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सोमवार, 26 सितंबर 2016

मप्र में डिक्की की दस्तक, दलित उद्यमियों को मिलेगा मंच

- दलितों को उद्यमी बनाने के प्रयास तेज
- नवंबर से शुरू होगा डिक्की का मध्यप्रदेष चैप्टर
- प्री-लांच मीटिंग में दलित उद्यमियों ने दिखाया उत्साह


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

देश के उद्योग जगत और भारत की अर्थव्यवस्था में विशेष भूमिका निभाने वाले दलित उद्यमियों के संगठन डिक्की यानी दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज का मध्यप्रदेश चैप्टर जल्द ही शुरू होने जा रहा है। उद्योग-व्यवसाय कर रहे दलित समाज के उद्यमियों को सशक्त करने, उन्हें मार्गदर्शन देने के साथ ही दलितों की नई पीढ़ी को नए उद्योग-धंधों से जोड़कर उन्हें उद्यमी बनाने के लिए डिक्की के बैनरतले पिछले दस वर्षों से काम चल रहा है। 

देष के 21 राज्यों में डिक्की के चैप्टर हैं, जहां लाखों दलित उद्यमी इस संस्था से जुड़े हुए हैं। 22वें चैप्टर की शुरूआत मध्यप्रदेश में होने जा रही है। इस संबंध में हाल ही में भोपाल में हुई मध्यप्रदेश चैप्टर की प्री-लांच मीटिंग में मध्यप्रदेश चैप्टर के औपचारिक शुभारंभ पर चर्चा हुई। मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग के लिए डिक्की के वेस्टर्न इंडिया कॉ-आर्डीनेटर और विदर्भ चैप्टर के प्रसीडेंट श्री निश्चय शेल्के, कोर ग्रुप मेंबर श्री मनोज दिवे, श्री विजय सोमकुंवर, श्री प्रकाश पपाचन नागपुर से भोपाल आए। प्री-लांचिंग मीटिंग में प्रदेश के करीब 50 दलित कारोबारियों, व्यवसाईयों और उद्यमियों ने भाग लिया। डिक्की के मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग के समन्वय का काम डॉ. मनोज आर्य देख रहे हैं।
श्री शेल्के ने यहां उपस्थित दलित कारोबारियों को डिक्की की रीति-नीतियों के बारे में बताते हुए कहा कि भारत सरकार के साथ ही अनेक राज्य सरकार की नीतियों के निर्माण में डिक्की की प्रभावी भूमिका है। दलित समुदाय के युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए भारत सरकार ने डिक्की के सुझाव पर अनेक निर्णय लिए हैं। इसी तरह यूपीए सरकार द्वारा दलित उद्यमियों के लिए स्थापित 200 करोड़ का वेंचर केपीटल फंड भी डिक्की के प्रयासों का परिणाम था। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सहित अनेक राज्य सरकारों ने डिक्की के सुझाव पर दलित उद्यमियों के लिए विषेष प्रावधान किए हैं। उन्होंने स्टार्ट अप और स्टैंडअप इंडिया कार्यक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि यह एक बेहतर अवसर है। भारत सरकार ने बैंकों की जिम्मेदारी तय कर दी है कि वे दलित उद्यमियों को न केवल वित्तीय सहायता देंगी बल्कि उनका कारोबार स्थापित करने के लिए बाजार उपलब्ध कराने जैसी सहायता भी उपलब्ध कराएंगी। देश में विभिन्न बैंकों की एक एक लाख 25 हजार शाखाएं हैं, इन सभी शाखाओं पर एक दलित को कारोबार स्थापित कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। श्री शेल्के ने उद्योग-धंधा स्थापित करने के लिए सरकार की अनेक सुविधाओं की विस्तार से जानकारी दी। 
डिक्की की कार्यशैली के बारे में बताते हुए श्री शेल्के ने कहा कि -‘‘डिक्की का भरोसा धरना-प्रदर्शन, आंदोलन में नहीं है, हम आंकड़े लेकर सरकार के साथ बैठते हैं, बात करते हैं और निर्णय कराते हैं। उन्होंने कहा कि अब सरकारी नौकरियां लगातार कम हो रही हैं, इसलिए दलित के समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगा बिजनेस करें, यह जरूरी है। अभी हमारी पीढ़ी बिजनेस के क्षेत्र में आई है इसलिए कुछ परेशानियां हो सकती हैं, लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक मजबूत आधार होगा। 

समस्याएं सुनीं, समाधान बताएं

श्री शेल्के के नेतृत्व में डिक्की की टीम ने इस प्री लांच मीटिंग में मौजूद मध्यप्रदेश के दलित उद्यमियों से परिचय प्राप्त किया और उनसे उनके बिजनेस को लेकर चर्चा की। इस चर्चा में मध्यप्रदेश के उद्यमियों ने अपनी समस्याएं बताईं और खासकर बैंकों के स्तर पर होने वाली कठिनाईयों को सामने रखा। शेल्के ने कहा कि बहुत सारी समस्याएं सिर्फ इसलिए हैं, हमारे समुदाय को जानकारी नहीं है, कि उनके लिए कौन-कौन सी सुविधाएं हैं, जिनका लाभ लेकर वे अपना कारोबार स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने डिक्की का मध्यप्रदेश चैप्टर शुरू होने के बाद इन्हीं कठिनाईयों पर फोकस किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में ज्यादा से ज्यादा दलित कारोबारी और युवा उद्यमी डिक्की से जुड़ें, सदस्यता लें। 

नवंबर में होगी शुरूआत

प्री-लांच मीटिंग में व्यापक विचार-विमर्ष के बाद तय हुआ कि आगामी नवंबर माह में डिक्की का मध्यप्रदेश चैप्टर की लांचिंग की जाएगी। लांचिंग कार्यक्रम भोपाल में होगा जिसमें उद्योग जगत के साथ ही राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र की अनेक हस्तियां मौजूद रहेंगी। 

डिक्की के बारे में

डिक्की भारत के शीर्षस्थ औद्योगिक संगठनों में से एक है। डिक्की की स्थापना श्री मिलिंद काम्बले ने वर्ष 2005 में की थी। देष के 21 राज्यों में डिक्की के चैप्टर हैं। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात में भी दलित उद्यमियों ने अपने उद्यम स्थापित किए हैं। इसलिए इन देशों में भी डिक्की की शाखाएं हैं। पिछले साल 29 दिसंबर को डिक्की ने डॉ. आंबेडकर के 125वीं जयंती के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में एससी-एसटी अंत्रप्योनरषिप पर नेशनल कांफ्रेंस आयोजित की थी। इसमें देष भर के दलित बिजनेसमेन, कारोबारी और युवा उद्यमियों ने भाग लिया था। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद्र गहलोत, सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद, भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते, तत्कालीन कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार, रेल मंत्री सुरेष प्रभु सहित अनेक मंत्री और भारत सरकार के आला अधिकारी शामिल हुए थे।



''लोगों ने दलितों की एक छवि गढ़ रखी है, जिसकी चमड़ी काले रंग की हो, शरीर पर कपड़े ना हो, जबकि अंबेडकर का दलित मर्सेडीज़ में चलता है और सूट पहनता है।''

मिलिंद कांबले, अध्यक्ष, दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI)


शनिवार, 24 सितंबर 2016

दलित की शवयात्रा को नहीं मिला रास्ता, लुप्त हो रहीं जनजातियों से सरकार ने मुंह फेरा, 14 साल के अभियान के बाद भी 17 हजार पद खाली

- मध्यप्रदेश में वंचित वर्गों से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाएं एवं खबरें
- समुदाय और सरकार, दोनों के उत्पीड़न को झेल रहा वंचित वर्ग

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

मध्यप्रदेष के अलग-अलग हिस्सों में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से जुड़े अनेक समाचार भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्रों में प्रमुखता से आज प्रकाशित हुए हैं। यह समाचार इन दोनों समुदायों की मौजूदा स्थिति को तो बयां करते हैं, साथ ही यह भी बता रहे हैं कि आज भी भारत में कितनी असमानता, शोषण और अत्याचार है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों और सुविधाओं के बावजूद यह स्थिति बताती है कि इन दोनों समुदाय का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न ही बहुसख्ंयक समाज की मानसिकता में कोई बदलाव आया है। इस स्थिति के बावजूद अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण सहित विभिन्न सुविधाओं के गैर-जरूरी, गैर-कानूनी और गैर संवैधानिक पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है। 

अखबारों में प्रकाशित खबरें

नव दुनिया, भोपाल 24 सितंबर

 समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर खंडवा जिले के डोंगरगांव की एक घटना ‘‘नहीं दिया रास्ता तो पुलिस के साए में दलित की शवयात्रा’’ शीर्षक से प्रकाषित की गई है। इसमें बताया गया है कि खंडवा से करीब 30 किलोमीटर दूर डांगरगांव में दलित महिला की शवयात्रा खेत में से निकालने की बात पर दो घंटे विवाद हुआ। खेत मालिक द्वारा रास्ता देने से इंकार करने पर पुलिस मौके पर पहुंची और समझाइश देकर शवयात्रा निकलवाई। 

इसी समाचार पत्र में ने इसी पृष्ठ पर ‘‘प्रदेष के 193 गांवों में पीने योग्य पानी नहीं’’ शीर्षक से एक ओर खबर प्रकाशित की है। केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित इस खबर में कहा गया है कि इन गांवों से पेयजल के जो सैंपल लिए गए, उनमें फ्लोराइड, आयरन, नाईट्रेट, सहित करीब एक दर्जन खतरनाक रासायनिक तत्व मिले हैं।
रिपोर्ट के अनुसार ऐसे राज्यों में मध्यप्रदेष 17वें नंबर पर हैं जहां बसाहटों में पेयजल स्वच्छ नहीं है। नरसिंहपुर ऐसा जिला है, जहां सबसे ज्यादा गंदा पानी लोग पी रहे हैं।  स्वभाविक रूप से ये वे गांव हैं जहां, अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी अपेक्षाकृत अधिक निवास करती है। इन समुदायों की आबादी को पीने का स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं हो रहा।

दैनिक भास्कर, भोपाल 24 सितंबर 

समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर एक महत्वपूर्ण खबर अनुसूचित जनजातियों को लेकर प्रकाशित हुई है। इस खबर में खुलासा किया गया है कि राज्य सरकार ने पिछले दस साल से जनजातियों से जुड़ी जानकारी भारत के राष्ट्रपति को भेजी ही नहीं। खबर के मुताबिक लुप्त हो रही जनजातियों की जानकारी हर साल राष्ट्रपति सचिवालय को भेजी जाना जरूरी है। ऐसी जनजातियां, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं, उनकी मॉनीटरिंग राष्ट्रपति सचिवालय करता है ताकि इनके कल्याण के लिए आवष्यक कदम उठाए जाएं। खबर में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि आदिवासी मत्रणा परिषद की बैठक भी मध्यप्रदेश में लंबे समय से नहीं बुलाई गई है। 



पीपुल्स समाचार, भोपाल 24 सितंबर 2016

पीपुल्स समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक 16 पर प्रकाशित एक महत्वपूर्ण समाचार में बताया गया है कि मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के आरक्षित पदों पर भर्ती के लिए पिछले 14 साल से विशेष अभियान चलाया जा रहा है लेकिन पिछले साल तक केवल 5 हजार पद ही भरे गए जबकि 17 हजार से अधिक पद रिक्त हैं। खबर में बताया गया है कि मप्र हाईकोर्ट द्वारा पदोन्नति में आरक्षण खत्म किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की अपील के बाद इस मामले पर निर्णय के लिए बनी कैबिनेट सब कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ है। खबर में बताया गया कि सरकार कि किस विभाग में आरक्षित श्रेणी के कितने पद रिक्त हैं। 

