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शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

मैं गरीब नहीं हूं...

- प्रदेश के युवक ने पेश की मिसाल
- गरीबी रेखा से अपना नाम हटाने कलेक्टर को दिया आवेदन
- 10 हजार कमाता है गंगाराम
डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संपन्न देश वासियों से अपील कर रहे हैं कि वे गरीबों के हक में रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ दें। इस अपील का अभी व्यापक असर होना बाकी है लेकिन इस बीच मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव से एक खबर निकली है, जो पूरे देश के लिए प्रेरणा बन सकती है। एक तरफ सक्षम लोग सब्सिडी छोड़ने से कतरा रहे हैं तो यहां 10 हजार रुपए महीना कमाने वाले एक युवक को कोई गरीब कहे, ये बात उसे पसंद नहीं है। इसीलिए उसने सरकार से कह दिया है कि उसका नाम गरीबी रेखा (बीपीएल) की सूची से हटा दिया जाए।

मप्र के आगर-मालवा के ग्राम छन्देड़ा के रहने वाले 34 साल के इस दलित युवक का नाम गंगाराम सूर्यवंशी है। गंगाराम ने 14 जुलाई को जिले कलेक्टर को जनसुनवाई के दौरान एक आवेदन देकर उसका नाम गरीबी रेखा की सूची से हटाने का आग्रह किया है। वर्ष 2002-03 में गंगाराम का नाम जिले की बीपीएल सर्वे 21 पर दर्ज है। गंगाराम ने कलेक्टर से कहा कि अब उसकी मासिक आय 10 हजार रुपए हो गई है, अब मैं गरीबी रेखा की सूची से ऊपर हो गया हूं, इसलिए मेरा बार-बार यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि मैं अपने-आपको गरीब क्यों समझूं। मेरा नाम बीपीएल सूची से हटा दिया जाए ताकि मैं इस कुंठा से मुक्त हो सकूं। गंगाराम का कहना है कि अब वह अन्य लोगों को भी इस दिशा में प्रेरित करना चाहता है ताकि जो लोग वास्तव में गरीब हैं, उन्हें उनके अधिकार मिल सकें।
गरीबी से संघर्ष
गंगाराम का अब तक जीवन गरीबी से संघर्ष करते हुए बीता है। पिता की अस्थाई आय के कारण परिवार में कभी भी अच्छे दिन नहीं रहे। गांव में मजदूरी से लेकर हर वह काम उसने किया, जिससे दो पैसे मिल सकें। पैसे कमाने के लिए उसने चित्रकारी करना भी सीख लिया है और यहीं से उसके जीवन में बदलाव का दौर शुरू हो गया। गंगाराम के परिवार में मां के अलावा पत्नी और दो बच्चे हैं। दोनों बच्चे पढ़ने जाते हैं। बकौल गंगाराम अब उसे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। आगर के अनुसूचित छात्रावास में रहकर हायर सेकेण्डरी करने वाले गंगाराम ने हाल ही में बीए की परीक्षा भी पास कर ली है। 
सारा श्रेय डीपीआईपी को
गंगाराम अपनी ‘अमीरी’ का सारा श्रेय डीपीआईपी यानी इंदिरा गांधी गरीबी उन्मूलन परियोजना को देते हैं। डीपीआईपी का दल जब गांव में पहुंचा तो उसकी नजर गंगराम की चित्रकारी पर पड़ी। परियोजना के प्रचार-प्रसार का काम मिल गया। उसने गांव में छह लोगों का एक समूह बनाया, सिलाई का काम सीखा। डीपीआईपी ने उसे गांव के लिए रिसोर्स पर्सन बनाया। इन सबसे गंगाराम की आय शुरू हो गई। उसने वाटरशेड के काम का अनुभव लिया और इसी के साथ कई काम किए। 2006 में डीपीआईपी ने समर्थ किसान प्रोड्यूसर प्रायवेट लिमिटेड कंपनी गंगाराम को इससे जोड़ा। 2011 में उसे आजीविका मित्र बनाया। इन सभी से उसकी थोड़ी-थोड़ी आय होती रही। गंगाराम कहते हैं कि वर्तमान में उसे कंपनी से जुड़कर 8 हजार रुपए हर महीने मिलते हैं। इस कंपनी के माध्यम से गांव स्तर पर खरीदी-बिक्री करवाता हूं जिसके कमीशन के रूप में दो हजार रुपए तक हर महीने मिल जाते हैं। इस तरह उसकी आय अब 10 हजार रुपए महीना हो गई है। 
गंगाराम को बनाएंगे ब्रांड एंबेस्डर
डीपीआईपी के परियोजना समन्वयक एलएम बेलवाल कहते हैं कि डीपीआईपी परियोजना में ऐसे कई हितग्राही हैं जो गरीबी से जूझ रहे थे लेकिन अब उनकी सलाना आमदनी एक लाख से अधिक हो गई है, इन्हें हमने लखपति क्लब में शामिल हैं। बेलवाल कहते हैं कि गंगाराम सूर्यवंशी को हम अपना ब्रांड एंबेस्डर बनाएंगे ताकि वह प्रदेश में भर जाकर लोगों को प्रेरित कर सके। 

