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सोमवार, 31 अगस्त 2015

प्रशासन में हिन्दी के कलमकार

राजधानी भोपाल में अगले महीने विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। दुनिया भर से हिंदी बोलने वाले, पढ़ने वाले और इस भाषा को जानने वाले इस सम्मेलन में जुट रहे हैं। मप्र के प्रशासनिक क्षेत्र में हिंदी सेवियों की लंबी श्रृंखला है। इन्होंने साहित्यिक रूप से तो हिंदी को समृद्ध किया है, सरकारी कामकाम में भी हिंदी के उपयोग को बढ़ावा दिया है। कई अफसर हिंदी में कथा, कहानी, कविताएं लिखते हैं तो कई अफसर शुद्ध और  सुलेख लेखन के लिए जाने जाते हैं। 
‘पहाड़ी कोरबा’
वर्ष 1987 बैच के आईएएस मनोज श्रीवास्तव का हिन्दी के प्रति अगाथ प्रेम है। यही कारण है कि उन्होंने हिन्दी साहित्य से एमए भी किया है। भले ही उनकी अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ है, लेकिन वे हमेशा से सरकारी कामकाज के अलावा अन्य विशेष आयोजनों में हिन्दी को ज्यादा अपनाने पर जोर देते रहे हैं। उनकी खुद भी हिन्दी लेखन में बेहद गहरी दिलचस्पी है। वे अब तक हिन्दी की कई पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें 7 पुस्तकें कविता की हैं और 12 पुस्तकें सुंदरकांड पर लिखी हैं। इनके अलावा ‘शक्ति प्रसंग’, ‘पंचशील’, ‘पहाड़ी कोरबा’, ‘व्यतीत’, ‘वर्तमान और वैभव’, ‘यथाकाल’ और ‘शिक्षा में संदर्भ और मूल्य’ रचना भी उन्होंने लिखी है। वे व्यस्तता को बहुत कीमती मानते हैं और यह व्यस्तता उनके कैनवास को समृद्ध बनाती है। 
‘बात का बतंगड़’
वर्ष 1985 बैच के आईएएस विनोद सेमवाल के लिए हिन्दी बेमिसाल है। वे अन्य लोगों को भी हिन्दी भाषा अपनाने की नसीहत देते हैं। उन्हें खुद भी हिन्दी लेखन का बेहद शौक है और अब तक तीन पुस्तकें हिन्दी में लिख चुके हैं। उनकी पहली पुस्तक ‘बात का बतंगड़’ 1996 में, ‘साहब बहादुर’ 1998 में आई थी। तीसरी पुस्तक ‘पुतलों की फजीहत’ 2015 में आई है। उनकी पुस्तकें व्यंग्य पर आधारित हैं, लेकिन वर्तमान में वे एक पुस्तक कहानी पर लिख रहे हैं। लेखन एवं पढ़ने के प्रति उनकी दिलचस्पी बचपन से रही है। बचपन में वे पत्र-पत्रिकाओं में पत्र संपादक के नाम एवं आर्टिकल लिखते थे, लेकिन सिविल सर्विस में आने के बाद से उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में लिखना बंद कर दिया। इसके पीछे समय नहीं रहना सबसे बड़ा कारण रहा, लेकिन उन्होंने लिखने की आदत आज तक नहीं छोड़ी। 

