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शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

परीक्षाओं का दवाब कम करने सेकेंडरी लेबल पर सेमेस्टर सिस्टम की सिफारिश

- प्रस्तावित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए मध्यप्रदेश ने तैयार किए सुझाव
- शीघ्र भारत सरकार को भेजी जाएंगी सिफारिशें
- विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए विविध पहलुओं पर किया विचार

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keywords : RKS Madhya Pradesh, New Education Policy India, Semester System, Bhopal, Peoples Samachar

देश की नई शिक्षा नीति के लिए मध्यप्रदेश ने दर्जनों सुझाव तैयार किए हैं। विभिन्न स्तरों पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार इन सुझावों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा को प्रभावी और विद्यार्थियों के समग्र विकास के महत्वपूर्ण बिंदु सुझाए गए हैं। शीघ्र ही यह सुझाव भारत सरकार को भेजे जाएंगे, जिन पर निर्णय केंद्रीय स्तर पर लिया जाएगा। प्रमुख सिफारिशों में सेकेंडरी लेबल पर सेमेस्टर सिस्टम लागू करने की वकालत की गई है। इस स्तर पर पढ़ाई और परीक्षाओं के दवाब से विद्यार्थियों को मुक्त की मंशा है। इसी तरह देशभर में परीक्षाएं आयोजित करने के लिए संयुक्त परीक्षा बोर्ड, स्थानीय भाषा को प्राथमिकता, कक्षा 9 से व्यवसायिक शिक्षा, शिक्षकों की भर्ती एवं चयन के लिए राष्ट्रीय आयोग, पहले से सेवारत शिक्षकों को पेशेवर बनाने के लिए रिफ्रेशर कोर्स तथा सामाजिक विज्ञान विषय को ओर अधिक व्यवहारिक तथा रोजगारमूलक बनाने की सिफारिशें प्रमुख हैं। 

स्कूल शिक्षा विभाग ने इन सिफारिशों को तैयार किया है। इसके लिए अनेक स्तर पर शिक्षा जगत से जुडेÞ लोगों, अधिकारियों, संस्थाओं और शिक्षकों से विचार-विमर्श किया गया था। फिलहाल राज्य शिक्षा केंद्र ने इन अनुंशसाओं को शिक्षा से जुड़े दूसरे राज्य सरकार के विभागों को परामर्श के लिए भेजा है। ये सिफारिशें केवल स्कूल शिक्षा से जुड़ी हैं। उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग की सिफारिशों-सुझावों को इसमें समाहित कर भारत सरकार को भेजा जाएगा।
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प्रारंभिक शिक्षा 

- स्कूल शिक्षा चार वर्ष की आयु से प्रारंभ की जाए। इसमें एक वर्ष की प्री-प्रायमरी शिक्षा भी शामिल हो।
- 5वीं एवं 8वीं की परीक्षाओं को फिर से बोर्ड के माध्यम से कराना।
- मिड-डे मील का मीनू को लोकल ट्रेडीशन और वस्तुओं की उपलब्धता के आधार पर तय किया जाए।
- प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय भाषा-बोली में दी जाए।
- आंगनबाड़ियों में प्रशिक्षित शिक्षक भर्ती किए जाएं।
- आंगनबाड़ी और स्कूलों के बीच लिंक स्थापित किया जाए।

सेकेण्डर और सीनियर सेकेंडरी

- सेकेण्डरी और सीनियर सेकेंडरी शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
- कक्षा 9 से व्यवसायिक शिक्षा को शिक्षा से जोड़ा जाए।
- शहरी स्कूलों जैसी सुविधाएं ग्रामीण अंचलों के स्कूलों में दी जाएं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय खोले जाएं।
- पाठ्यक्रम की एकरूपता होनी चाहिए।
- एक कॉमन बोर्ड हो, सभी बोर्ड्स के बीच समन्वय का काम करे।
- सेकेण्डरी स्तर पर पढ़ाई के दवाब को कम करने के लिए सेमेस्टर सिस्टम जरूरी।
- सामाजिक विज्ञान विषय को ओर अधिक व्यवहारिक और रोजगारमूलक बनाया जाए।

व्यवसायिक शिक्षा

- व्यवसायिक शिक्षा मिडिल स्कूल से प्रारंभ की जानी चाहिए।
- व्यवसायिक शिक्षा वैश्विक स्तर के साथ-साथ स्थानीय जरूरतों के मुताबिक होनी चाहिए।
- सभी पंचायत स्तर के स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षा शुरू की जानी चाहिए।
- स्कूल, आईटीआई और पॉलिटेक्निक के बीच बेहतर समन्वय हो।

परीक्षा व्यवस्था में सुधार

- सभी शिक्षकों को मूल्यांकन के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- शिक्षकों की प्री-सर्विस और इन-सर्विस ट्रेनिंग में सीसीई संबंधी घटकों को शामिल किया जाए।
- सभी परीक्षाएं एक संयुक्त बोर्ड द्वारा ली जाएं।
- कुछ विषयों के लिए ओपन बुक एक्जामिनेशन की व्यवस्था की जाए।

क्वालिटी टीचर्स

- शिक्षकों के चयन एवं शैक्षिक प्रशासकों के चयन के लिए राष्ट्रीय आयोग होना चाहिए।
- उत्कृष्ठ शिक्षकों को प्रोत्साहन (इंसेनटिव) दिया जाए।
- आवासीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं।
- सेवारत शिक्षकों के पेशेवर विकास के लिए प्रत्येक पांच साल में दो महीने के रिप्रेशर कोर्स अनिवार्य किया जाए।

विज्ञान, सामाजिक, गणित और तकनीक की शिक्षा

- विद्यार्थियों को कक्षा में 9 में ही विषय चुनने का अवसर दिया जाए। वर्तमान में 11 वीं में विषय का चयन होता है।
- कक्षा 5 अथवा 6वीं स्तर से ही विज्ञान और गणित के लेबोरेटरी काम जोड़े जाएं
- प्राथमिक स्तर से ही इंफोरमेशन, कम्युनिकेशन-टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए।
- समुदाय की सहभागिता से देशज ज्ञान आधारित सीखने-पढ़ने-पढ़ाने की विधियों का उपयोग किया जाए।
- मूल्यांकन में 50 प्रतिशत थ्योरी  और 50 प्रतिशत प्रेक्टिल को महत्व दिया जाए।
- स्कूलों में स्थानीय लोक कला को महत्व दिया जाए।

भाषा

- थ्री लेंग्वैज फार्मूला को महत्व दिया जाए।
- अलग-अलग भाषाई शिक्षकों की भर्ती की जाए।
- मातृभाषा में किताबों की उपलब्धता हो।
- किताब में स्थानीय संदर्भ शामिल किए जाएं।
- प्रत्येक स्कूल में भाषा की प्रयोगशाला (लेंग्वैज लेब)हो।

DEEPTI GAUR MUKERJEE 
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव तैयार किए हैं। अभी इनमें उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग के सुझावों को भी समाहित किया जाएगा। इसके बाद इन्हें भारत सरकार को भेजा जाएगा। 
दीप्ति गौड़ मुकर्जी, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र, मध्यप्रदेश

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