रविवार, 18 सितंबर 2016

दलित-आदिवासी युवाओं ने थामी समाज के उत्थान की कमान

चित्रों में देखिए, इनका जोश, जुनून, जागरूकता, शासन करने की क्षमता और योग्यता

अधिकारों को लेकर जागृत हो रहा वंचित वर्ग

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

 भोपाल। आरक्षण के कारण अक्सर सामान्य वर्ग के निशाने पर रहने वाली अनुसूचित जाति-जनजाति समाज की युवा पीढ़ी ने सामाजिक उत्थान की मशाल अपने हाथों में ले ली है। इस पीढ़ी पर ‘‘अयोग्यता’’ का ठप्पा लगाकर इन्हें हतोत्साहित करने वालों का अभियान अब विफल होता दिखाई दे रहा है। संवैधानिक आरक्षण को बैसाखी कहकर इनकी योग्यता पर सवाल खड़े करने वालों के हरेक तंज, हरेक सवाल और हरेक आलोचना का पूरे साहस के साथ जवाब दिया। 


18 सितंबर को राजधानी में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने आए करीब 50 हजार से ज्यादा दलित-आदिवासी छात्रों के एकाएक इकट्ठे होने से स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के होश से उड़ गए।



  यादगारे शाहजहांनी पार्क में हुई सभा में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के विभिन्न युवा संगठनों के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों ने अपनी ओजस्वी भाषण कला, तर्कों एवं तथ्यों के साथ अपनी बात रखने के अंदाज ने उपस्थित हजारो युवाओं में जोश भर दिया।


 इस मैदान में चारों तरफ जय बड़ादेव और जय आंबेडकर के नारे गूंंज रहे थे। संविधान की समीक्षा, आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण, बैकलॉग पदों की पूर्ति, दलित आदिवासी समाज का विकास, इन समुदायों पर अत्याचार, अपराध, भेदभाव सहित सभी ज्वलंत मुद्दों पर यहां चर्चा हुई। 




चित्रों में देखिए, इनका जोश, जुनून, जागरूकता, शासन करने की क्षमता और योग्यता








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

गुजरात में दलितों की वर्णमालाः ए से अंबेडकर, अ से अत्याचार

Dalit alphabet: 'A' for Ambedkar

Dr. Anil Sirvaiya
9424455625 

sirvaiyya@gmail.com

'बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकरबालपोथी


गुजरात के दलित बाहुल्य इलाकों में इन दिनों 'बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर- बालपोथी' नाम की पाठ्यपुस्तक की जबरदस्त मांग है। इस किताब को स्कूल तो नहीं खरीद रहे हैं लेकिन जहां-जहां दलितों की आबादी ज्यादा है, वहां इसे लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस खास प्राथमिक पाठ्यपुस्तक में हिंदू संकेतों के बजाय बौद्ध और अंबेडकर की जीवन से संबंधित शब्द लिए गए हैं। इस किताब के अंग्रेजी संस्करण को राजस्थान की हिंदी अध्यापक कुसुम मेघवाल ने लिखा है जिसमें A से अंबेडकर और B से बुद्ध पढ़ाया जाता है। 
ठीक इसी तरह हिंदी और गुजराती संस्करण में क्रमशः   से अत्याचार और से कमल नहीं बल्कि कलम पढ़ाया जाता है। इस किताब के हिंदी और गुजराती संस्करण के लेखक धीरज प्रियदर्शी हैं, जो एक टेलर हैं।  धीरज ने मुख्यधारा की वर्णमाला से हटकर इस नई किताब में ऐसे शब्द चुने हैं जो दलित बच्चों के लिए फिट हैं। अंबेडकरवादी साहित्य के लाइब्रेरी चलाने वाले प्रियदर्शी का कहना है, 'हमारे बच्चों के लिए अच्छा है कि वे से कलम पढ़ें, कि से कमल, जोकि बीजेपी का चुनाव निशान है।'

BHOPA/AHMEDABAD: It's not bought by schools, but the alphabet book for children, 'Babasaheb Dr Ambedkar - Balpothi' is witnessing great demand in areas with high population of dalits. The author of the Hindi and Gujarati version of the book, Dhiraj Priyadarshi, a tailor from Vadaj, has carefully deconstructed mainstream study books and has substituted established symbols in alphabet books with those he feels suitable for dalit children. 
The elementary textbook moves away from Hindu symbols introduced through primary education and substitute them with Buddhist symbols and anecdotes from the life of Babasaheb Ambedkar. In the English version of the book, written by a Rajasthan-based Hindi teacher Kusum Meghwal, 'A' is for Ambedkar and 'B' is for Buddha. Similarly, in Priyadarshi's Hindi and Gujarati versions of the book, 'Aa' is for 'Atyachar' (atrocity) and 'Ka' is for Kalam (pen), and not 'Kamal'. "It is good that our children would learn 'Ka' for 'Kalam' rather than 'Ka' for 'Kamal'- BJP's election symbol," said Priyadarshi, who also owns a library on Ambedkarite literature. He had published the book about four months ago to enlighten kids about the life of Babasaheb and other great personalities, he said. He said that sale of the books increased after Gujarat started witnessing dalit agitation after the Una flogging incident.The book counts Jesus Christ, Karl Marx and Prophet Muhammad along with Ambedkar among five greatest personalities in the history of humanity. 
"Parents belonging to dalit and other downtrodden communities buy the 60-page book to inform their children about the life of Babasaheb," said Priyadarshi, adding, "The book in demand in city areas with high population of dalits like Vadaj, Vejalpur, Amraiwadi, Majurgam, and Behrampura." 
In Gujarati and Hindi alphabets, the book teaches 'Kha' is for 'Khet' (farm), 'Ga' for 'Gareebi' (poverty), 'Chha' for 'Chhatrapati Shahuji', 'Ja' for Janmbhoomi Mhow' (Ambedkar's birthplace), 'Ba' for 'Bandhuta' (fraternity), 'Da' for 'Dikshabhoomi' (where Ambedkar embraced Buddhism in Nagpur), 'Dhha' for 'Dharmantaran' (conversion) and 'Va' for 'Varna Vyavastha' (caste system). 
The book also carries the 22 pledges Ambedkar made at the time of renouncing Hinduism and embracing Buddhism. It also has images of principal events of his life including handing over the Indian Constitution to then President Rajendra Prasad in presence of the first Prime Minister Jawaharlal Nehru, the first deputy Prime Minister Vallabhbhai Patel and the last governor general of India, C Rajagopalachari. 
Two other important events of Ambedkar's life, including Mahad Satyagrah of 1927 where he led dalits to drink water from a main water tank in Mahad of Raigad district in Maharashtra, and the Satyagraha at Kalaram Mandir of Nashik where Ambedkar marched along with dalits to demand their entry to precincts banned for 'untouchables' have also been covered in the book.