‘21 बिहारी एक मद्रासी’
वर्ष 1982 बैच के आईएएस के. सुरेश मूलत: साउथ इंडियन हैं और उनकी अंग्रेजी के अलावा स्थानीय भाषा पर भी अच्छी पकड़ है। इसके बावजूद भी हिन्दी लेखन उन्हें सुकून देता है। वे सरकारी कामकाज में भी हिन्दी भाषा को ज्यादा तवज्जो देते हैं। उन्होंने अब तक दो पुस्तकें लिखी हैं, इनमें ‘21 बिहारी एक मद्रासी’ और ‘न की जीत हुई’। वे वर्तमान में भी एक पुस्तक पर काम कर रहे हैं, जो कि जल्द ही प्रकाशित होने की उम्मीद है। वैसे तो बचपन में उनकी परवरिश दक्षिण भारतीय परिवार में हुई, लेकिन उनकी दोस्ती हिन्दी भाषी लोगों से ज्यादा रही है। हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान होने का कारण भी यही है। व्यवस्ताओं के बीच में वे सुबह-शाम लेखन के लिए समय निकालते हैं। इसके अलावा उन्हें बर्ड वाचिंग करना भी बेहद अच्छा लगता है। 
‘धुनों की यात्रा’
वर्ष 1990 बैच के आईएएस पंकज राग हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि भी हैं। साहित्य और सिनेमा, दोनों तरह के लेखन में उन्हें महारत हासिल है। साहित्यिक हिंदी की बात हो या कार्यालयीन हिंदी, दोनों में वे हिंदी के आदर्शों और मानकों का अनुसरण करते हैं। मूलत: बिहार के रहने वाले पंकज राग की प्रमुख कृतियां ‘भूमंडल की रात है’ और ‘धुनों की यात्रा’ है। धुनों की यात्रा के लिए उन्हें प्रतिष्ठित केदार सम्मान से सम्मानित किया गया है। उनके कविता संग्रह की एक से आठ की श्रृंखला प्रकाशित हो चुकी है। ‘यह भूमंडल की रात है’ की कविताएं लंबे समय से पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं। पंकज की कविताएं उनके जीवन के भीतर से उपजी हुई कविताएं हैं। पंकज राग के साथ ‘धुनों की यात्रा’ पर निकलना किसी भी व्यक्ति के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बन सकता है। यह पुस्तक 1931 से 2005 तक के संगीतकारों पर केंद्रित है। पंकज राग को कविताएं लिखने का शौक बचपन से ही था। 13 वर्ष की उम्र में ही बचपन की लिखित कविताओं का एक संग्रह ‘पंकज राग की कविताएं’ के नाम से 1978 में प्रकाशित हुआ। 
हिन्दी से गहरा लगाव

वर्ष 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी पवन जैन का भी हिन्दी के प्रति बेहद गहरा लगाव है। वे हिन्दुस्तान के कई बड़े मंचों से हिन्दी में कविता पाठ कर चुके हैं। उन्होंने अपनी रचनाएं दिल्ली के लाल किले से भी पढ़ी है। कवि सम्मेलनों के प्रति उनकी दिलचस्पी बचपन से रही है। जब वे बचपन में गांव में रहते थे तो वहां एवं आसपास होने वाले सभी कवि सम्मेलनों को सुनने जाते थे। 

‘उम्र की 21 गलियां’
वर्ष 2004 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा हिन्दी साहित्य और सम्मेलनों के प्रमुख चेहरे हैं। उनके तीन कविता संग्रह ‘उम्र की 21 गलियां’, ‘धूप के ग्लेशियर’, और ‘प्रिज्म’ प्रकाशित हो चुके हैं।वर्ष 2011 में मंडला पर उनकी किताब ‘युग-युगीन मंडला’ प्रकाशित हुई थी। शर्मा अभी आदि शंकराचार्य पर एक उपन्यास लिखने की तैयारी कर रहे हैं। हिन्दी भाषा पर उनकी पकड़ मजबूत है। 
प्रशासनिक कामकाज में भी हिंदी को बढ़ावा दे रहे हैं। अन्य को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। 

अनुपम राजन
वर्ष 1993 बैच के आईएएस अधिकारी और आयुक्त जनसंपर्क अनुपम राजन हिन्दी में शुद्ध लेखन के लिए जाने जाते हैं। प्रशासनिक गलियारों में उनकी हिन्दी चर्चा में रहती है। खासकर लेखन के मामले में। शुद्ध और सुलेख हिन्दी उनकी पहचान बन गई है। उनका वाक्य विन्यास उत्कृष्ट है। व्याकरण की त्रुटियों की गुंजाईश नहीं होती। प्रश्नवाचक, विस्मयबोधक, पूर्ण विराम और अल्पविराम का वे बेहद ध्यान रखते हैं। सरकारी कामकाज में हिंदी का अधिकतम प्रयोग करते हैं। 

