लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

एक साल में मप्र दे सका केवल तीन आईएएस

- इंडियन सिविल सर्विस में मप्र का योगदान बेहद कम

- 2013 में हुए मप्र से चुने गए केवल तीन आईएएस

अनिल सिरवैयां, भोपाल
आबादी में छटवां और जनसंख्या के हिसाब से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य हमारा मध्यप्रदेश एक साल में तीन आईएएस से ज्यादा नहीं पाता है। देश की शीर्ष नौकरशाही में मप्र का योगदान सबसे कम है। मप्र से हर साल हजारों उम्मीदवार सिविल सर्विस की प्रारंभिक परीक्षा में बैठते हैं लेकिन हजारों की यह संख्या सिलेक्शन तक पहुंचते-पहुंचते औसतन तीन से आगे नहीं बढ़ पाती।
मप्र की सरकार राज्य को बीमारू से विकासशील राज्य बनाने का दावा कर रही है और कई क्षेत्रों में ग्रोथ के आंकड़े सामने रखे जा रहे हैं लेकिन इस विकास के प्रकाश का भारतीय प्रशासन में मप्र के लोगों की भागीदारी की बदतर स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वर्ष 2013 में मप्र से केवल तीन उम्मीदवार ही आईएएस में चयनित हो पाए जबकि मप्र से छोटे हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र और इसी श्रेणी के अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में उम्मीदवारों का चयन इस सेवा के लिए हुआ।
32 हजार बैठे थे परीक्षा में 
26 मई 2013 को सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में मप्र से करीब 32 हजार उम्मीदवार शामिल हुए थे। इससे पहले के सालों में भी इसी के आसपास उम्मीदवारों की संख्या रही है। इनमें से करीब 15 से 20 प्रतिशत ही प्रारंभिक परीक्षा में चयनित होकर मुख्य परीक्षा तक पहुंचते हैं। मुख्य परीक्षा के नतीजों बाद मप्र के अभ्यर्थियों की संख्या एक प्रतिशत भी नहीं बचती।
----------------------
राज्य कुल चयनित सामान्य वर्ग अनु.जाति जनजाति ओबीसी
केरल 13 8 1 - 4
राजस्थान 20 6 3 6 5
हरियाणा 8 5 1 - 2
तमिलनाडू 20 2 1 - 17
उत्तरप्रदेश 35 19 3 - 13
दिल्ली 7 7 - - -
महाराष्ट्र 13 5 3 1 4
आंध्रप्रदेश 7 4 1 - 2
छत्तीसगढ़ 3 2 - - 1
जम्मू-कश्मीर 4 3 1 - -
बिहार 15 9 1 - 5
पंजाब 7 3 4 - -
कर्नाटक 8 - 5 1 2
मध्यप्रदेश 3 2 1 - -
पश्चिम बंगाल 3 2 1 - -
झारखंड 4 1 - - 3
उड़ीसा 1 - - - 1
हिमाचल प्रदेश 3 - 1 2 -
मणिपुर 1 - - 1 -
मेघालय 1 - - 1 -
सिक्किम 1 - - 1 -
आसाम 1 - - 1 -
कुल 178 78 27 14 59

------------------------------------
आबादी के हिसाब से छटवें नंबर
भारती की कुल जनसंख्या में से 20.3 प्रतिशत आबादी मप्र में निवास करती है। आबादी के मप्र देश में छटवें नंबर है। ऊपर के पांच राज्यों में उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंधप्रदेश हैं। मप्र से ज्यादा आईएएस देने वाले राज्य केरल, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडू, दिल्ली, कर्नाटक आबादी की मप्र से बहुत कम है।
------------------
दो अतिरिक्त मौके
सरकार ने इसी साल फरवरी में आईएएस, आईपीएस समेत अन्य उच्च सेवाओं के अधिकारी बनने की महत्वाकांक्षा पाले बैठे छात्रों व युवाओं के लिए सौगात दी थी। इसमें सिविल सर्विस की सभी श्रेणी के परीक्षाथिर्यों को दो और मौका देने का फैसला किया था।

