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गुरुवार, 4 जुलाई 2019

पशुपालन के जरिए आमदनी करने के नाम पर दलितों के हिस्से में सुअर ही आते हैं, गाय, बकरी, भैंस जैसे दुधारू जानवर पालना इनके बूते से बाहर है?

दलितों के हितैषी तो सभी बनते हैं लेकिन सैप्टिक टैंकों में हो रही मौतें कोई नहीं रोक पा रहा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुंभ के मेले में सफाई करने वाले पांच कर्मचारियों के पैर धोए थे। प्रधानमंत्री यह दिखाने का प्रयास कर रहे थे कि यह कार्य इतना महत्वपूर्ण है, इसमें कार्यरत श्रमिक भी उतने ही महत्वपूर्ण है, इसलिए ऐसे देश सेवकों का सम्मान किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चलाए गए देश स्वच्छता अभियान में इन सफाईकर्मियों का सर्वाधिक योगदान रहा है। सवाल यह है कि जब सफाई श्रमिकों का काम इतना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री तक ने उनके चरण धोकर उनकी सराहना की है, तब सैप्टिक टैंक में श्रमिकों के मरने की घटनाएं रूक क्यों नहीं रही हैं। गुजरात में जून के दूसरे सप्ताह में सैप्टिक टैंक में गैस से दम घुटने से सात सफाई श्रमिकों की मौत हो गई। इस घटना को पन्द्रह दिन ही बीते कि रोहतक में चार श्रमिकों की सैप्टिक टैंक में मौत हो गई।

फिर आखिर ऐसे कौन-से हालात हैं कि गैरकानूनी घोषित होने के बाद भी श्रमिक सैप्टिक टैंक में सफाई के दौरान जान गंवा रहे हैं। इस कानून की हालत भी दूसरे ऐसे ही कानूनों की तरह कागज काले करने जैसी हो गई है। इस कानून को बनाते समय नीति नियंताओं ने यह ध्यान नहीं रखा कि आखिर कानून से पाबंदी लगा दी गई तो इस तरह के जोखिम भरे काम में लगे श्रमिकों के सामने आजीविका चलाने का संकट खड़ा हो जाएगा। कानून में रोजगार के इंतजाम का वैकल्पिक उपाय नहीं किया गया। इस कानून के साथ रोजगार की गारंटी भी दी जानी चाहिए थी। केवल कानून बनाने से समस्या का समाधान ढूंढ़ने की नेताओं की आदत हो गई है। उसके व्यवहारिक पक्षों और प्रभावों पर किसी का ध्यान नहीं जाता। दरअसल कानून बनाना आसान है और रोजगार का इंतजाम करना मुश्किल है।
 सफाई कमचारी आंदोलन का कहना है कि पिछले एक दशक में करीब 1800 सफाईकर्मियों की सैप्टिक टैंकों में सफाई के दौरान मौत हो चुकी है। इन मौतों से भी सरकारों की कुभंकर्णी नींद नहीं टूटी। दरअसल ये मौतें वोट बैंक बनाने में महत्वपूर्ण साबित नहीं हुईं। अलग−अलग समय पर हुई इन मौतों को चुनावों में भुनाया नहीं जा सका। ऐसे कामों से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सिर्फ कानून बनाकर सरकारों ने अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ लिया।
 यही वजह है कि कानून बनाने के बावजूद दुर्घटना होने पर आरोपी को सजा तो मिल सकती है किन्तु ऐसी घटनाओं की पुनरावृति नहीं हो, इसके उपायों को दरकिनार कर दिया गया। सफाई श्रमिकों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनका काम सामाजिक दृष्टि से हेय होने के साथ ही खतरनाक भी है। ऐसे काम का जोखिम वे अपने परिवार पालने के लिए उठाते हैं। चुनिंदा शहरों को छोड़ भी दें तो कस्बों और गांवों में सैप्टिक टैंक खाली कराने के वाहन उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में इस काम को कराने के लिए सफाई श्रमिकों को ही बुलाया जाता है। यह श्रमिकों की किस्मत ही है कि इस काम को करने के बाद भी वे सही सलमात बच निकलते हैं।
आश्चर्य तो यह है कि आजादी के बाद से देश के हर क्षेत्र की सूरत−सीरत बदली है। नहीं बदला है तो सिर्फ दलित बस्तियों और श्रमिकों का सैप्टिक टैंक की सफाई का काम। देश के लगभग सभी हिस्सों में सार्वजनिक और निजी सफाई के कामों के लिए आज भी दलित वर्ग अभिशप्त है। केन्द्र और राज्यों में किसी भी दल की सरकार रही हो, राजनीतिक दल सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए इनके आरक्षण और संरक्षण की दुहाई देते हैं, इनकी दुश्वारियों से किसी को सरोकार नहीं हैं। अस्पृश्यता का कानून बना दिए जाने के बावजूद गांवों में दलित बस्तियों की हालत बेहद शोचनीय बनी हुई है। गांवों में मुख्य आबादी से दूर कोने में ऐसी दलित बस्तियां देखी जा सकती हैं। उनमें बिजली−पानी का इंतजाम भी रामभरोसे है। सार्वजनिक बोरिंग और नलों से दलित अभी भी आसानी से पानी नहीं भर सकते।
कानून से बेशक उनको संरक्षण मिल गया हो, किन्तु इसका क्रियान्वयन और जागरूकता पूरी तरह आज तक नहीं हो पाई। हरिजन और दलितों को आरक्षण का भी नाममात्र का फायदा मिल सका है। जातिगत आधार पर सामाजिक विषमता के कारण निजी क्षेत्र में भी अपवादों को छोड़कर दलितों के लिए रोजगार के दरवाजे बंद हैं। नाम के पीछे जाति आते ही उन्हें टरका दिया जाता है। निजी क्षेत्र में उन्हें ज्यादातर सफाई जैसा कार्य ही नसीब होता है। ऐसी हालत में जब सरकारी रोजगार नाममात्र का हो और निजी क्षेत्र में भेदभाव हो, तब दलितों के पास सैप्टिक टैंक की सफाई जैसे कार्य की मजबूरी के अलावा कुछ नहीं बचता। जातिगत आधार पर रोजगार और काम के लिहाज से दलित वर्ग नगर निगमों, परिषदों और नगर पालिकाओं में सफाई के कामों से ही जुड़े हुए हैं। सरकारों ने कभी इस वर्जना को तोड़ने का प्रयास ही नहीं किया कि आखिर दलित ही क्यों सार्वजनिक सफाई के कामों में लगे। यदि दूसरी जातियों के आगे नहीं आने और मशीनों की कमी से सफाई कार्य संभव नहीं है तो दलित ही इन कामों को अंजाम क्यों दें। शहरों में दलितों के हालात बेशक कुछ बेहतर हो सकते हैं किन्तु गांवों में अभी नारकीय हालात बने हुए हैं।
पशुपालन के जरिए आमदनी करने के नाम पर दलितों के हिस्से में सुअर ही आते हैं। गाय, बकरी, भैंस जैसे दुधारू जानवर पालना इनके बूते से बाहर है। सरकारों ने कभी इस दिशा में भी गंभीरता से प्रयास नहीं किए कि दलित केवल सुअरों के आधार पर आजीविका तक सीमित नहीं रहें। इस वर्ग का आर्थिक आधार ऊंचा उठाने के लिए दूसरे दुधारू जानवारों को पालने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसके लिए इन्हें ऋण−अनुदान दिया जाए। दलितों के सफाई कामों से जुड़े होने और सैप्टिक टैंक में होने वाले हादसों तब ही रूकेंगे जब पहले सरकारें पहले अपनी मानसिकता बदलें। जब तक सरकारों का नजरिया नहीं बदलेगा तब तक दलितों की दयनीय हालत भी नहीं बदलेगी।

-योगेन्द्र योगी

Indian govt warns of aging population; says retirement age should rise, schools merge

NEW DELHI, July 4 (Reuters) - The Indian government on Thursday warned in a study that its population is going to start to age and it needs to be prepared to merge schools and raise the retirement age.

