐसे हैं, जहां पिछले वर्ष हुई हाईस्कूल परीक्षा में एक भी विद्यार्थी पास नहीं हुआ। इन 20 जिलों में 549 स्कूल ऐसे हैं जिनका हाईस्कूल रिजल्ट 30 प्रतिशत से कम रहा।

कलेक्टरों को जिम्मेदारी

इधर आयुक्त आदिवासी विकास शोभित जैन ने कलेक्टरों को पत्र जारी कर कहा है कि ऐसे प्रयास किए जाएं कि जिले में एक भी संस्था जीरो रिजल्ट की सूची में शामिल हो।

सीएम ने कहा, जवाबदारी तय हो

हाल ही में विभागीय समीक्षा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिक्षा की गुणवत्ता के संबंध में गंभीरता से समीक्षा के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने कहा था कि शून्य प्रतिशत रिजल्ट वाली संस्थाओं के शिक्षकों की जवाबदारी तय की जाए।

30 प्रतिशत से कम परीक्षा परिणाम वाले स्कूलों में टीम जाती है। जांच और निरीक्षण के बाद टीम बताती है कि क्या-क्या कमियां है। प्राचार्यों को इन्हेंं दूर करने के निर्देश के साथ ही बेहतर परीक्षा परिणाम के लिए लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। उम्मीद है कि इस वर्ष ऐसी संस्थाओं के भी परीक्षा परिणाम बेहतर आएंगे।

धीरेन्द्र चतुर्वेदी, संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय

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