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बुधवार, 23 मार्च 2016

44.7 % आबादी के पास नहीं रेडियो, टीवी, मोबाइल

  • कम हुआ रेडियो का क्रेज, टेलीफोन एवं मोबाइल उपभोक्ता बढ़े
  • जनगणना के आंकड़ों के अध्ययन में रोचक तथ्य सामने आए



डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Word : Census 2011, Madhya Pradesh, Landline, Mobile, Radio,  Television, Rural Internate  

मध्यप्रदेश में 44.7 प्रतिशत आबादी के पास कम्युनिकेशन का कोई ‘स्पेसिफाइड’ साधन और तरीका नहीं है। एक तरह से यह आबादी बेहतर कम्युनिकेशन नहीं कर पाती है। इनके पास पर्याप्त सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। जनगणना 2011 के आंकड़ों के हाल ही में हुए विश्लेषण में यह बात सामने आई है। 

जनगणना 2011 के अनुसार मप्र में कुल एक करोड़ 49 लाख, 67 हजार 597 परिवार निवास करते हैं। इससे पिछली जनगणना में परिवारों की यह संख्या एक करोड़ 9 लाख 19 हजार थी। ताजा जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 14.5 प्रतिशत लोग रेडियो और ट्रांजिस्टर का उपयोग कम्युनिकेशन के साधन के तौर पर करते हैं। 32.1 प्रतिशत के पास टेलीविजन हैं, जबकि 46 प्रतिशत लोग टेलीफोन और मोबाइल का भी उपयोग करते हैं। इन आंकड़ों में खास बात यह है कि 44.7 प्रतिशत आबादी के बाद कम्युनिकेशन के पुख्ता और पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। हालांकि यह आंकड़े जनगणना निदेशालय के निश्चित प्रारूप पर आधारित आंकड़े हैं। सूचनाएं पहुंचाने के लिए अन्य विविध साधनों का भी उपयोग भी किया जाने लगा है। 

आंकड़ों पर एक नजर

शहरी मध्यप्रदेश

कुल परिवार 38 लाख 45 हजार 232
रेडियोट्रांजिस्टर - 19.1 प्रतिशत परिवारों में
टेलीविजन - 71.3 प्रतिशत परिवारों में
टेलीफोन मोबाइल - 73.9 प्रतिशत परिवारों में
कोई स्पेसिफाइड मोड नहीं- 15.1 प्रतिशत परिवारों में

ग्रामीण मध्यप्रदेश

कुल परिवार : एक करोड़ 11 लाख 22 हजार 365
रेडियोट्रांजिस्टर - 13.0 प्रतिशत परिवारों में 
टेलीविजन - 18.6 प्रतिशत परिवारों में 
टेलीफोन मोबाइल - 36.4 प्रतिशत परिवारों में
कोई स्पेसिफाइड मोड नहीं - 54.9 प्रतिशत परिवारों में 

 लैंड लाइन और मोबाइल


  • शहरों में 73.8 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन टेलीफोन और मोबाइल 
  • 4.5 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन और 61.0प्रतिशत परिवारों के पास मोबाइल फोन हैं 
  • गांवों में 36.4 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन टेलीफोन और मोबाइल 
  • इनमें से 1.7 प्रतिशत के पास लैंडलाइन और 33.5 परिवारों में मोबाइल हैं। 

23 जिलों में 50 प्रतिशत आबादी वंचित : 

प्रदेश के 23 जिले ऐसे हैं जहां 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास कम्युनिकेशन के लिए रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल में से कोई भी स्पेसिफाइड मोड नहीं है। 

  • शहरों में 13.8 और गांवों में 3.2 प्रतिशत परिवारों में कम्यूटर और लैपटाप , इंटरनेट
  • इनमें से 4.9 के पास इंटरनेट है और 8.9 के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
  • गांवों में 3.2 प्रतिशत परिवारों में कम्प्यूटर और लैपटॉप है।
  • इनमें से 0.2 के पास इंटरनेट की सुविधा है जबकि 3.0 प्रतिशत के पास यह सुविधा नहीं है। 



 जनगणना के इन आंकड़ों में केवल ढाई प्रतिशत की गलती हो सकती है। जनगणना कार्य सबसे बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई है।
-पीके चौधरी, संयुक्त निदे., जनगणना निदेशालय, मप्र 

