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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

87 हजार अतिकुपोषित बने ‘जिगर के टुकड़े’


  • रंग लाया स्नेह सरोकार
  • समुदाय की भागीदारी से मिली बच्चों को नई जिंदगी


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keyword : Madhya pradesh, Sneh Sarokar, Malnutrition, Community Partnership, MPWCD, ICDS, Maya Singh,

आमतौर पर लोग अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं और मरते हैं। उनके खाने-पीने से लेकर उनकी शिक्षा-दीक्षा तक को लेकर सतर्क रहते हैं लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों के साथ ही दूसरों के बच्चों को भी अपने जिगर का टुकड़ा बना लिया है। वे इन बच्चों के खान-पान से लेकर दवा और कपड़ों का इंतजाम करते हैं। कुपोषण के लिए बदनाम हो चुके मध्यप्रदेश में 87 हजार अतिकुपोषित बच्चों का कुपोषण मिटाने के लिए समुदाय से लोग बढ़-चढ़कर आगे आए हैं। राज्य सरकार के स्नेह सरोकार कार्यक्रम में शामिल होकर इन लोगों ने बच्चों की मदद के लिए अपने क्षमता के अनुरूप मदद का हाथ आगे बढ़ाया है। कोई इन बच्चों को पोष्टिक भोजन मुहैया करा रहा है तो कोई दवा, फल, ड्रायफूड्स, कपड़े, जूते-चप्पलों तक की व्यवस्था कर रहे हैं। कई तो ऐसे भी हैं जो इन बच्चों को बेहतर वातावरण में शिक्षा दिलाने के लिए अपनी जेब से राशि खर्च की है। 

राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग के अनुसार प्रदेश में अति कुपोषित बच्चों की संख्या करीब एक लाख 27 हजार है। ये वे बच्चे हैं जो सामान्य बच्चों की तरह नहीं है और दुर्बल शारीरिक क्षमताओं के कारण स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए विभाग के कार्यक्रम एवं योजनाएं हैं और आंगनबाड़ियों में ऐसे बच्चों की विशेष देखभाल की जा रही है। पिछले साल महिला एवं बाल विकास विभाग ने कुपोषण से निपटने में समुदाय की भागीदारी का आह्वान करते हुए ‘स्नेह सरोकार’ कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें समुदाय से अपील की गई कि वह कुपोषित बच्चों की मदद के लिए आगे आए। इस संवेदनशील मुद्दे पर प्रदेशभर में लोगों ने दिलचस्पी दिखाई और देखते ही देखते 87 हजार से अधिक लोग इस कार्यक्रम से अब तक जुड़ चुके हैं। बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने वाले लोग केवल आर्थिक सहायता या सामग्री देकर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं होते, बल्कि वे बच्चों की सेहत में सुधार का लगातार फॉलोअप भी लेते हैं।

न्यौछावर करना है तो सही जगह करो

विभाग ने लोगों को इस दिशा में जागरूक करने के लिए कई तरह के तर्क दिए। अलग-अलग आदतों के लोगों उनकी आदतों के हिसाब से समझाया। आप सिगरेट फूंकते हैं, शादी-ब्याह में न्यौछावर करते हैं, होटलों में टिप देते हैं, यदि यही राशि इन अति कुपोषित बच्चों के पालन के लिए दें दे तो उनकी सेहत सुधरेगी और आपको 
 हमने लोगों को समझाया कि आप सिगरेट फूंकते हैं, न्यौछावर करते हैं, टिप देते हैं 

10 बच्चों से हुई थी शुरूआत

इस कार्यक्रम की शुरूआत पिछले दतिया जिले से हुई थी। यहां 10 अतिकुपोषित बच्चों के भरण-पोषण और कुपोषण से मुक्ति की जिम्मेदारी कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों ने ली थी। इसके बाद प्रदेश भर में अधिकारियों, राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों, व्यापारियों, सामाजिक संगठनों तथा समाज के अन्य लोगों ने इन कुपोषित बच्चों की जिंदगी संवारने का बीड़ा उठाया। 

ऐसे लोग भी हैं...

इन 87 हजार अतिकुपोषित बच्चों की मदद करने वाले लोगों में अधिकांश ऐसे भी हैं जो बिना किसी प्रचार के इस काम को करते हैं। वे अपना नाम उजागर नहीं करते, लेकिन बच्चों की चिंता उन्हें जरूर रहती है। वे समय-समय पर आंगनबाड़ियों में पहुंचकर इन बच्चों के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हैं। 

शहडोल संभाग सबसे अव्वल

इस काम में शहडोल संभाग के लोगों ने सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है। पूरे प्रदेश में इस संभाग के तीनों जिलों में सबसे अधिक अतिकुपोषित बच्चों की जिम्मेदारी लोगों ने ली। यहां अच्छी बात यह भी है कि केवल अतिकुपोषित ही नहीं बल्कि कुपोषित और सामान्य से थोडे कम वजन वाले बच्चों की जिम्मेदारी भी कई लोगों ने उठाई है। वे उनके खाने-पीने और उन्हें अच्छी जिंदगी देने के लिए लगातार सक्रिय हैं। 

ऐसी होती है मदद

  • पोष्टिक भोजन 
  • फल एवं अन्य पोष्टिक आहार 
  • कपड़े, जूते-चप्पल आदि 
  • कापी-किताबें
  • आंगनबाड़ी भवन की व्यवस्थाओं के लिए सामग्री
  • गुप्त दान


मप्र पर हमेशा कुपोषण को लेकर उंगली उठती रहती है, इसलिए हम सुपोषण अभियान भी चला रहे हैं। इसमें हम कमजोर मां और बच्चे की 12 दिन देखभाल करते हैं, टेकहोम राशन देते हैं लेकिन इतना काफी नहीं है। इसलिए हमने दतिया से स्नेह सरोकार अभियान की शुरूआत की। हम दिल से चाहते हैं कि प्रदेश का हर बच्चा स्वस्थ हो, इसके लिए समुदाय का सहयोग जरूरी है। अब बढ़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं। यह अभियान लगातार चलेगा। मप्र के हरेक बच्चे को सुपोषित बनाना है। 

माया सिंह, मंत्री, महिला एवं बाल विकास, मध्यप्रदेश

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