While India should be set to benefit from the so-called “demographic dividend” over the next decade as its working population is set to increase by about 9.7 million a year between 2021-31, that will quickly fade as the nation’s fertility rate plunges below replacement level.

The conclusions in the study, “India’s Demography at 2040: Planning Public Good Provision for the 21st Century,” will have major implications for many companies, particularly those that have been eyeing consumer demand from India’s young population.

It said the number of children in the 5-14 age bracket will decline significantly, leading to the need for school mergers and less focus on building new ones.

Already states such as Himachal Pradesh, Uttarakhand, Andhra Pradesh and Madhya Pradesh have fewer than 50 students enrolled in more than 40 percent of their elementary schools, according to the study, which was included in the government’s annual Economic Survey.

It also said that policymakers need to prepare for an increasing number of elderly people, estimating there will be 239.4 million Indians over the age of 60 in 2041 against 104.2 million in 2011.

“This will need investments in health care as well as a plan for increasing the retirement age in a phased manner,” concluded the study, which was authored by India’s Chief Economic Adviser Krishnamurthy Subramanian and his team of economists.

The current retirement age for most government workers in India is 60.

Meanwhile, the number of Indians aged between 0-19 has already started to decline and the proportion of the population in that age group is projected to fall to 25 percent by 2041 from 41 percent in 2011.

The demographic dividend that is talked about in India refers to the current situation where the nation’s labor force is growing quicker than the rest of the population it supports.

If the newcomers to the labour market get well-paid jobs it boosts consumption and economic growth. (Reporting by Martin Howell; Editing by Sanjeev Miglani)


courtesy : https://www.reuters.com/article/india-economy-aging/indian-govt-warns-of-aging-population-says-retirement-age-should-rise-schools-merge-idUSL4N2452BT

बुधवार, 5 जून 2019

Nearly 80 per cent of SC, ST and OBC students who cracked NEET cleared the cut-off meant for general-category students

Merit makes a mark in NEET results


New Delhi
he results of the National Eligibility-cum-Entrance Test, declared on Wednesday, have shown that aspiring doctors from underprivileged social backgrounds are no less than general-category students when it comes to merit.
Nearly 80 per cent of students from among the Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Other Backward Classes who cracked the NEET 2019 for admission to undergraduate medical and dental courses cleared the cut-off meant for general-category students.
The National Testing Agency (NTA) declared the results. The 7.97 lakh candidates who have been declared qualified are eligible to seek admission in MBBS and BDS courses in medical colleges across the country.
Dalit, tribal and OBC students have often faced taunts and caste-based discrimination from their upper-caste peers and upper-caste teachers in higher education institutions.
Such taunts are alleged to have even driven a tribal doctor to kill herself last month. Dr Payal Tadvi, who was from the tribal Bhil community and came from Jalgaon in Maharashtra, had twice complained to authorities of a Mumbai hospital where she worked that three senior students were harassing her with caste taunts, her family members had said.
The common thread in such cases is that quota students deprive candidates from the general category. But Wednesday’s NEET results showed students from socially disadvantaged backgrounds were equal to their peers from the so-called forward castes.
The results suggest that nearly 80 per cent of SC/ST and OBC students who cleared the test didn’t need any relaxation in the qualifying marks.
The qualifying criterion for the general merit list was 50th percentile. Of the 797,042 students who cleared the test, 704,335 qualified under the general merit category.
In the general merit category, 311,846 OBCs, 79,881 SCs and 26,817 STs have qualified.
The NTA had given 10 per cent relaxation to SC/STs and OBCs. Under the relaxed cut-off, an additional 63,789 OBCs, 20,009 SCs and 8,455 STs have qualified.
“The positive point is that SCs, STs and OBCs are qualifying and getting success under general merit cut-off. But it does not mean they would not face discrimination on campuses. The institutional environment and work environment have discriminatory practices. That must end,” said Professor Kesav Kumar, an Ambedkarite scholar who teaches philosophy in Delhi University.
Kumar also said that the SC/ST and OBC students who have qualified under the general merit cut-off are most likely to have studied in English-medium schools in urban areas.
“The students from deprived sections in the rural areas still need support to qualify,” Kumar said.
Nalin Khandelwal from Rajasthan has topped the exam. Seven girls are among the top 50.
Fifteen per cent of seats in government medical colleges in states except Andhra Pradesh, Telangana and Jammu and Kashmir are reserved for NEET-qualified candidates under the all-India quota.
Admissions for the remaining seats would be conducted according to the policy of the state government concerned.


