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शनिवार, 24 सितंबर 2016

दलित की शवयात्रा को नहीं मिला रास्ता, लुप्त हो रहीं जनजातियों से सरकार ने मुंह फेरा, 14 साल के अभियान के बाद भी 17 हजार पद खाली

- मध्यप्रदेश में वंचित वर्गों से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाएं एवं खबरें
- समुदाय और सरकार, दोनों के उत्पीड़न को झेल रहा वंचित वर्ग

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com

मध्यप्रदेष के अलग-अलग हिस्सों में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से जुड़े अनेक समाचार भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्रों में प्रमुखता से आज प्रकाशित हुए हैं। यह समाचार इन दोनों समुदायों की मौजूदा स्थिति को तो बयां करते हैं, साथ ही यह भी बता रहे हैं कि आज भी भारत में कितनी असमानता, शोषण और अत्याचार है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों और सुविधाओं के बावजूद यह स्थिति बताती है कि इन दोनों समुदाय का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न ही बहुसख्ंयक समाज की मानसिकता में कोई बदलाव आया है। इस स्थिति के बावजूद अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण सहित विभिन्न सुविधाओं के गैर-जरूरी, गैर-कानूनी और गैर संवैधानिक पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है। 

अखबारों में प्रकाशित खबरें

नव दुनिया, भोपाल 24 सितंबर

 समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर खंडवा जिले के डोंगरगांव की एक घटना ‘‘नहीं दिया रास्ता तो पुलिस के साए में दलित की शवयात्रा’’ शीर्षक से प्रकाषित की गई है। इसमें बताया गया है कि खंडवा से करीब 30 किलोमीटर दूर डांगरगांव में दलित महिला की शवयात्रा खेत में से निकालने की बात पर दो घंटे विवाद हुआ। खेत मालिक द्वारा रास्ता देने से इंकार करने पर पुलिस मौके पर पहुंची और समझाइश देकर शवयात्रा निकलवाई। 

इसी समाचार पत्र में ने इसी पृष्ठ पर ‘‘प्रदेष के 193 गांवों में पीने योग्य पानी नहीं’’ शीर्षक से एक ओर खबर प्रकाशित की है। केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित इस खबर में कहा गया है कि इन गांवों से पेयजल के जो सैंपल लिए गए, उनमें फ्लोराइड, आयरन, नाईट्रेट, सहित करीब एक दर्जन खतरनाक रासायनिक तत्व मिले हैं।
रिपोर्ट के अनुसार ऐसे राज्यों में मध्यप्रदेष 17वें नंबर पर हैं जहां बसाहटों में पेयजल स्वच्छ नहीं है। नरसिंहपुर ऐसा जिला है, जहां सबसे ज्यादा गंदा पानी लोग पी रहे हैं।  स्वभाविक रूप से ये वे गांव हैं जहां, अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी अपेक्षाकृत अधिक निवास करती है। इन समुदायों की आबादी को पीने का स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं हो रहा।

दैनिक भास्कर, भोपाल 24 सितंबर 

समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक सात पर एक महत्वपूर्ण खबर अनुसूचित जनजातियों को लेकर प्रकाशित हुई है। इस खबर में खुलासा किया गया है कि राज्य सरकार ने पिछले दस साल से जनजातियों से जुड़ी जानकारी भारत के राष्ट्रपति को भेजी ही नहीं। खबर के मुताबिक लुप्त हो रही जनजातियों की जानकारी हर साल राष्ट्रपति सचिवालय को भेजी जाना जरूरी है। ऐसी जनजातियां, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं, उनकी मॉनीटरिंग राष्ट्रपति सचिवालय करता है ताकि इनके कल्याण के लिए आवष्यक कदम उठाए जाएं। खबर में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि आदिवासी मत्रणा परिषद की बैठक भी मध्यप्रदेश में लंबे समय से नहीं बुलाई गई है। 



पीपुल्स समाचार, भोपाल 24 सितंबर 2016

पीपुल्स समाचार पत्र के पृष्ठ क्रमांक 16 पर प्रकाशित एक महत्वपूर्ण समाचार में बताया गया है कि मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के आरक्षित पदों पर भर्ती के लिए पिछले 14 साल से विशेष अभियान चलाया जा रहा है लेकिन पिछले साल तक केवल 5 हजार पद ही भरे गए जबकि 17 हजार से अधिक पद रिक्त हैं। खबर में बताया गया है कि मप्र हाईकोर्ट द्वारा पदोन्नति में आरक्षण खत्म किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की अपील के बाद इस मामले पर निर्णय के लिए बनी कैबिनेट सब कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ है। खबर में बताया गया कि सरकार कि किस विभाग में आरक्षित श्रेणी के कितने पद रिक्त हैं। 

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