150 से अधिक राशन कार्ड सरेंडर 
राजधानी भोपाल में बीपीएल कार्ड बनवाने के बाद करीब 150 बीपीएल कार्डधारकों ने अपने राशनकार्ड सरेंडर किए हैं। यह आंकड़ा पिछले तीन साल का है। इनमें कुछ शिक्षक से लेकर बड़े-बडेÞ दुकान व मकान स्वामी हैं। इनमें से कुछ ने स्वप्रेरणा से अपने बीपीएल कार्ड सरेंडर किए हैं तो कुछ ने कार्यवाही के डर से कार्ड जमा कर डाले हैं। पिछले साल 40 राशनकार्ड सरेंडर हुए। 

शनिवार, 18 जुलाई 2015

स्वच्छता और सम्मान के लिए दो कदम आगे

स्वच्छता के लिए जो किया जाए वह कम है। नए आईडिया और नई चीजों के इस्तेमाल से इस सोच को आगे बढ़ाने में और मदद मिलती है। मप्र में स्वच्छता अभियान में कुछ ऐसे ही नवाचार हो रहे हैं। भोपाल में बांस शिल्पकारों की बस्तियों में बांस के शौचालय यानी बैंबू टॉयलेट बनाने की तैयारी की जा रही है तो धार, अलीराजपुर, मंडला, डिंडोरी और राजगढ़ जैसे जिलों में लोग टायलेट के साथ बाथरूम भी बन रहे हैं। यहां महिलाएं कह रही हैं, खुले में शौच ही नहीं, नहाना भी गलत है........
Key word : Bamboo toilets, Bhopal, Madhya Pradesh, Bathroom, NRLM

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625

sirvaiyya@gmail.com
राजधानी की चार बस्तियों में बनेंगे 40 बैंबू टॉयलेट
राजधानी की बांसखेड़ी, टीलाजमालपुरा, इंदिरा नगर और अर्जुन नगर। इन गरीब बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग बांस का काम करते हैं। इन बस्तियों की पहचान जिस बांस से है, उसी से अब यहां शौचालय बनाए जाएंगे। ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है ताकि बांस के परंपरागत उपयोग के साथ-साथ यहां के कारीगर इसके आधुनिक उपयोग की कला भी सीख सकें। 
मप्र राज्य बांस मिशन इन बस्तियों के कुल 40 बैंबू टायलेट बनाएगा। मप्र में इस तरह के टॉयलेट पहली बार बनेंगे। भोपाल में यह पायलट प्रोजेक्ट होगा। इनमें कमोड को छोड़कर सब कुछ बांस बनेगा। लागत करीब 15 हजार प्रति टायलेट होगी। खास बात यह है कि यह टॉयलेट किसी एजेंसी से नहीं बनवाए जाएंगे। इन बस्तियों में रहने वाले बांस शिल्पकारों को ही टायलेट बनवाए जाएंगे। इनका मार्गदर्शन वे संस्थाएं करेंगी भारत में इस तरह का काम कर रही हैं। इन बांस कारीगरों को टेÑनिंग देकर मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार किया जाएगा ताकि दूसरे स्थानों पर यही लोग बैंबू टायलेट बना सके। बैंबू टायलेट बनाने का यह काम स्वच्छ भारत मिशन के तहत होगा। 

भोपाल की चार बस्तियों को बैंबू टॉयलेट के लिए चयनित किया गया है। इनमें बांस शिल्पकार रहते हैं। इन्हीं से टायलेट बनवाए जाएंगे ताकि यह मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार हो सकें। बैंबू टायलेट किफायती हैं और पानी से यह खराब भी नहीं होते। 
- डॉ. एके भट्टाचार्य, मिशन संचालक, मप्र बांस मिशन
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शौच ही नहीं, खुले में नहाना भी ठीक नहीं
स्वच्छता के लिए स्वच्छ भारत अभियान में केवल टायलेट बनाने पर ही सबसे ज्यादा जोर है। यही काम पूरे प्रदेश में हो रहा है। गांव-गांव में घरों में शौचालय बनाए जा रहे हैं लेकिन  मप्र के अलीराजपुर, धार, राजगढ़, डिंडोरी और मंडला जिले में इससे एक कदम आगे जाकर काम हो रहा है। 
यहां महिलाएं कह रही हैं कि खुले में शौच करना ही गलत नहीं है, बल्कि खुले में नहाना भी सम्मान के खिलाफ है, इसलिए मप्र राज्य आजीविका मिशन ने टॉयलेट के साथ बाथरूम बनाने का मॉडल विकसित किया है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रति शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार की राशि तय है। इसी राशि में बाथरूम बनाने के लिए मिशन ने यहां लोगों को प्रेरित किया। स्व-सहायता समूह अपनी बैठकों में शौचालय और बाथरूम बनाने का संकल्प पारित करते हैं। यह राशि सीधे उनके खातों में जमा की और इसमें संबंधित हितग्राही ने अपनी तरफ एक दो हजार और मिलाकर बाथरूम भी बना लिए। स्वच्छ भारत मिशन में यह देश में अपनी तरह का पहला मॉडल है। इन टायलेट और बाथरूम में टाईल्स लगाए गए हैं। इन शौचालयों के निर्माण में अधिकांश काम हितग्राहियों ने ही किया। 

स्वच्छ भारत मिशन के तहत 14 हजार शौचालय और इनके साथ बाथरूम भी बना रहे हैं। हमने पैसा सीधे हितग्राही के खाते में जमा किया। कुछ पैसा हितग्राही भी मिला रहे हैं। हम यह काम स्व-सहायता समूहों के माध्यम से कर रहे हैं। 
- एलएम बेलवाल, परियोजना संचालक, मप्र राज्य आजीविका मिशन