मंगलवार, 28 मई 2019

NSIC Signs MoU with Government of India

New Delhi: The National Small Industries Corporation Limited (NSIC) signs the Memorandum of Understanding (MOU) with Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises (MSMEs) for the year 2019-20. The MOU was signed by Shri Ram Mohan Mishra, AS & DC (MSME) and CMD (NSIC) with Dr. Arun Kumar Panda, Secretary, MSME, Govt. of India in the presence of Ms. Alka Nangia Arora, Joint Secretary, SME, Ms Mercy Epao, Director (SME), Shri P. Udayakumar, Director -P&M (NSIC) and Shri A.K. Mittal, Director-Finance (NSIC).
The said MOU envisages provision of enhanced services by NSIC under its Marketing, Financial, Technology and Other support services schemes, for MSMEs in the country. The Corporation projects to increase ‘Revenue from Operation’ by 22% from Rs. 2540 crore in the year 2018-19 to 3100 crore in the year 2019-20. Corporation also projects growth of 32% in ‘Profitability’ during the year 2019-20. NSIC also plans to enhance its activities in the areas of imparting entrepreneurship and skill development training by targeting 45% growth in the number of trainees.
Under the scheme of National SC-ST Hub, being implemented by NSIC on behalf of the Ministry, NSIC’s continued endeavour shall be to provide assistance to the SC/ST Entrepreneurs through different interventions and various outreach activities with the overall objectives to increase their participation in public procurement.
Dr. A.K. Panda, Secretary, MSME, while appreciating the performance of NSIC, urged the Corporation to create niche activities for itself. He also suggested that greater efforts be made to expand reach of NSIC so as to serve larger number of MSMEs.


Categories : MOU

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

SC-ST और स्टार्ट अप से होगी मप्र में खरीदी


- मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा शासन की खरीदी एससी, एसटी और स्टार्टअप से करो
- कैबिनेट के लिए प्रस्ताव तैयार, स्टोर परचेस रूल्स में होगा बदलाव
- लोकसभा चुनाव के पहले होगा फैसला

भोपाल, 23 फरवरी, 2019 । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और सांसद कमलनाथ ने अधिकारियों को कहा है कि शासन स्तर पर होने वाली खरीदी अब एसटी, एससी और स्टार्टअप इकाईयों से करो।
एससी, एसटी वर्ग की इकाईयों से खरीदी की व्यवस्था कांग्रेस शासनकाल में थी जिसे शिवराज​ सिंह चौहान सरकार ने बाद में बंद कर दिया था। कमलनाथ ने जैसे ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली वे लगातार सभी वर्गो के हित में निर्णय ले रहे हैं। साथ ही कांग्रेस पार्टी द्वारा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में वचन पत्र के माध्यम से जो राज्य के मतदाताओं और नागरिकों से वायदे किये हैं उस पर अमल भी कर रहे हैं।
एमपीपोस्ट को मिली जानकारी के अनुसार श्री नाथ ने हाल ही में एमएसएमई विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे वर्तमान भण्डार क्रय एवं सेवा उपार्जन नियम में जल्द से जल्द बदलाव करें। विभाग के अधिकारी मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशानुरूप मध्यप्रदेश भण्डार क्रय एवं सेवा उपार्जन नियम में संशोधन करने जा रहे हैं।
बताया जाता है कि नीति में जैसे ही संशोधन हो जाएगा। राज्य शासन मध्यप्रदेश के समस्त विभागों, उपक्रमों और शासन के अधीन ईकाईयों में जो भी खरीदी होती है उस खरीदी में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के उद्यमीयों की ईकाईयों से 15 प्रतिशत और स्टार्टअप एवं मुख्यमंत्री उद्यमी योजना से 10 फीसदी होने लगेगी। 
उल्लेखनीय है कि भूतपूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के उद्यमीयों से शासकीय खरीदी करने के नियम बनाये थे। यह नियम उन्होंने 12, 13 जनवरी 2002 को भोपाल घोषणा पत्र के तारतम्य में बनाये थे। इसके बाद जैसे ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो यह प्रक्रिया चालू रही। लेकिन 2015 में इस नियम को शिवराज सिंह चौहान सरकार ने समाप्त कर दिया था।
लघु संवर्धन बोर्ड की 21 फरवरी 2019 को हुई बैठक में भी एससी, एसटी वर्ग की इकाईयों से शासकीय खरीदी में आरक्षण की व्यवस्था पूर्ववत रखने की मांग उठी है। डिक्की मध्यप्रदेश सदस्यों ने बात को रखा था कि शीघ्रता से प्रोक्योरमेंट पॉलिसी में संशोधन किया जाए।
अब जैसे ही कांग्रेस पार्टी की सरकार मध्यप्रदेश में पुन: बनी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के समय में एससी, एसटी वर्ग के उद्यमीयों से खरीदी के जो नियम बने थे उसको पुन: चालू करते हुए खरीदी नियम में संशोधन करने के निर्देश अधिकारियों को दिये हैं। यह संशोधन नियम जल्द ही केबिनेट में मंजूरी के लिए विभाग द्वारा भेजा जा रहा है।
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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशानुसार एमएसएमई की नीति में बदलाव जल्द

