लोकप्रिय पोस्ट

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

सरकार फेल, किसान जीते

- सरकार नहीं बना पाई कृषि को लाभ का धंधा, छोटे किसानों ने बनाया
- 90 डिसमिल जमीन से ही निकाली तरक्की की राह
डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
पिछले 10-12 सालों से प्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने की कोशिशों में जुटी मप्र सरकार भले ही अब तक इस काम को नहीं कर पाई है लेकिन प्रदेश में ऐसे सैकड़ों किसान हैं जिन्होंने अपने बल-बूते इस काम को कर लिया है। इनमें से अधिकांश ऐसे किसान हैं जो बहुत छोटे-छोटे रकबे में खेती कर रहे हैं। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए सरकार के दावों और भाषणबाजी से दूर यह किसान अपने खेतों में छोटे-छोटे नवाचार करते हैं, नई-नई फसलें लेते हैं और खेत के हरेक हिस्से का पूरा उपयोग करते हैं। इसी का नतीजा है कि जहां प्राकृतिक आपदा के बाद भी कुदरत इन पर मेहरबान है। यह न तो सरकार के किसी एक्शन प्लान का हिस्सा हैं और न ही इन तक कोई बड़ी सरकारी मदद पहुंचती है। इसके बावजूद इन्होंने खेती को लाभ का धंधा बना लिया है। इन किसानों की सफलता के पीछे इनकी नवाचारी सोच तो है ही, इन्होंने अपने खेतों में खुद मजदूरी भी की। 

90 डिसमिल में कुंवर के कमाल
हरदा जिले के गांव छिदगांव तमोली के छोटे किसान कुंवर सिंह राजपूत की समृद्धि छोटी जोत के किसानों के लिए बड़ा उदाहरण है। केवल 90 डिसमिल जमीन में कुंवर ने विविध प्रकार की बागवानी फसलें लगाकर न केवल मुनाफा कमाया बल्कि खेती को एक नया आयाम भी दिया है। कुंवर ने अपने इस छोटे से खेत में तीन प्रकार की सबिज्यां लगार्इं। इसमें से तीन सब्जियां लौकी, कद्दू और गिलकी सिर्फ खेत की बागुड़ पर लगाई। इस बार उन्होंने बागुड़ पर लौकी से ही पांच हजार कमाएं हैं। उनके खेत में 10 किलो तक की लौकी आ चुकी है।  इस छोटे से खेत में प्याज की पौध, मक्का और चना लगाकर वे खुशहाली की तरफ बढ़े। 
उमा की मेहनत का रंग
इसी गांव की निवासी उमादेवी अपने छोटे से खेत में अपनी पति की मदद करती है। छोटे से खेत से निकलने वाली पत्तियों और सब्जियों से वे गाय और भैंस पाल रही हैं। यह उनके परिवार की आमदनी का अतिरिक्त स्रोत बन गया। 
और ये किसान भी हैं मिसाल
भजन सिंह सिंधा - भिंडी, ज्याज लहसुन की खेती। 
ह्रदयराम राजपूत - सब्जियां लगार्इं। बेचने तक का काम खुद ही।
अमरदास ढोके - हल्दी लगाई, मुनाफा कमाया
सुंदरलाल सैनी - सौताड़ा गांव में सैनी और उसका परिवार शकरकंद, रतालू और सब्जियों की खेती से मालामाल है। 
हर जिले में ऐसे किसान
प्रदेश के लगभग हर जिले में ऐसे किसान हैं, जो छोटे-छोटे नवाचारों से खेती को अपने लिए लाभ का धंधा बना चुके हैं। चूंकि यह छोटे बहुत किसान हैं, इसलिए सरकार तक इनकी पहुंच नहीं है और न ही यह चर्चा में आ पाते। हरदा, होशंगाबाद, मंडला, डिंडोरी, शहडोल, श्योपुर, अलीराजपुर, धार, बड़वानी में ऐसे किसानों की संख्या अधिक है।
---------------------
मजदूरी ने भी बढ़ाई कृषि लागत
जिन लोगों ने खेती को लाभ का धंधा बनाया है, उनके अनुभव बताते हैं कि महंगी मजदूरी के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई है। कृषि कार्य के लिए गांवों में मजदूर नहीं मिल रहे हैं। जिसके कारण मजदूरी कई गुना अधिक हो गई है। जो किसान खेती से लाभ प्राप्त कर रहे हैं, वह मजदूरों पर निर्भर नहीं है। अपने खेत के अधिकांश काम वे खुद ही करते हैं। 
मनरेगा पर सवाल
इधर गांवों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार (मनरेगा) योजना है। इसमें सरकार ग्रामीणों को न्यूनतम 100 दिवस का रोजगार उपलब्ध कराती है और प्रति कार्यदिवस 160 रुपए मजदूरी देती है। किसानों और कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं का सुझाव है कि राज्य सरकार मनेरगा को कृषि कार्यों से भी जोड़ दे। यदि किसी किसान को मजदूर की जरूरत है तो उसे ग्राम पंचायत के माध्यम से मनरेगा मजदूर उपलब्ध कराए जाएं। मजदूरों को 200 प्रति कार्य दिवस मजदूरी दी जाए जिसमें से राज्य सरकार और संबंधित किसान 50-50 प्रतिशत की भागीदारी करे। इससे मजदूर को मजदूरी भी ज्यादा मिलेगी और किसानों को भी 100 रुपए में मजदूर मिल जाएंगे। इससे मनरेगा योजना की उपयोगिता बढ़ेगी। 
कृषि मजदूरी बराबर मनरेगा मेहनताना
इधर दो दिन पहले भारत सरकार ने मनरेगा में मजदूरी की दर कृषि मजदूरी के समान करने का मन बन लिया है। गुरुवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौ. बीरेन्द्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से गठित समिति की सिफारिश पर इसकी सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। 
--------------------
मनरेगा में मजदूरी को लेकर दिशा-निर्देशा भारत सरकार द्वारा तय किए गए हैं। राज्य सरकार केवल योजना का क्रियान्वयन करती है। मनेरगा में मजदूरी के संबंध में हाल ही भारत सरकार ने कुछ निर्णय लेने जा रही है। 
- अरूणा शर्मा, अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विका

हमने कम रकबे के किसानों को नवाचारी खेती के लिए प्रोत्साहित किया। अब किसान ऐसा कर रहे और लाभकारी खेती करने लगे हैं। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए लागत मूल्य कम करना बेहद जरूरी है। लगातार महंगी होती मजदूरी बड़ा मुद्दा है, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। 
- अशोक गुर्जर, अध्यक्ष ग्रामीण विकास सहकारी सोसायटी, छिदगांव तमोली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें