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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

ज्यादा फसल के लालच में जहरीला कर दिया ग्राउंड वाटर

- कई इलाकों में काफी गहराई पर भी साफ नहीं बचा पानी
- भू-जल स्रोतों में नाइट्रेट एवं फ्लोराइड का प्रदूषण
- चार साल की मॉनीटरिंग के आए नतीजे, प्रदेश में बिगड़ी पानी सेहत

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Keyword : Madhya Pradesh, Ground Water, Flo-ride, fluoride, Nitrate, MPWRD, MPHED

प्रदेश में नदियों-तालाबों के प्रदूषित होने के बाद अब भू-जल यानी ग्राउंड वाटर भी स्थिति भी ठीक नहीं है। मप्र में जमीन के नीचे का पानी भी तेजी से प्रदूषित हो रहा है। प्रदेश के कई हिस्सों में स्थिति इतनी चिंताजनक है कि जमीन में काफी गहराई पर भी प्रदूषित जल मिलना शुरू हो चुका है। 


प्रदेश में भू-जल को लेकर पिछले चार सालों में मॉनीटर किए कूपों एवं बोरवेल के भू-जल स्रोतों की गुणवत्ता अध्ययन रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। यह अध्ययन मप्र राज्य भू-जल सर्वेक्षण संगठन, जल संसाधन विभाग द्वारा किया गया है। यह अध्ययन रिपोर्ट विभाग ने एक फरवरी को जारी की है। भू-जल फ्लोराइड, नाइट्रेट, लौह तत्व तथा खारेपान के कारण प्रदूषित हुआ है। प्रदेश के 9 जिलों में नाइटेÑट के कारण भू-जल प्रदूषित हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जिलों में पैदा वाली मुख्य फसलें कपास, गन्ना, सोयाबीन, गेहूं और ज्वार हैं। इन फसलों के अधिक उत्पादन के लिए उपयोग में आने वाली नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिकता भू-जल में नाइट्रेट के रिसाब का मुख्य कारण हो सकता है। 
सिंचाई के योग्य भी नहीं बचा पानी
रिपोर्ट के अनुसार मुख्य रूप से 18 जिले बैतूल, खरगोन, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, भोपाल, रायसेन, सीहोर, विदिशा, भिंड, मंडला, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और जबलपुर के 93 विकासखंडों की 1300 से ज्यादा बसाहटों में भू-जल स्रोत में एक या एक से अधिक घुलनशील घातक तत्व जैसे फ्लोराइड, नाइटेÑट, लौहतत्व, और खारेपन की मात्रा मानक स्तर से अधिक पाए जाने के कारण पानी पीने या सिंचाई योग्य नहीं पाया गया। इन 93 विकासखंडों में से पेयजल के लिए 17 ब्लाक सुरक्षित, 23 ब्लाक सेमी क्रिटिकल तथा 51 ब्लाक क्रिटिकल श्रेणी में रखे गए हैं। इसके अलावा कृषि के लिए जल में खारेपन की मात्रा के अनुसार 79 ब्लाक सुरक्षित, 10 सेमीक्रिटिकल और 4 ब्लाक को क्रिटिकल श्रेणी में रखा गया है। 
यहां फ्लोराइड मानक से ज्यादा
9 जिलों मंडला, डिंडोरी, झाबुआ, अलीराजपुर, शिवपुरी, सिवनी, धार छिंदवाड़ा और जबलपुर के 29 ब्लाक की 170 बस्तियों में फ्लोराइड की मात्रा मानक स्तर 1.5 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है। कई बस्तियों में फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। सिवनी के बरघाट ब्लाक के धाना गांव में फ्लोराइड की सबसे अधिक मात्रा 14.2 मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई है। 
यहां नाइट्रेट मानक से ज्यादा
10 जिलों खरगोन, खंडवा, बड़वानी, झाबुआ, बैतूल, धार, भोपाल, रायसेन, सीहोर और विदिशा के 81 ब्लाक में मानीटर किए गए 1227 बसाहटों के कूपों एवं बोरवेल में से 831 (68 प्रतिशत) में नाइट्रेट मानक स्तर 45 मिली ग्राम प्रति लीटर से काफी ज्यादा पाया गया। बड़वानी ब्लाक के बड़वानी गांव में नाइट्रेट सबसे अधिक 788 मिली ग्राम प्रति लीटर है। 
यहां लौह तत्व मानक से ज्यादा
घुलनशील लौह तत्व की उपस्थित प्रमुख रूप से बैतूल जिले के 7 ब्लाक की 23 बसाहटों में एवं रायसेन जिले की तीन बसाहटों में अपने मानक स्तर 1.0 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है। साथ ही भिंड, धार, झाबुआ, सीहोर, भोपाल, रायसेन, विदिशा, खरगोन, बैतूल और खंडवा जिलों की 324 बसाहटों के भूमिगत जल में खारापन पाया गया। इन जल स्रोतों में विद्युत संचालकता की मात्रा अपने मानक स्तर 1500 माइक्रोमोस/सेंमी से अधिक पाई गई है। भिंड जिले के अटेर एवं मेहगांव ब्लाक को क्रिटिकल श्रेणी (अत्यधिक लवणयुक्त जल) में रखा गया है। भिंड जिले के ही ग्राम केसवी में सबसे अधिक खारापन 3410 माइक्रोमोस/सेंमी पाया गया है। यह मिट्टी की उर्वरकता एवं पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालता है। 
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नुकसान
फ्लोराइड
- प्रभावित बस्तियों में लाइलाज फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। इसके कारण अनेक शारीरिक विकृतियां जैसे हड्डी रोग जनित समस्याएं दिखाई दे रही हैं। 
- फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के शरीर, रीढ़, गर्दन, पैर या हाथ की हड्डियां टेढ़Þी-मेढ़ी या अधिक कमजोर हो जाती है। दांत में धब्बे दिखाई देते हैं। 
नाइट्रेट
- नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक उपयोग से कृषि जमीन की उत्पादक क्षमता घटती है। नाइट्रेट युक्त पानी पीने से किसानों के परिवार बीमार हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इससे दुधमुंहे और छोटे बच्चों के शरीर में नीलापन (ब्लू बेबी सिंड्रोम) की बीमारी होती है। आंतों के कैंसर का खतरा होता है। 
- पानी में नाइट्रेट की अधिकता के कारण में अवांछित शैवाल की वृद्धि से मछली उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
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बचाव के लिए दिए ये सुझाव
  • जहां भू-जल में घातक तत्व पाए गए हैं, वहां सुनिश्चित किया जाए कि पीने के पानी का उपयोग सिर्फ पीने के लिए हो। 
  • फ्लोराइड एवं लौहतत्व वाले इलाकों में भू-जल स्रोत बंद कर वैकल्पिक प्रबंध किए जाएं। 
  • जिन खाद्य पदार्थों में फ्लोराइड अधिक होता है, उनका उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में नहीं किया जाए। 
  • जैविक उर्वरक एवं प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं परलोकेशन टैंक के जरिए भू-जल स्तर बढ़ाकर भू-जल स्रोतों हानिकारक तत्वों की मात्रा कम की जा सकती है। 

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प्रदेश में भू-जल का उपयोग मुख्यत: कृषि एवं पेयजल के लिए किया जाता है। इसलिए भूजल में उपस्थित हानिकारक तत्वों की मात्रा का आकलन आवश्यक हो गया है। सामान्यत: माना जाता है कि जमीन के भीतर गहराई पर पाया गया पानी अधिक साफ और कम रासायनिक प्रदूषित होता है, पर प्रदेश के कई इलाकों में काफी गहराई पर जा चुके भू-जल स्रोतों में भी नाइट्रेट एवं फ्लोराइड से प्रदूषित जल मिलना शुरू हो चुका है, जो चिंता का विषय है। यह प्रकाशन जन सामान्य में जागरूकता एवं समाधान के साथ ही भूजल संबंधी कार्यों में लगे शोद्यार्थियों, शासकीय अमले के लिए उपयोगी होगा। 
एमजी, चौबे, ईएनसी, जल संसाधन विभाग मप्र 

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