# एमएसएमई नीति में होंगे चार बड़े बदलाव 
# स्टार्टअप पॉलिसी में भी संशोधन होगा 

भोपाल, 14 फरवरी, 2019। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और सांसद कमलनाथ राज्य में औद्योगिक क्षेत्र को ज्यादा से ज्यादा सहुलियातें देना चाहते हैं। श्री नाथ ने हाल ही में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि वे एमएसएमई की नीति में ऐसे बदलाव जल्द से जल्द करें जिससे की राज्य में रोजगार के अवसर पैदा हों और औद्योगिक ईकाईयों को बढ़ावा मिले।  

मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशानुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग अपनी वर्तमान नीति में बदलाव करने जा रहा है। प्रमुख रूप से चार संशोधन वर्तमान नीति में होने जा रहे हैं। 

पहला निजी जमीन पर औद्योगिक ईकाई तथा मल्टीस्टोरी पर बिल्डिंग निर्माण के तहत अधोसंरचना विकास का अनुदान दिया जाता है। अभी 20 प्रतिशत और अधिकतम दो करोड दिया जाता है। इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जा रहा है। साथ ही गारमेंट और पावरलूम ईकाईयों को 40 प्रतिशत अनुदान देने का अब इस नीति में संशोधन किया जा रहा है। 

दूसरा एमएसएमई के तहत प्लांट और मशीनरी पर 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। अब इस अनुदान की श्रेणी में ​बिल्डिंग निर्माण को भी शामिल किया जा रहा है जो 40 प्रतिशत होगा। 

तीसरा पावरलूम ईकाईयों को अभी अधिकतम 8 पावरलूम होने तक अनुदान दिया जाता है। अब इसकी प्रोजेक्ट कास्ट पर मिलने वाला अनुदान 10 पावरलूम होने तक दिया जाएगा। एससी एसटी वर्ग की पावरलूम ईकाईयों को अब 100 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। जबकि सामान्य वर्ग के लिए 75 फीसदी अनुदान दिये जाने का प्रस्ताव संशोधन नीति में किया जा रहा है।  

चौथा जो भी औद्योगिक कंपनियां स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करायेगा उन्हें 2500 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्रत्येक माह अनुदान दिया जाएगा। 

स्टार्टअप पॉलिसी में भी संशोधन की प्रक्रिया जारी है। एमएसएमई नीति में संशोधन के प्रस्ताव जल्द ही केबिनेट की मंजूरी के लिए भेजे जा रहे हैं। इस तरह की प्रक्रिया विभाग में तेजी के साथ चल रही है। विभाग के मंत्री श्री आरिफ अकील की सैद्धांतिक सहमति हो चुकी है। 

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