सोमवार, 1 अगस्त 2016

मप्र में 86.5 प्रतिशत निवेश सिर्फ घोषणाओं तक सीमित: एसोचैम

  • एसोचैम की रिपार्ट में सामने आई प्रदेश में निवेश के दावों की हकीकत
  • निवेश में आई 14 प्रतिशत की गिरावट
  • क्रियान्वयन में देरी से कई प्रोजेक्ट की लागत बढ़ी
  • निवेश मित्र वातावरण नहीं बना पाई मध्यप्रदेश सरका
Key Word : Madhya Pradesh, GSDP, Global Investers sumiit (GIS) Indore, MPAKVN, MPTRIFAC, Shivraj singh chauhan, Krishi Karman Award, ASSOCHAM, Invest MP, ease of doing business, Indore, Bhopal. Govt. of Madhya Pradesh 
डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

अक्टूबर में सिंगापुर सहित कई देशों के साथ मिलकर पांचवीं ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करने जा रही मप्र सरकार के निवेश के दावों की पोल खुल गई है। द एसोसिएटेड चैम्बर्स आॅफ काॅमर्स एण्ड इण्डस्ट्री आॅफ इण्डिया (एसोचैम) की एक अगस्त को जारी रिपोर्ट में मप्र में निवेश की हकीकत बताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वित्तीय वर्ष में आए 53000 करोड़ के निवेश में से 86.5 प्रतिशत निवेश केवल घोषणाओं तक ही सीमित हैं। शेष निवेश परियोजनाएं भी विभिन्न प्रकार की मंजूरियों के फेर में उलझी हैं। 

देश के शीर्ष उद्योग मण्डल द एसोसिएटेड चैम्बर्स आॅफ काॅमर्स एण्ड इण्डस्ट्री आॅफ इण्डिया (एसोचैम) द्वारा मध्य प्रदेश में नये निवेश की स्थिति पर किये गये ताजा अध्ययन में यह सभी तथ्य उजागर हुए हैं।
‘एनालीसिस आॅफ मध्य प्रदेश: इकोनाॅमी, इंफ्रास्ट्रक्चर एण्ड इन्वेस्टमेंट’ (मध्य प्रदेश का विश्लेषण: अर्थव्यवस्था, मूलभूत ढांचा एवं निवेश) विषय पर किये गये इस अध्ययन में कहा गया है कि ‘‘वर्ष 2013-14 में करीब 60 प्रतिशत की गिरावट के बाद मध्य प्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के आयोजन के फलस्वरूप राज्य में नये निवेश में साल दर साल 700 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्तरी हुई लेकिन गिरावट का दौर फिर शुरू हुआ और वर्ष 2015-16 में इसमें 14 प्रतिशत की कमी आयी।’’

इन क्षेत्रों में आया नया निवेश

पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान मध्य प्रदेश में निर्माण क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 68 प्रतिशत नया निवेश आया। उसके बाद बिजली (19 प्रतिशत), सेवा (11.5 प्रतिशत) और निर्माण (01 प्रतिशत) ने नया निवेश हासिल किया।

निजि निवेशकों को नहीं लुभा पाई सरकार

अध्ययन के अनुसार ‘‘हालांकि ग्लोबल समिट के आयोजन का मकसद निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना और निवेशकों को लुभाना था, लेकिन वर्ष 2014-15 में करीब 74 प्रतिशत निवेश सार्वजनिक क्षेत्र की तरफ से आया।’’ रिपोर्ट के मुताबिक ‘‘हालांकि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान यह रुख पलट गया और 2015-16 में राज्य द्वारा आकर्षित किये गये नये निवेश का 81 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र की तरफ से प्राप्त हुआ।’’ मध्य प्रदेश ने वर्ष 2015-16 में कुल 5.75 लाख करोड़ रुपये का कुल लाइव (सक्रिय) इन्वेस्टमेंट हासिल किया था। इस तरह उसने साल-दर-साल 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की। एक साल पहले इस राज्य ने 5.50 लाख करोड़ रुपये का लाइव इन्वेस्टमेंट प्राप्त किया था।

55 प्रतिशत निवेश पाॅवर सेक्टर में

राज्य में कुल सक्रिय निवेश का करीब 55 प्रतिशत हिस्सा बिजली क्षेत्र में प्राप्त हुआ है। उसके बाद विनिर्माण क्षेत्र में 20 प्रतिशत, गैर-वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में 12 प्रतिशत, सिंचाई के क्षेत्र में 06 प्रतिशत, खनन के क्षेत्र में 04 प्रतिशत, निर्माण एवं रियल एस्टेट के क्षेत्र में 03 प्रतिशत ऐसा निवेश आकर्षित किया गया है।

तीन लाख करोड़ के निवेश की धीमी रफ्तार

एसोचैम के इकोनाॅमिक रिसर्च ब्यूरो (एईआरबी) द्वारा तैयार किये गये इस अध्ययन के अनुसार वर्ष 2015-16 में कुल सक्रिय निवेश परियोजनाओं में से तीन लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं अपने क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। ऐसी परियोजनाओं में सबसे ज्यादा 60.5 प्रतिशत हिस्सेदारी बिजली क्षेत्र की है। उसके बाद गैर वित्तीय सेवाआंे (13 प्रतिशत), सिंचाई (10.5 प्रतिशत), विनिर्माण (लगभग 08 प्रतिशत), निर्माण एवं रियल एस्टेट (4.5 प्रतिशत) और खनन (करीब 04 प्रतिशत) क्षेत्रों की परियोजनाएं अपने क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों से गुजर रही हैं।

87 प्रतिशत प्रोजेक्ट में 4 से 5 साल का विलंब, 35 प्रतिशत से ज्यादा लागत बढ़ी

अध्ययन के अनुसार मध्य प्रदेश में करीब 87 प्रतिशत निवेश परियोजनाएं ऐसी हैं, जो औसतन 57 महीने के विलम्ब से चल रही हैं। इसके अलावा तैयार होने में काफी देर के कारण 57 निवेश परियोजनाओं की लागत 35 प्रतिशत से ज्यादा यानी करीब 67 हजार करोड़ रुपये तक बढ़ चुकी है जबकि इन परियोजनाओं की वास्तविक लागत लगभग दो लाख करोड़ रुपये ही थी। पूर्ण होने में विलम्ब के कारण परियोजनाओं की बढ़ी कुल लागत में बिजली क्षेत्र की सर्वाधिक 60.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। उसके बाद सिंचाई (27 प्रतिशत), गैर-वित्तीय सेवाआंे (07 प्रतिशत) और विनिर्माण (06 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है।

विलंब से इरीगेशन प्रोजेक्ट की लागत सबसे ज्यादा बढ़ी

सिंचाई क्षेत्र की परियोजनाओं की लागत में सबसे ज्यादा 76 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उसके बाद विनिर्माण क्षेत्र (35 प्रतिशत), बिजली क्षेत्र (30 प्रतिशत), सेवा क्षेत्र (24 प्रतिशत) तथा अन्य परियोजनाओं पर यह मार पड़ रही है।

स्टेट प्रोजेक्ट की लागत में 55 प्रतिशत का उछाल

राज्य सरकार की परियोजनाओं की लागत में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। प्रदेश सरकार की परियोजनाओं की लागत में 55 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। उसके बाद निजी क्षेत्र की परियोजनाओं की लागत में 34 प्रतिशत तथा केन्द्र की परियोजनाओं की लागत में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। 

विभिन्न प्रकार की मंजूरियों में अटका निवेश

परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलम्ब एक चिंताजनक मसला बन गया है और यह समस्या सिर्फ मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में कमोबेश ऐसी ही स्थितियां हैं। इन हालात के मुख्य कारणों में भूमि अधिग्रहण तथा पर्यावरण तथा अन्य सम्बन्धित स्वीकृतियों में विलम्ब, कच्चे माल की आपूर्ति में रुकावटें, कुशल श्रमिकों की कमी, वित्तीय साधनों की कमी, प्रोत्साहकों तथा अन्य लोगों की घटती दिलचस्पी आदि शामिल हैं।

कम हो रही प्रायवेट सेक्टर की दिलचस्पी, मप्र ने खोई अपनी चमक

एसोचैम के अध्ययन के अनुसार भौतिक तथा सामाजिक ढांचे के अव्यवस्थित विकास की वजह से भागीदारी के मामले में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी घटी है। इसकी वजह से मध्य प्रदेश में निवेश के परिदृश्य ने निराशाजनक रूप से अपनी चमक खोई है। यही वजह है कि यह राज्य 20 प्रतिशत आर्थिक विकास जैसी बड़ी उपलब्धि का भी फायदा नहीं उठा पा रहा है। आर्थिक विकास का राष्ट्रीय औसत 17 प्रतिशत ही है।

कम हुई देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी 

इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था में मध्य प्रदेश का योगदान वर्ष 2005-06 के चार प्रतिशत के स्तर के मुकाबले 2013-14 में 3.9 प्रतिशत रहा। यानी इसमें मात्र 0.1 प्रतिशत की ही गिरावट आयी है।

12 साल में सिर्फ इतना हुआ विकास..., कृषि विकास के दावों पर सवाल

अध्ययन के अनुसार मध्य प्रदेश के करीब 70 प्रतिशत कामगार अपनी रोजीरोटी के लिये कृषि तथा उससे सम्बन्धित कार्यों पर निर्भर करते हैं, मगर इसके बावजूद सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान आशा के अनुरूप नहीं है। वर्ष 2004-05 में जहां मध्य प्रदेश के जीएसडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 27.7 प्रतिशत था, वहीं वर्ष 2014-15 में यह 28.1 प्रतिशत तक ही पहुंच सका।
कृषि क्षेत्र के विकास में सिंचाई की सुविधाएं सबसे महत्वपूर्ण कारक होती हैं। इन सुविधाओं की स्थितियां कृषि क्षेत्र में निवेश के आकार पर निर्भर करती हैं। हालांकि मध्य प्रदेश ने वर्ष 2015-16 में करीब 36 हजार करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, मगर उनसे सम्बन्धित 88 प्रतिशत से ज्यादा परियोजनाएं अभी क्रियान्वयन के दौर से गुजर रही हैं।

चिंताजनक तथ्य यह भी...

एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान वर्ष 2010-11 में प्राप्त सर्वाधिक 26 प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में 22 प्रतिशत के स्तर तक जा गिरा। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में कामगारों की निर्भरता भी वर्ष 2001 में आकलित चार प्रतिशत के मुकाबले 2011 में घटकर तीन प्रतिशत हो गयी।

बुधवार, 23 मार्च 2016

44.7 % आबादी के पास नहीं रेडियो, टीवी, मोबाइल

  • कम हुआ रेडियो का क्रेज, टेलीफोन एवं मोबाइल उपभोक्ता बढ़े
  • जनगणना के आंकड़ों के अध्ययन में रोचक तथ्य सामने आए



डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Word : Census 2011, Madhya Pradesh, Landline, Mobile, Radio,  Television, Rural Internate  

मध्यप्रदेश में 44.7 प्रतिशत आबादी के पास कम्युनिकेशन का कोई ‘स्पेसिफाइड’ साधन और तरीका नहीं है। एक तरह से यह आबादी बेहतर कम्युनिकेशन नहीं कर पाती है। इनके पास पर्याप्त सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। जनगणना 2011 के आंकड़ों के हाल ही में हुए विश्लेषण में यह बात सामने आई है। 

जनगणना 2011 के अनुसार मप्र में कुल एक करोड़ 49 लाख, 67 हजार 597 परिवार निवास करते हैं। इससे पिछली जनगणना में परिवारों की यह संख्या एक करोड़ 9 लाख 19 हजार थी। ताजा जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 14.5 प्रतिशत लोग रेडियो और ट्रांजिस्टर का उपयोग कम्युनिकेशन के साधन के तौर पर करते हैं। 32.1 प्रतिशत के पास टेलीविजन हैं, जबकि 46 प्रतिशत लोग टेलीफोन और मोबाइल का भी उपयोग करते हैं। इन आंकड़ों में खास बात यह है कि 44.7 प्रतिशत आबादी के बाद कम्युनिकेशन के पुख्ता और पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। हालांकि यह आंकड़े जनगणना निदेशालय के निश्चित प्रारूप पर आधारित आंकड़े हैं। सूचनाएं पहुंचाने के लिए अन्य विविध साधनों का भी उपयोग भी किया जाने लगा है। 

