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रविवार, 7 जून 2015

मैगी से बेहतर हैं हमारे गांव की महिलाओं के प्रोडक्ट

 - मल्टीनेशनल्स कंपनियों को पछाड़ने का रखती हैं माद्दा
- गैर-रासायनिक और शुद्धता की कसौटी पर पूरे खरे 
- सरकार के बस दो मिनट मिल जाएं तो बदल देंगी तस्वीर

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
09424455625
मल्टीनेशनल कंपनी नेस्ले की ‘मैगी’ से ज्यादा अच्छे, शुद्ध, सेहतमंद और भरोसेमंद उत्पाद मध्यप्रदेश के गांवों की उन गरीब और अनपढ़ महिलाओं के हैं जो अपनी कड़ी मेहनत और हौंसलों के दम पर मल्टीनेशनल कंपनियों को भी टक्कर देने का माद्दा रखती हैं। इनके उत्पादों में न सीसा यानी लेड है और न ही अन्य कोई हानिकारक रसायन। न मिलावट है और न ही अधिक लाभ कमाने की कोई चाह। यही वजह है कि आज देश की राजधानी दिल्ली पर भी मप्र की हल्दी पावडर का रंग चढ़ चुका है। मप्र के अलावा दिल्ली और दूसरे राज्यों में हल्दी पावडर सहित इनके दूसरे उत्पादों की धूम मची हुई है।
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और डीपीआईपी के सहयोग से प्रदेश के 15 जिलों में यह महिलाएं अपने-अपने तरह के उत्पाद तैयार कर रही है। डीपीआईपी इन उत्पादों की मार्केटिंग और ब्रांडिंग में इनका सहयोग कर रहा है। इन 15 जिलों में करीब लाख गरीब, किसान महिलाएं स्व-सहायता समूहों से जुड़ी हुर्इं हैं। इनमें से करीब तीन लाख 40 हजार महिलाएं कृषि, पशुपालन, हैंडलूम आधारित उत्पाद तैयार कर रही हैं। इन समूहों के इन 15 जिलों में आजीविका फ्रेश नाम से 63 आउटलेट हैं जहां से साग-सब्जी से लेकर उनके सभी उत्पाद बेचे जाते हैं। यह महिलाएं डीपीआईपी के साथ मिलकर खेत में फसल उगाने से लेकर ग्राहक की प्लेट तक पहुंचाने की प्रक्रिया अपनाती हैं। खाद्य पदार्थों के लिए सभी एगमार्क सहित सभी जरूरी लायसेंस इनके पास हैं। महिलाओं के साथ काम करने वाली डीपीआईपी की गरिमा सुंदरम बताती हैं कि इन महिलाओं के उत्पादों को पूरी तरह जैविक तो नहीं लेकिन गैर रसायनिक जरूर हैं। इसलिए यह शुद्ध हैं। 

क्या-क्या बनाती-बेचती हैं ये महिलाएं
धनिया पावडर, मिर्ची पावडर, हल्दी पावडर, मुरब्बा, अचार, शहद, शरबती आटा, बेसन। इनके अलावा दूध, अंडा, चिकन, कपड़े, बांस के बर्तन और इसी तरह के कई सामान। इनमें से अधिकांश महिलाएं सलाना एक लाख से अधिक की आय अर्जित करती हैं। 

क्या मदद करता है डीपीआईपी
इन महिलाओं को खेत में लगाने के लिए उन्नत बीज, उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण, मार्केटिंग की व्यवस्था, वेल्यू एडिशन, पैकेजिंग के अलावा कृषि मंडियों, सहकारी समितियों को इनके सामान बिकवाने में डीपीआईपी मदद करती है। इसके अलावा मप्र से बाहर सामानों को बिकवाने में मदद की जाती है। 

बाजार में कैसी-कैसी मिलावट
हल्दी में मक्का का आटा, मिर्ची में र्इंट का चूरा, धनिया में बकरी की लीद मिलाकर मुनाफा कमाने की कोशिश की जाती है। इन महिलाओं के उत्पादों में पूरी तरह से शुद्ध हैं। 

मदद की दरकार
इन महिलाओं को डीपीआईपी परियोजना में औसत 10 हजार रुपए की अनुदान उत्पादक गतिविधियों के लिए दिया जाता है। इसी सहायता ने इन महिलाओं ने अपना यह व्यापार चला पा रही हैं। महंगी मशीनें खरीदना इनके लिए संभव नहीं है, इसलिए इनके उत्पाद फिलहाल सीमित हैं। 
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ये भी
  •  40 हजार लीटर दूध प्रतिदिन मप्र दुग्ध संघ (सांची) को दे रहीं हैं। 
  • जिलों में रायसेन और रीवा में रोजाना 75 हजार अंडों का उत्पादन।
  • सीधी और शिवपुरी में चिकन फ्रेश। उत्तर प्रदेश को चिकन सप्लाई।
  • कपड़े, पर्दे, बेडशीट, टॉबेल, दरी आदि का निर्माण और विक्रय।
  • चूड़ियां, टेराकोटा, खिलौने, अगरबत्ती उत्पादन और विक्रय। 
  • हर महीने 4 टन अगरबत्ती की सप्लाई।


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यह बड़ी खुशी की बात है कि शासन के प्रयास सफल हुए हैं और लाखों महिलाएं गांवों में ही अपने उत्पाद तैयार कर रही हैं। इसके बाद अब इन्हें खुद आगे बढ़ना होगा। बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक प्रोडक्ट बनाने होंगे। अनुदान पर आश्रित न रहकर अपनी गतिविधियों को बढ़ाना होगा। शासन हर संभव मदद दी है और यह प्रयास आगे भी रहेगा। 
अरूणा शर्मा, अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, मप्र
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गांवों में पहले महिलाएं आचार, बड़ी, पापड़ बनाती थीं, हमने बाजार की आवश्यकताओं को देखकर उत्पादन बनाने के लिए इन्हें प्रेरित किया। यह उत्पाद पूरी तरह शुद्ध और गैर रसायनिक हैं। इनके उत्पादों की दूसरे राज्यों में भी डिमांड है। भविष्य में मप्र के स्व-सहायता समूह देश भर को अपने विभिन्न उत्पाद उपलब्ध कराएंगे।
एलएम बेलबाल, परियोजना समन्वयक, डीपीआईपी, मप्र

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