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शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल की शान


  • कछुए की बाटागुर प्रजाति को संरक्षण की कवायद
  • कई देशों में विलुप्त हुए इस प्रजाति के कछुए

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Work : Batagur turtle, Madhya Pradesh Biodiversity Board, Dr, S.P. Rayal, Chambal, River, Turtle survival Alliance   

पूरी दुनिया में तेजी से विलुप्त हो रही कछुए की बाटागुर प्रजाति को बचाने के लिए चंबल में किए जा रहे प्रयास अब रंग लाने लगे हैं। कछुए की यह बेहद दुर्लभ प्रजाति विलुप्त होने की कगार है। इसे बचाने के प्रयास प्रदेश से होकर बहने वाली चंबल नदी में विभिन्न स्थानों पर किया जा रहा है।

मप्र राज्य बायो डायवर्सिटी बोर्ड, वन विभाग और टरटल सर्वाइवल एलायंस नामक संस्था मिलकर कछुए की इस प्रजाति को संरक्षित करने का काम राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य में चंबल नदी के किनारों पर कर रहे हैं। फिलहाल चंबल नदी में बाटागुर प्रजाति के 400 कछुए होने का अनुमान है। इसे शुभ संकते मानते बाटागुर कुछए की प्रजाति को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नेपाल, बांग्लादेश और वर्मा जैसे देशों में इस प्रजाति के कछुए पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इस प्रजाति की यही स्थिति है। टरटल सर्वाइवल एलायंस इस प्रजाति को संरक्षित करने का काम काफी पहले से कर रही है लेकिन पिछले साल उसने यह काम मध्यप्रदेश बायो-डार्यवर्सिटी बोर्ड के साथ मिलकर शुरू किया है। इस काम में कुछ सफलता मिली है।

कैसे हो रहा है संरक्षण

बाटागुर कछुए की प्रजाति को संरक्षित करने के लिए मादा कछुए के अंंडों को सुरक्षित किया जाता है। इन अंडों को खोजकर हेचरी में संरक्षित करते हैं और जब इनमें से बच्चे बाहर आ जाते हैं, तब इन्हें सुरक्षित तरीके से चंबल नदी में छोड़ा जाता है। दरअसल इस प्रजाति के विलुप्त होने की एक बड़ी वजह इनके अंडों का नष्ट हो जाना भी है। अभ्यारण्य के दूसरे जानवरों द्वारा अंडों को नष्ट किए जाने के कारण इनकी संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही थी।

मैदानी अमले को प्रशिक्षण

बाटागुर कछुए को बचाने के लिए वन विभाग और इससे जुड़े हुए लोगों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बाटागुर कछुए के घोंसलों और अंडों के पहचान की बारीक से बारीक बातें इन्हें सिखाई गर्इं हैं। नेस्टिंग और हैचिंग प्रक्रिया में कौन-कौन सी सावधानियां रखनी है, प्रशिक्षण के दौरान यह भी सिखाया गया है।

ये है बाटागुर कछुआ 

बाटागुर कछुआ देखने में सामान्य प्रजाति के कछुओं की तरह ही है। लेकिन इसका आकार बड़ा होता है। जलीय जीव विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रजाति के कछुओं का वजन 30 से 35 किलो तक होता है। जबकि सामान्य कछुओं में वजन डेढ़ किलो तक पाया जाता है।

तीन जगह हो रहा संरक्षण 

चंबल अभ्यारण्य में बाटागुर कछुआ के लिए तीन जगह हेचिंग एरिया निर्धारित किए गए हैं। जिनमें सबलगढ़, अंबाह व भिंड शामिल है। इन तीनों जगह पर उक्त प्रजाति के कछुए के सैकडों अंडे हेचिंग के लिए रखे गए हैं।

चंबल में कछुओं की 9 प्रजातियां

उत्तर भारत में कछुओं की 12 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले चंबल नदी में कछुओं की नौ प्रजातियां हैं। जिनमें बाटागुर कछुआ, बटांगुर डोंगोका, कछुआ टेंटोरिया, हारडेला, थुरगी, चित्रा इंडिका, निलसोनिया, निलसोनिया 'ूरम, लेसिमस पटाटा, लेसिमस ऐंडरसनी हैं। इनमें से बाटागुर कछुआ, चित्रा इंडिका, डोंगोका, लेसिमस पोटाटा दुर्लभ प्रजातियां हैं।
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बाटागुर कछुए की विलुप्त होती जा रही प्रजाति के संरक्षण के लिए मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड और टरटल सर्वाइवल एलायंस मिलकर काम कर रहे हैं। नेस्टिंग और हैचिंग के जरिए के माध्यम से इन कछुओं के अंडों को संरक्षित किया जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि चंबल नदी में इन कछुओं की संख्या में अधिकाधिक वृद्धि की जाए। 

डॉ. एसपी रयाल, सदस्य सचिव, मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड

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