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शनिवार, 18 जुलाई 2015

स्वच्छता और सम्मान के लिए दो कदम आगे

स्वच्छता के लिए जो किया जाए वह कम है। नए आईडिया और नई चीजों के इस्तेमाल से इस सोच को आगे बढ़ाने में और मदद मिलती है। मप्र में स्वच्छता अभियान में कुछ ऐसे ही नवाचार हो रहे हैं। भोपाल में बांस शिल्पकारों की बस्तियों में बांस के शौचालय यानी बैंबू टॉयलेट बनाने की तैयारी की जा रही है तो धार, अलीराजपुर, मंडला, डिंडोरी और राजगढ़ जैसे जिलों में लोग टायलेट के साथ बाथरूम भी बन रहे हैं। यहां महिलाएं कह रही हैं, खुले में शौच ही नहीं, नहाना भी गलत है........
Key word : Bamboo toilets, Bhopal, Madhya Pradesh, Bathroom, NRLM

डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625

sirvaiyya@gmail.com
राजधानी की चार बस्तियों में बनेंगे 40 बैंबू टॉयलेट
राजधानी की बांसखेड़ी, टीलाजमालपुरा, इंदिरा नगर और अर्जुन नगर। इन गरीब बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग बांस का काम करते हैं। इन बस्तियों की पहचान जिस बांस से है, उसी से अब यहां शौचालय बनाए जाएंगे। ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है ताकि बांस के परंपरागत उपयोग के साथ-साथ यहां के कारीगर इसके आधुनिक उपयोग की कला भी सीख सकें। 
मप्र राज्य बांस मिशन इन बस्तियों के कुल 40 बैंबू टायलेट बनाएगा। मप्र में इस तरह के टॉयलेट पहली बार बनेंगे। भोपाल में यह पायलट प्रोजेक्ट होगा। इनमें कमोड को छोड़कर सब कुछ बांस बनेगा। लागत करीब 15 हजार प्रति टायलेट होगी। खास बात यह है कि यह टॉयलेट किसी एजेंसी से नहीं बनवाए जाएंगे। इन बस्तियों में रहने वाले बांस शिल्पकारों को ही टायलेट बनवाए जाएंगे। इनका मार्गदर्शन वे संस्थाएं करेंगी भारत में इस तरह का काम कर रही हैं। इन बांस कारीगरों को टेÑनिंग देकर मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार किया जाएगा ताकि दूसरे स्थानों पर यही लोग बैंबू टायलेट बना सके। बैंबू टायलेट बनाने का यह काम स्वच्छ भारत मिशन के तहत होगा। 

भोपाल की चार बस्तियों को बैंबू टॉयलेट के लिए चयनित किया गया है। इनमें बांस शिल्पकार रहते हैं। इन्हीं से टायलेट बनवाए जाएंगे ताकि यह मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार हो सकें। बैंबू टायलेट किफायती हैं और पानी से यह खराब भी नहीं होते। 
- डॉ. एके भट्टाचार्य, मिशन संचालक, मप्र बांस मिशन
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शौच ही नहीं, खुले में नहाना भी ठीक नहीं
स्वच्छता के लिए स्वच्छ भारत अभियान में केवल टायलेट बनाने पर ही सबसे ज्यादा जोर है। यही काम पूरे प्रदेश में हो रहा है। गांव-गांव में घरों में शौचालय बनाए जा रहे हैं लेकिन  मप्र के अलीराजपुर, धार, राजगढ़, डिंडोरी और मंडला जिले में इससे एक कदम आगे जाकर काम हो रहा है। 
यहां महिलाएं कह रही हैं कि खुले में शौच करना ही गलत नहीं है, बल्कि खुले में नहाना भी सम्मान के खिलाफ है, इसलिए मप्र राज्य आजीविका मिशन ने टॉयलेट के साथ बाथरूम बनाने का मॉडल विकसित किया है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रति शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार की राशि तय है। इसी राशि में बाथरूम बनाने के लिए मिशन ने यहां लोगों को प्रेरित किया। स्व-सहायता समूह अपनी बैठकों में शौचालय और बाथरूम बनाने का संकल्प पारित करते हैं। यह राशि सीधे उनके खातों में जमा की और इसमें संबंधित हितग्राही ने अपनी तरफ एक दो हजार और मिलाकर बाथरूम भी बना लिए। स्वच्छ भारत मिशन में यह देश में अपनी तरह का पहला मॉडल है। इन टायलेट और बाथरूम में टाईल्स लगाए गए हैं। इन शौचालयों के निर्माण में अधिकांश काम हितग्राहियों ने ही किया। 

स्वच्छ भारत मिशन के तहत 14 हजार शौचालय और इनके साथ बाथरूम भी बना रहे हैं। हमने पैसा सीधे हितग्राही के खाते में जमा किया। कुछ पैसा हितग्राही भी मिला रहे हैं। हम यह काम स्व-सहायता समूहों के माध्यम से कर रहे हैं। 
- एलएम बेलवाल, परियोजना संचालक, मप्र राज्य आजीविका मिशन

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