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शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

मुस्लिम महिला ने उठाई कुपोषित आरती की परवरिश की जिम्मेदारी


  • जज्बा ही देखना है तो पुटपुरा की नूरेशा को देखें
  • धर्म और समाज से ऊपर उठकर मानवता की मिसाल


डॉ. अनिल सिरवैयां, भोपाल
9424455625
sirvaiyya@gmail.com
Key Word : Sneh Sarokar, Madhya Pradesh, Umriya, Muslim Women, Baiga Tribal, JNU, Malnutrition, Nures Begam, Maya Singh

नूरेशा बेगम आरती और अपने दोनों बेटों के साथ। 

देशभक्ति और सांप्रदायिकता को लेकर देश में इन दिनों चल रही बहस का निष्कर्ष जो भी हो, लेकिन मध्यप्रदेश के एक आदिवासी जिले उमरिया के एक छोटे से गांव पुटपुरा में ममता, मानवता, सद्भाव और सहयोग से मिलकर देशभक्ति और राष्ट्रवाद की एक अनोखी मिसाल देखने को मिली है। एक बैगा आदिवासी परिवार की दो साल की अतिकुपोषित बालिका, एक मुस्लिम परिवार की कोशिशों से कुपोषण से बाहर आ रही है। इस गांव की मुस्लिम महिला नुरेशा बेगम ने आरती नाम की बालिका को कुपोषण से बाहर लाने की जिम्मेदारी उठाई और इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। 

दरअसल राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे स्नेह सरोकार कार्यक्रम के तहत ऐसे कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों को स्वस्थ बनाने की जिम्मेदारी समुदाय को सौंपी जा रही है। नुरेशा ने इससे प्रेरित होकर अपने ही गांव की अति कुपोषित आरती की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया। नुरेशा एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है। उनके अपने भी दो बच्चे हैं और पति मजदूरी करते हैं। बावजूद इसके उन्होंने जीवटता दिखाते हुए अन्य परिवार की बालिका की जिम्मेदारी उठा रही हैं। 

ऐसी थी आरती की हालत

आरती बैगा का जन्म 12 अक्टूबर 2013 को हुआ था। जन्म के समय उसका वजन 3 किलोग्राम था। लगभग 9 महीने की होने पर आती का वजन और स्वास्थ्य धीर-धीरे गिरने लगा, जिसके कारण वह कुपोषण की श्रेणी में आ गई थी। पिछले साल 9 जून का नुरेशा ने आरती की देखभाल की जिम्मेदारी ली। उस समय आरती का 5.100 किलोग्राम था। वह अति गंभीर कुपोषित हो गई थी। 

नुरेशा ने क्या किया

नूरेशा बेगम रोजाना आरती को खुद आंगनबाड़ी केंद्र पर लाती है तथा अपने सामने नाश्ता, भोजन और थर्ड मील खिलाती है। आंगनबाड़ी के बाद वह आरती को अपने घर ले जाकर अपने बच्चों के साथ उसकी देखभाल करती है। यदि आरती बीमार पड़ती है तो उसे अस्पताल भी खुद ही ले जाती है। वह आरती के माता पिता को समझाईश भी देती है। नूरेशा की इन कोशिशों से आरती का वजन अब 7 किलो 200 ग्राम तक आ गया है। 

क्या करती है नूरेशा

नूरेशा अपने पति शफी मोहम्मद के साथ अपने घर पर ही सिलाई का काम करती है। मौसम के अनुसार खेतीबाड़ी, मजदूरी आदि काम करके दोनों अपना परिवार चलाते हैं। 9 साल का गौशुल रजा और 6 साल का हामिद रजा, नूरेशा के दो बेटे हैं। गोद ली गई आरती का वह इन दोनों के जैसा ही ध्यान रखती है। नूरेशा और उसके परिवार के सदस्य आरती को प्यार से ‘गौशिया’ कहकर पुकारते हैं। तीज-त्यौहार में अपने बच्चों के साथ-साथ वह आरती के लिए भी खिलौने और कपड़े लाती है। वह अपने बच्चों के लिए जो पकाती है, आरती को भी बड़े प्यार से खिलाती है। 

विरोध भी झेला

बैगा आदिवासी परिवार की बच्ची को गोद और देखभाल की जिम्मेदारी लेने पर नूरेशा को मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को विरोध भी झेलना पड़ा। नूरेशा को उसके परिवार और माता-पिता  का साथ मिला और वह विरोध की परवाह किए बगैर अपनी इस जिम्मेदारी को निभाती है। आरती को लेक
र नूरेशा की इस ममता को देखकर जिले में सच्ची स्नेह सरोकार मित्र कहा जाता है।


प्रदेश का हर बच्चा स्वस्थ हो, इसके लिए समुदाय का सहयोग जरूरी है। स्नेह सरोकार में जरूरतमंदों बच्चों की जिम्मेदारी लेने बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं। उमरिया जिले में नूरेशा का प्रयास सराहनीय और प्रेरक है, इससे निश्चित तौर पर दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। 


माया सिंह, मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग 

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