इसलिए भी नहीं होता सिलेक्शन
- मप्र में सर्विस परीक्षा का माहौल नहीं।
- आबादी मुख्यत: कृषि और व्यापार क्षेत्र में संलग्न है। इस बारे में नहीं सोचते।
- जौखिाम उठाने की शक्ति नहीं।
- बिहारियों से जैसा जुझारूपन और संघर्ष नहीं।
- प्रशासनिक शक्ति के प्रति आकर्षण नहीं है।
- सिविल सर्विस की   तैयारी के अच्छे संस्थान नहीं।
- बच्चों में सोच की कमी, प्रारंभिक परीक्षा में 90 प्रतिशत केवल अनुभव के लिए बैठते हैं।
(आईएएस अधिकारी एवं विशेषज्ञों से चर्चा के अनुसार)
-------------------
मप्र की ये योजनाएं भी बेअसर
- मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सिविल सेवा परीक्षा प्रोत्साहन योजना लागू है। इस योजना का उद्देश्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को सिविल सेवा परीक्षाओं के विभिन्न स्तरों पर सफलता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप वित्तीय सहायता प्रदान करना है। विद्याथिर्यों को संघ लोक सेवा आयोग की प्रारम्भिक परीक्षा उत्तीर्ण होने पर 25 हजार रुपये, मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने पर 50 हजार रुपये तथा साक्षात्कार उपरांत चयन होने पर 25 हजार की राशि दी जाती है।
- प्रदेश में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवारों के लिए भी इसी तरह की योजना लागू है। इस योजना में प्रदेश में संभागीय मुख्यालयों पर परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण केंद्र संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा इन वर्गों के उम्मीदवारों को परीक्षा की तैयारी के लिए निजी कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई के लिए फीस की प्रतिपूर्ति की जाती है लेकिन नियमों की जटिलता के कारण चुनिंदा उम्मीदवार भी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे।
---------------------
ये यूपीएससी के इम्तिहान की गलती नहीं, मप्र की शिक्षा व्यवस्था की गलती है। दोयम दर्जे की शिक्षा व्यवस्था है यहां। ऐसे स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी हैं जिनमें टीचर ही नहीं। एक टीचर पूरा विभाग को चला रहा है। ऐसे में यहां का बच्चा कैसे किसी राष्ट्रीय परीक्षा में आ सकता है। बच्चे होनहार हैं लेकिन उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं मिलता। इसी वजह से न आईआईटी में, न कैट में, न सर्विस सर्विस जैसी परीक्षाओं में चयन हो पाता है।  में आते हैं। पूरा दोष शिक्षा व्यवस्था है। अभी भी वक्त है कि देश में नवोदय जैसे एक हजार से ज्यादा स्कूल खोल दिए जाने चाहिए। और सबसे बड़ी बात सिविल सर्विस के लिए चलने वाली क्लासेस को तो बंद कर देना चाहिए। यहीं बच्चों में भटकाव शुरू हो जाता है।
एमएन बुच, पूर्व मुख्य सचिव मप्र
----------------------------

हमारे यहां उतनी जागरूकता नहीं है। दूसरी वजह यह भी है कि हमारे यहां शिक्षा का स्तर उतना अच्छा नहीं है। हमारे यहां के सिलेबस सिविल सर्विसेज के सिलेबस से मैच नहीं खाते। केरल, तमिलनाडू जैसे राज्यों में सरकार ऐसे बच्चों की फीस भी चुकाती हैं, हमारे यहां भी ऐसी व्यवस्था है लेकिन व्यवहारिक रूप से उसमें खामियां हैं। सरकार ने अपने खुद के कुछ केंद्र चला रखे हैं जहां बच्चों को तैयारी कराई जाती है लेकिन इनका स्तर पर अच्छा नहीं है। हमने सरकार से कहा था कि इन्हें पीपीपी मोड में निजी क्षेत्रों को दे लेकिन कोई विचार नहीं हुआ। हमारे यहां के बच्चे दिल्ली जाकर तैयारी करते हैं और वहीं का पता डालते हैं, यह भी एक कारण है।
- राहुल शर्मा, संचालक एंबीशन अकादमी

- निश्चित तौर पर अभी हमारे यहां सिविल सर्विस को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं है। दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि हमारे बच्चों का बेस बहुत मजबूत नहीं है। मप्र की कॉलेज एजूकेशन में बहुत सुधार की जरूरत है। दक्षिणी राज्यों के कॉलेजों की तरह। सरकारी योजना इसलिए फेल हैं कि वहां स्कूल के लेक्चर पढ़ा रहे हैं। आज एक भी बच्चा इन योजनाओं के लाभ से सिलेक्ट नहीं हुआ। मप्र से चयन का आंकड़ा इसलिए भी कम है कि कई बच्चे बाहर पढ़ाई करते हैं, वहीं का पता भी देते हैं।
गौरव मारवाह, संचालक यूनिक आईएएस अकादमी, भोपाल

संगम से निकलेंगी कितनी सीटें?

 संगम से निकलेंगी कितनी सीटें?


- मालवा में नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना को भुना रही भाजपा

भोपाल\ पिछले चुनाव में मालवा-निमाड़ की अपनी मजबूत पकड़ वाली
पांस सीटें गंवाने के बाद भाजपा फिर से इन सीटों पर कब्जा करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने इन सीटों पर जीत के लिए काम करना शुरू कर दिया है। रही-सही कसर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पूरी करते हुए चप्पे-चप्पे पर नजरें जमा रखी हैं। मालवा-निमाड़ में इस बार वैसे तो कई चुनावी मुद्दे हैं लेकिन भाजपा के लिए सबसे अहम नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना है। इन दोनों नदियों के मिलन को पार्टी मालवा की तस्वीर बदलने वाली उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित पार्टी के सभी स्टार प्रचारक और कार्यकर्ता अपने भाषणों इस योजना का उल्लेख करना नहीं भूल रहे। नर्मदा-क्षिप्रा संगम से कितनी सीटें निकलकर भाजपा की झोली में जाएगी, पर सबकी निगाहें हैं।
----------------------
योजना के दायरे में ये सीटें
हालांकि नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना का दायरा इंदौर, देवास, उज्जैन लोकसभा सीटों तक सीमित है लेकिन पार्टी इसे पूरे मालवा-निमाड़ में जबर्दस्त तरीके से प्रचारित कर रही है। इन्हीं दो नदियों के तर्ज पर पार्वती और कालीसिंध सहित अन्य नदियों को जोड़ने की बात नेता अपने भाषणों में कर रहे हैं। यदि इस योजना का लाभ चुनाव में भाजपा को मिलता है तो इंदौर से सुमित्रा महाजन की जीत का आंकड़ा और बढ़Þ जाएगा तो उज्जैन और देवास की सीटें भाजपा कांग्रेस से छीनने में सफल हो सकती है।
---------------------
कांगे्रस कह रही, सुखा दी निमाड़ की फसलें
इधर इस परियोजना पर भाजपा के फोकस के बाद कांग्रेस ने भी अपनी तरफ से मोर्चा खोल दिया है। प्रदेश कांगे्रस के मीडिया प्रबंधन प्रभारी उपाध्यक्ष मानक अग्रवाल भाजपा सरकार ने निमाड़ क्षेत्र के किसानों की घोर उपेक्षा की है। पता नहीं वे निमाड़ के किसानों से कौन से जन्म की दुश्मनी निभा रहे हैं। ओंकारेश्वर बांध का पानी उनके खेतों तक पहुंचाने के मामले में उनको जिस तरह घोर उपेक्षा का शिकार बनाया गया है, उससे वहां के किसान आहत भी हैं। वर्ष 2006 में मुख्यमंत्री चौहान ने ओंकारेश्वर बांध की नहरों के निर्माण का भूमिपूजन करके किसानों को आश्वस्त किया था कि नहरों का काम तेजी से पूरा किया जाएगा। खेद की बात है कि 8 साल होने को आये-नहरों के निर्माण का काम अब भी जहां का तहां है। शिवराज सिंह ने अपने राजनीतिक एजेण्डे मे तहत आनन-फानन में 432 करोड़ की राशि का इंतजाम करके रिकार्ड अवधि में नमर्दा-क्षिप्रा लिंक परियोजना पूरी करवाकर अपने आका लालकृष्ण आडवाणी और बाबा रामदेव के साथ फोटो खिंचवाकर खूब वाहवाही लूट ली है। ऐसी दशा में मुख्यमंत्री को निमाड़ के किसानों को बताना चाहिए कि जब नर्मदा -क्षिप्रा लिंक परियोजना ताबड़तोड़ पूरी हो सकती है, तो ओंकारेश्वर बांध की नहरों का निर्माण 8 साल के बाद भी आगे क्यों नहीं बढ़ा।
---------------------------
परियोजना एक नजर में 
नाम - नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना
लागत - 432करोड़ रूपये
दूरी - 48 किलोमीटर
अनुमोदन हुआ - 12 अक्टूबर 2012
भूमिपूजन - 29 नवंबर 2012
शुभारंभ - 26 फरवरी 2014
किसने किया : लालकृष्ण आडवाणी, बाबा रामदेव, मुख्यमंत्री चौहान, नितिन गडकरी सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता
विभाग- नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण
मुख्य काम - सिसलिया जलाशय से 5 क्यूमेक्स जल 350 मीटर की ऊंचाई तक लिफ्ट करकेपाईप्स के माध्यम से उज्जैनी ग्राम में स्थित क्षिप्रा के उदगम स्थल पर जल प्रवाहित करना।
लाभ : मालवा अंचल को गंभीर जल संकट से स्थायी निजात की का दावा

खंडवा में भी नर्मदा जल का मुद्दा
इधर निमाड़ की प्रमुख सीट खंडवा में नर्मदा जल के वितरण का मामला चुनावी मुद्दा बन गया है। यहां भी नर्मदा जल वितरण को अपनी उपलब्धि बताकर भाजपा वोट मांग रही है लेकिन मौजूदा सांसद और कांग्रेस के उम्मीदवार अरुण यादव इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। वे चुनाव प्रचार के दौरान कह रहे हैं कि भाजपा सरकार ने खंडवा में नर्मदा जल के निजीकरण का प्रयास शुरू कर दिया है, जिसे वे पूरा नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि वैसे भी योजना राज्य सरकार की न होकर केंद्र सरकार की है। 106 करोड़ की इस योजना में 80 करोड़ केंद्र सरकार ने दिए हैं।