आंकड़ों पर एक नजर

शहरी मध्यप्रदेश

कुल परिवार 38 लाख 45 हजार 232
रेडियोट्रांजिस्टर - 19.1 प्रतिशत परिवारों में
टेलीविजन - 71.3 प्रतिशत परिवारों में
टेलीफोन मोबाइल - 73.9 प्रतिशत परिवारों में
कोई स्पेसिफाइड मोड नहीं- 15.1 प्रतिशत परिवारों में

ग्रामीण मध्यप्रदेश

कुल परिवार : एक करोड़ 11 लाख 22 हजार 365
रेडियोट्रांजिस्टर - 13.0 प्रतिशत परिवारों में 
टेलीविजन - 18.6 प्रतिशत परिवारों में 
टेलीफोन मोबाइल - 36.4 प्रतिशत परिवारों में
कोई स्पेसिफाइड मोड नहीं - 54.9 प्रतिशत परिवारों में 

 लैंड लाइन और मोबाइल


  • शहरों में 73.8 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन टेलीफोन और मोबाइल 
  • 4.5 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन और 61.0प्रतिशत परिवारों के पास मोबाइल फोन हैं 
  • गांवों में 36.4 प्रतिशत परिवारों में लैंडलाइन टेलीफोन और मोबाइल 
  • इनमें से 1.7 प्रतिशत के पास लैंडलाइन और 33.5 परिवारों में मोबाइल हैं। 

23 जिलों में 50 प्रतिशत आबादी वंचित : 

प्रदेश के 23 जिले ऐसे हैं जहां 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास कम्युनिकेशन के लिए रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल में से कोई भी स्पेसिफाइड मोड नहीं है। 

  • शहरों में 13.8 और गांवों में 3.2 प्रतिशत परिवारों में कम्यूटर और लैपटाप , इंटरनेट
  • इनमें से 4.9 के पास इंटरनेट है और 8.9 के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
  • गांवों में 3.2 प्रतिशत परिवारों में कम्प्यूटर और लैपटॉप है।
  • इनमें से 0.2 के पास इंटरनेट की सुविधा है जबकि 3.0 प्रतिशत के पास यह सुविधा नहीं है। 



 जनगणना के इन आंकड़ों में केवल ढाई प्रतिशत की गलती हो सकती है। जनगणना कार्य सबसे बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई है।
-पीके चौधरी, संयुक्त निदे., जनगणना निदेशालय, मप्र 

सोमवार, 21 मार्च 2016

रामबाण औषधीय पौधों को बचाने टिशू कल्चर का सहारा

  • मैपकास्ट के केंद्र में 50 से अधिक पौधों के प्रोटोकाल तैयार
  • किसानों की आय बढ़ाने के लिए टिशू कल्चर पर  जोर
  • शहरों में हर्बल गार्डन के जरिए भी संरक्षण के प्रयास

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
keyword : MPCST, tissue culture, Bhopal, Madhya Pradesh, Dr. Rajesh Saxena

प्रदेश में दुर्लभ प्रजाति के औषधीय पौधों को संरक्षित करने और इनसे होने वाली पैदावार को बढ़ाने के लिए टिशूू कल्चर तकनीक कारगर हो रही है। वैसे तो प्रदेश में अनेक स्थानों पर किसान भी अपने स्तर पर टिशूू कल्चर के जरिए पौधों का उत्पादन करने लगे हैं, लेकिन प्रो. टीएस मूर्ति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र में व्यापक स्तर पर यह काम चल रहा है। औबेदुल्लागंज में 24 एकड़ के इस प्रक्षेत्र में औषधीय और सुगंध पौधों के विकास के लिए लगातार रिसर्च की जा रही है। 

केंद्र में टिशू कल्चर लैब में महत्वपूर्ण औषधीय पौधों धवई, अश्वगंधा, स्टीविया व पचैली पौधों का मल्टीपिकेशन किया गया है। टिशू कल्चर तकनीक से तैयार ब्रोकली, गन्ना, रूद्राक्ष और अश्वगंधा आदि पौधों की हाडनिंग कर ग्रीन हाउस में रखकर इनकी वृद्धि का अध्ययन किया जा रहा है। केंद्र ने अचार, अर्जुन, गिलोय और आंवला जैसे औषधीय महत्व के पौधों के प्रोटोकाल से पौध उत्पादन कर फील्ड में रोपण किया जा रहा है। केंद्र में अब तक 25 से अधिक दुर्लभ प्रजातियों के पौधों के प्रोटोकाल तैयार किए जा चुके हैं। 

रूद्राक्ष का प्रोटोकाल तैयार
केंद्र में ब्राह्मी, अडूसा,व कालमेघ का प्रोटोकाल तैयार किया गया है। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रूद्राक्ष के पौधे तैयार कर बगीचों में इन्हें लगाया जा रहा है। 

इन प्रजातियों पर काम शुरू :
बांस की नई प्रजाति, भूई आंवला, मरूआ, कलिहारी, भृगराज, चिरायता और कालमेघ के पौधों को टिशू कल्चर से विकसित करने के लिए प्रोटोकॉल तैयार करने का काम जारी है। 

किसानों की आय बढ़ाने का साधन
केंद्र के रिसर्च वैज्ञानिक डॉ. राहुल विजयवर्गीय कहते हैं कि केंद्र में टिशू कल्चर के तहत विभिन्न प्रजातियों के औषधीय महत्व के पौधों के प्रोटोकॉल तैयार किए जा चुके हैं।


पीएम के गांव की कमेटी के मेंबर :
केंद्र के निदेशक डॉ. राजेश सक्सेना मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को हर्बल गार्डन बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लिए वे टिशू कल्चर से विकसित पौधे उपलब्ध कराते हैं।


इसलिए उपयोगी हैं यह प्रजातियां

सर्पगंधा : तेज बुखार, ब्लडप्रेशर में उपयोगी।
अश्वगंधा : प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
गिलोय : रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। बुखार में काम आता है। 
बच: तुतलेपन को दूर करता है। 
ब्राह्मी : टायफाइड में लाभकारी।
अुर्जन: ब्लड प्रेशर में उपयोगी। 

इन पौधों के प्रोटोकॉल हो रहे तैयार
  • औषधीय एवं फलदार पौधे अनारक का प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है। 
  • अकरकरा, ब्राह्मी, गिलोय, केला, गन्ना, स्टीविया की हार्डनिग एवं रोप


केंद्र में प्लांट टिशू कल्चर के माध्यम से कई प्रजातियों को प्रयोगशाला में निर्मित करके उनका उत्पादन किया जा रहा है। 
डॉ. राजेश सक्सेना, सीनियर प्रिंसीपल सांइटिस्ट और केंद्र प्रभारी

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

Dr. Anil Sirvaiyya: दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल ...