आईएनएस दाणी
हाल ही में रिटायर हुए मप्र कॉडर के वरिष्ठ अधिकारी इंद्रनील शंकर दाणी मप्र की नौकरशाही में हिंदी के खासे जानकार थे। उन्होंने मप्र के पूर्व मुख्य सचिव रहे स्व. आरपीव्हीपी नरोन्हा द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई किताब ‘टेल टोल्ड बाय एन इडियट’ का हिन्दी में अनुवाद किया है।
  अश्विनी कुमार राय
वर्ष 1990 बैच के आईएएस और पीएचई विभाग के प्रमुख सचिव अश्विनी कुमार राय की हिंदी प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय रहती है। सरकारी कामकाज में हिन्दी के शुद्ध के साथ-साथ कठिन माने जाने वाले शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। राय हिन्दी के अच्छे जानकार हैं। 
अनुराग जैन
1989 बैच के आईएएस अधिकारी एवं वर्तमान में पीएमओ में संयुक्त सचिव अनुराग जैन का हिन्दी से लगाव रहा है। वे हिन्दी में शुद्ध लेखन करते हैं। कार्यालीयन हिन्दी में भी उनके वाक्य, विन्यास और व्याकरण की दृष्टि से श्रेष्ठ होते हैं। उनकी हिन्दी प्रशासनिक गलियारों में चर्चा में रहती है।


हरिरंजन राव
वर्ष 1994 बैच के आईएएस और मुख्यमंत्री के सचिव हरिरंजन राव की अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा पर भी खासी पकड़ है। राव का न केवल हिन्दी लेखन बहुत शुद्ध है, बल्कि उनकी हिन्दी लेखनी काफी सुंदर हैं। नोटशीट पर हिंदी में लिखी गई उनकी टिप्पणी के अक्षर बेहद कलात्मक होते हैं।
संजय शुक्ला
1994 बैच के आईएएस और मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के सीएमडी संजय शुक्ला भी हिन्दी के मामले में प्रशासनिक गलियारों में जाने जाते हैं। हिन्दी के बेहद संतुलित और छोटे वाक्यों का उपयोग वे सरकारी कामकाज में करते हैं। लेखन शुद्ध है और भाषा पर खासी पकड़ है। 


अशोक भार्गव
वर्ष 2002 बैच के आईएएस अधिकारी और शहडोल कलेक्टर अशोक कुमार भार्गव भी उनके हिंदी प्रेम के लिए जाने जाते हैं। उन्हें हिंदी ह्रदय सम्राट भी पुकारा जाता है। सरकारी कामकाज में शुद्ध हिन्दी लेखन तो करते ही हैं, लेख और कविताएं भी वे अक्सर लिखते रहते हैं। 
जीपी श्रीवास्तव
वर्ष 1997 बैच के आईएएस अधिकारी जीपी श्रीवास्तव हिन्दी में कविताओं और कहानियों के लेखन के शौकीन हैं। वे अब तक हिन्दी में 100 से ज्यादा कविताएं और 28 कहानियां लिख चुके हैं। उनका हिन्दी प्रेम सरकारी कामकाज में भी दिखाई देता है और ज्यादातर काम हिंदी में करते हैं।
कवींद्र कियावत
वर्ष 2000 बैच के आईएएस अधिकारी और उज्जैन जिले के कलेक्टर कवींद्र कियावत हिन्दी के मामले में भी चर्चित अफसर हैं। वे न केवल अच्छी हिन्दी लिखते हैं, बल्कि बोलते समय भी हिन्दी के बेहतर शब्दों का प्रयोग करते हैं। संवाद में बोलचाल और साहित्यिक हिंदी का पुट है। 
पुखराज मारू
सेवानिवृत्त हुए आईएएस अधिकारी डॉ. पुखराज मारू हिंदी के लेखकों में शुमार हैं। डॉ. मारू की पुस्तक ‘ग़ज़लें धूप-छाँव की’ के दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता’ उनके महत्वपूर्ण रचनात्मक कार्यों में से एक हैं। 
लाजपत आहूजा
मप्र जनसंपर्क के संचालक रहे और वर्तमान में माखनलाल चतर्वुेदी पत्रकारिता विवि के रैक्टर लाजपत आहूजा की गैर हिंदी भाषी होने के बावजूद हिंदी पर बेहतर पकड़ है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने उन्हें हिंदी सम्मान से सम्मानित किया है। हिंदी में आर्थिक विषयों पर बेहतर लेखन करते हैं। 


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