सोमवार, 21 मार्च 2016

रामबाण औषधीय पौधों को बचाने टिशू कल्चर का सहारा

  • मैपकास्ट के केंद्र में 50 से अधिक पौधों के प्रोटोकाल तैयार
  • किसानों की आय बढ़ाने के लिए टिशू कल्चर पर  जोर
  • शहरों में हर्बल गार्डन के जरिए भी संरक्षण के प्रयास

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
keyword : MPCST, tissue culture, Bhopal, Madhya Pradesh, Dr. Rajesh Saxena

प्रदेश में दुर्लभ प्रजाति के औषधीय पौधों को संरक्षित करने और इनसे होने वाली पैदावार को बढ़ाने के लिए टिशूू कल्चर तकनीक कारगर हो रही है। वैसे तो प्रदेश में अनेक स्थानों पर किसान भी अपने स्तर पर टिशूू कल्चर के जरिए पौधों का उत्पादन करने लगे हैं, लेकिन प्रो. टीएस मूर्ति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र में व्यापक स्तर पर यह काम चल रहा है। औबेदुल्लागंज में 24 एकड़ के इस प्रक्षेत्र में औषधीय और सुगंध पौधों के विकास के लिए लगातार रिसर्च की जा रही है। 

केंद्र में टिशू कल्चर लैब में महत्वपूर्ण औषधीय पौधों धवई, अश्वगंधा, स्टीविया व पचैली पौधों का मल्टीपिकेशन किया गया है। टिशू कल्चर तकनीक से तैयार ब्रोकली, गन्ना, रूद्राक्ष और अश्वगंधा आदि पौधों की हाडनिंग कर ग्रीन हाउस में रखकर इनकी वृद्धि का अध्ययन किया जा रहा है। केंद्र ने अचार, अर्जुन, गिलोय और आंवला जैसे औषधीय महत्व के पौधों के प्रोटोकाल से पौध उत्पादन कर फील्ड में रोपण किया जा रहा है। केंद्र में अब तक 25 से अधिक दुर्लभ प्रजातियों के पौधों के प्रोटोकाल तैयार किए जा चुके हैं। 

रूद्राक्ष का प्रोटोकाल तैयार
केंद्र में ब्राह्मी, अडूसा,व कालमेघ का प्रोटोकाल तैयार किया गया है। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रूद्राक्ष के पौधे तैयार कर बगीचों में इन्हें लगाया जा रहा है। 

इन प्रजातियों पर काम शुरू :
बांस की नई प्रजाति, भूई आंवला, मरूआ, कलिहारी, भृगराज, चिरायता और कालमेघ के पौधों को टिशू कल्चर से विकसित करने के लिए प्रोटोकॉल तैयार करने का काम जारी है। 

किसानों की आय बढ़ाने का साधन
केंद्र के रिसर्च वैज्ञानिक डॉ. राहुल विजयवर्गीय कहते हैं कि केंद्र में टिशू कल्चर के तहत विभिन्न प्रजातियों के औषधीय महत्व के पौधों के प्रोटोकॉल तैयार किए जा चुके हैं।


पीएम के गांव की कमेटी के मेंबर :
केंद्र के निदेशक डॉ. राजेश सक्सेना मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को हर्बल गार्डन बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लिए वे टिशू कल्चर से विकसित पौधे उपलब्ध कराते हैं।


इसलिए उपयोगी हैं यह प्रजातियां

सर्पगंधा : तेज बुखार, ब्लडप्रेशर में उपयोगी।
अश्वगंधा : प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
गिलोय : रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। बुखार में काम आता है। 
बच: तुतलेपन को दूर करता है। 
ब्राह्मी : टायफाइड में लाभकारी।
अुर्जन: ब्लड प्रेशर में उपयोगी। 

इन पौधों के प्रोटोकॉल हो रहे तैयार
  • औषधीय एवं फलदार पौधे अनारक का प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है। 
  • अकरकरा, ब्राह्मी, गिलोय, केला, गन्ना, स्टीविया की हार्डनिग एवं रोप


केंद्र में प्लांट टिशू कल्चर के माध्यम से कई प्रजातियों को प्रयोगशाला में निर्मित करके उनका उत्पादन किया जा रहा है। 
डॉ. राजेश सक्सेना, सीनियर प्रिंसीपल सांइटिस्ट और केंद्र प्रभारी