Dr. Anil Sirvaiyya: दुनियाभर में विलुप्त हो रहा ‘बाटागुर’ बन रहा चंबल ...: कछुए की बाटागुर प्रजाति को संरक्षण की कवायद कई देशों में विलुप्त हुए इस प्रजाति के कछुए डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल 9424455625 sirva...

Dr. Anil Sirvaiyya: ‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड

Dr. Anil Sirvaiyya: ‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड: - सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराने की कवायद - नाटक का मंचन कर जुटाए पैसे - सरकारी स्कूलों, छात्रावासों लगाई वेंडिग मशीनें डॉ. अनिल सिरवैय...

Dr. Anil Sirvaiyya: खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का व...

Dr. Anil Sirvaiyya: खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का व...: विलुप्त हो रही राज्य मछली पर वन विभाग ने किया सर्वे जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर संरक्षण की कवायद  डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल 942445...

खलघाट की प्रवाहित जल धाराओं ने बचाया ‘महाशीर’ का वजूद


  • विलुप्त हो रही राज्य मछली पर वन विभाग ने किया सर्वे
  • जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर संरक्षण की कवायद 

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key word : Mahasheer, Biodiversity, Nimar, Badwah, Narmada River, Tiger of River, Madhya pradesh Biodiversity Board    

मध्यप्रदेश की राज्य मछली ‘महाशीर’ की विलुप्त हो रही प्रजाति को बचाने की कवायदों के बीच प्राकृतिक रूप से इसकी मौजूदगी के संकेत मिले हैं। वन विभाग के खंडवा वनवृत्त द्वारा किए गए क्षेत्रीय सर्वेक्षणों, स्थानीय वन समितियों, वन कर्मचारियों तथा मछुआरों आदि से चर्चा करने पर सामने आया है कि ओंकारेश्वर बांध से खलघाट के बीच पड़ने वाले नर्मदा के खंड में कई ऐसे स्थान हैं, जहां प्रवाहित जल धाराओं के कारण महाशीर मछली अभी भी मिला करती है। इसके यहां प्राकृतिक प्रजनन स्थल हैं। 

इन सर्वेक्षणों के बाद नर्मदा नदी के इस हिस्से में वन विभाग के साथ मिलकर मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड ने इसके संरक्षण का काम प्रारंभ किया है। इस सर्वेक्षण में सामने आया है कि बड़वाह वनमंडल के क्षेत्र में महाशीर मछली प्राकृतिक रूप से मिल रही है लेकिन संकेत यह भी मिले हैं कि इस मछली के बच्चे और अण्डे अब बहुत कम देखने में आते हैं जिससे इनकी संख्या में इस खंड में भी लगातार गिरावट आ रही है। वन विभाग और जैव विविधता बोर्ड के अनुसार वन क्षेत्रों में जहां बारहमासी प्रवाहित जल धाराएं अभी भी मौजूद है, वहां इस मछली के जीवित भंडारण एवं प्रजनन के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए यहां जैव विविधता बोर्ड एक विशेष प्रोजेक्ट क्रियान्वित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में महाशीर मछली के आवासीय सुधार के लिए प्राकृतिक एवं कृत्रिम जल स्त्रोतों का विकास कर संरक्षण किया जा रहा है।

2011 में घोषित हुई राज्य मछली

महाशीर मछली मुख्यत: नर्मदा पाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे बाड़स कहते हैं। नर्मदा की कुल लंबाई 1312 किलोमीटर ह। नर्मदा नदी मप्र में 1077 किलोमीटर में फैली हुई है। चूंकि महाशीर नर्मदा की प्रमुख मछली है और नर्मदा नदी की इतनी बड़ी सीमा मप्र में है, इसी आधार पर राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में इसे स्टेट फिश घोषित किया था। केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यिकीय अनुसंधान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार नर्मदा नदी में वर्ष 1958 से 1966 के मध्य मत्स्याखेट में महाशीर प्रजाति 28 प्रतिशत थी। जब इसे स्टेट फिश घोषित किया गया, तब नर्मदा नदी में होशंगाबाद के पास महाशीर का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत ही रह गया था। ये मछली नवंबर, दिसंबर में प्रजनन करती है। इसकी लंबाई ढाई फीट, चौड़ाई 6 इंच, वजन करीब 2 किलो होता है। टाइगर आॅफ फ्रेश वॉटर के नाम से जाने जानी वाली महाशीर मछली मुख्यत: बहते पानी की मछली है। महाशीर बहते पानी और उसमें डूबे पत्थर की तलहटी में निवास करती है। 

जैव विविधता के लिए जरूरी

प्रदेश में जैव विविधता संरक्षण एवं पारिस्थिकीय संतुलन के लिए महाीशर मछली का संरक्षण करना जरूरी है। महाशीर एक प्रमुख र्स्पोट फिश है। यह नदियों की बायोडायवसिर्टी को बचाती है। 



इसलिए विलुप्त हो रही महाशीर

  • नर्मदा बेसिन में बांधों का निर्माण होने से महाशीर के प्रजनन स्थल डूब क्षेत्र में आ गए
  • माइग्रेशन रुक जाने से प्राकृतिक प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा
  • नदी से कृषि के लिए अत्याधिक जल की निकासी के कारण
  • नर्मदा नदी में प्रदूषण बढ़ने और अवैध उत्खनन होने के कारण
  • मत्स्याखेट में अत्याधिक दोहन के कारण
  • मछुआरों में प्राकृतिक मत्स्य संरक्षण भावना का अभाव
  • ग्रासपिंग   प्रवृत्ति के कारण वंशी डोरी से पकड़े जाने के कारण। 

प्रदेश में मछलियां और उनकी स्थिति

  • जूलजीकल सर्वे आॅफ इंडिया के अनुसार प्रदेश में मछली की 215 प्रजातियां हैं। 
  • इनमें से 39 प्रजातियां आर्थिक रूप से उपयोगी हैं।
  • नेशनल ब्यूरो आॅफ फिशरीज जेनेटिक रिर्सोसेस के अनुसार 17 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। 
  • राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ के निदेशक की सलाह पर महाशीर को स्टेट फिश घोषित किया गया था। 
  • इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर ने भी महाशीर के विलुप्त होने पर चिंता जताई थी। 

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खंडवा वन वृत्त में स्थानीय वन अधिकारियों के सहयोग से महाशीर राज्य मछली का संरक्षण प्रारंभ किया गया है। आने वाले समय में वृहद स्तर पर इसके सरंक्षण के प्रयास किए जाएंगे। 
डॉ. एसपी रयाल, सदस्य सचिव, मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

‘उदिता’ के लिए आगे आया बॉलीवुड


  • - सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराने की कवायद
  • - नाटक का मंचन कर जुटाए पैसे
  • - सरकारी स्कूलों, छात्रावासों लगाई वेंडिग मशीनें

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
 Key Word : Menstruation, Udita madhya pradesh, Udita Project, ficci women's organisation, ICDS, Women and Chile Department, Anupam Khai, Neena Gupta, "mera vo matlab nahi tha"

किशोरी बालिकाओं में मासिक धर्म और इससे संबंधी व्यवहारों के दौरान स्वास्थ्य, स्वच्छता और रोगों से मुक्ति के लिए सेनेटरी नेपकिन के इस्तेमाल की जागरूकता को लेकर राज्य सरकार द्वारा चलाए जा प्रोजेक्ट ‘उदिता’ की मदद के लिए बॉलीवुड भी आगे आया है। हाल ही में वेलेंटाइन डे पर इंदौर में फिल्म अभिनेता अनुपम खेर और अभिनेत्री नीना गुप्ता ने सेनेटरी नेपकिन की सहज उपलब्धता के उद्देश्य से ‘मेरा वो मतलब नहीं था’ नाटक का मंचन किया। इस नाटक के मंचन से प्राप्त हुई राशि से सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता के लिए वेंडिंग मशीनें स्कूल, कॉलेज आदि स्थलों पर लगार्इं जाएंगी। 

वैसे तो प्रोजेक्ट उदिता राज्य सरकार ने शुरू किया है लेकिन इसमें बड़ी संख्या में समुदाय की भागीदारी भी हो रही है। इंदौर में इस नाटक मंचन फिक्की लेडीज आॅर्गेनाइजेशन (फ्लो) द्वारा आयोजित कराया गया। इस नाटक के आयोजन के जरिए सेनेटरी नेपकिन और वेंडिंग मशीन के लिए स्पांसरशिप और चैरिटी द्वारा राशि एकत्रित की गई। सेनेटरी नेपकिन के प्रयोग और विशेषकर ग्रामीणों अंचलों में इसकी उपलब्धता के लिए प्रदेश में प्रयास किए जा रहे हैं। गर्ल्स स्कूल, हॉस्टल, आंगनबाड़ियों आदि स्थानों पर वेंडिंग मशीनें लगाई जा रही हैं।

समूह की महिलाएं भी सक्रिय

ग्रामीण आजीविका समूह   से जुड़े स्व-सहायता समूहों की महिलाएं भी ग्रामीण अंचलों में सेनेटरी नेपकिन बनाकर इसकी जागरूकता के लिए काम कर रही हैं। इससे एक तरफ जहां ग्रामीण अंचलों में कम कीमत पर सेनेटरी नेपकिन मिल रही हैं, वहीं इससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है। छतरपुर, रायसेन, मंडला, डिंडोरी, धार, बड़वानी आदि जिलों में मिशन की महिलाएं यह काम कर रही हैं।

यह है स्थिति

कुछ शोध बताते हैं कि आज भी 88 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़ा, राख, मिट्टी, सूखे पत्ते आदि का उपयोग करती हैं। केवल 12 प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटेरी नेपकिन का उपयोग करती हैं। 42 प्रतिशत महिलाएं एक ही कपड़े को बार-बार उपयोग करती हैं। कम से कम 29 प्रतिशत महिलाएं गंदे कपड़ों का उपयोग करती हैं। महिलाएं जो माहवारी के दौरोने सेनेटरी नेपकिन का उपयोग नहीं करती हैं, उन्हें प्रजनन मार्ग के संक्रमणों के जोखिम की संभावना 70 प्रतिशत अधिक रहती है। (स्रोत- जनभागीदारी फाउंडेशन)

13 हजार से ज्यादा उदिता कार्नर

महिला एवं बाल विकास सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता के लिए प्रदेश उदिता कार्नर स्थापित कर रहा है। प्रदेश में अब तक 13 हजार 315 से अधिक उदिता कार्नर स्थापित हो चुके हैं।

कहां कितने उदिता कार्नर

संभाग उदिता कार्नर
भोपाल         1681
इंदौर          2750
जबलपुर          2335
ग्वालियर          480
नर्मदापुरम 632
शहडोल         1826
उज्जैन        796
रीवा       1605
चंबल           41
सागर 1169
कुल 13315
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स्कूल, हॉस्टल आदि स्थानों पर नेपकिन डिस्पेंसर मशीन लगाने के लिए राशि जुटाने अभिनेता अनुपम खेर और अभिनेत्री नीना गुप्ता के मंचन का मंचन नीफिक्की लेडीज आर्गेनाईजेशन द्वारा कराया था। इसमें एकत्रित हुई राशि का उपयोग मशीनें और सेनेटरी नेपकिन खरीदने में किया जाएगा। 
आरती सांघी, फाउंडर चेयरमेन, फिक्की लेडीज आॅर्गेनाइजेशन